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पिछले कुछ सालों से ये रिकॉर्ड सा चला आ रहा है- मेजबान टीम को टेस्ट सीरीज में हराना आसान नहीं। इसीलिए जब इंग्लैंड ने पाकिस्तान को पिछली टेस्ट सीरीज में पाकिस्तान को 3-0 से हराया तो बड़ी हैरानी हुई थी। क्या इंग्लैंड की टीम भारत में 5 टेस्ट में भी इस स्कोर लाइन के बारे में सोच सकती है? अपने ग्राउंड पर भारत का रिकॉर्ड जबरदस्त है और एक दशक से भी ज्यादा से अपनी पिचों पर कोई सीरीज नहीं हारे हैं- ये रिकॉर्ड बदला तो चमत्कार होगा और ऐसी सोच की कई वजह हैं :

भले ही इंग्लैंड की टीम कितने ही पक्के इरादे के साथ इस सीरीज को जीतने आई हो- वे भी जानते हैं कि ये सीरीज स्टीव वॉ की ऑस्ट्रेलिया या क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम से उनकी पिचों पर खेलने से भी ज्यादा मुश्किल है- ऐसी चुनौती इंग्लैंड का इंतजार कर रही है।

1980-95 वेस्टइंडीज क्रिकेट का गोल्डन पीरियड था- तब वेस्टइंडीज ने अपनी पिचों पर 48 टेस्ट खेले और उनमें से 28 जीते और सिर्फ 4 हारे। 1995-2007 तक, ऑस्ट्रेलिया का पूरा प्रभुत्व रहा और उस दौर में, ऑस्ट्रेलिया ने अपनी पिचों पर जो 71 टेस्ट खेले- उनमें से 54 जीते और 6 हारे। 2013 के बाद से, भारत ने अपनी पिचों पर 36 टेस्ट जीते हैं और सिर्फ 3 हारे हैं- वेस्टइंडीज या ऑस्ट्रेलिया की टीमों के अपनी पिचों पर अपने गौरवशाली दौर में हासिल की गई जीत/हार के रिकॉर्ड से भी बेहतर है ये रिकॉर्ड। 2012 में इंग्लैंड की शानदार जीत के बाद से भारत ने लगातार 16 घरेलू सीरीज जीती हैं।

और देखिए- वेस्ट इंडीज की 1980-95 की टीम ने 10 प्रतिशत घरेलू टेस्ट, एक पारी के अंतर से जीते जबकि ऑस्ट्रेलिया की 1995-07 की टीम ने 23 प्रतिशत टेस्ट इस अंतर से जीते- भारत ने इस दौर में अपनी पिचों पर टेस्ट में से 33 प्रतिशत पारी के अंतर से जीते हैं। अपनी पिचों पर, भारत टेस्ट इतिहास में बेजोड़ रिकॉर्ड के साथ खेल रहा है और ये सिलसिला लगातार चला आ रहा है।

कोई भी मेहमान टीम इस अद्भुत रिकॉर्ड की पहेली सही तरह से समझ नहीं पाई है- ऐसा नहीं कि टीम इंडिया से कभी गलती नहीं हुई, पर सही टीम चुनना इसका सबसे बड़ा राज है। अतिरिक्त बल्लेबाज या अतिरिक्त गेंदबाज, सीम के साथ चलें या स्पिन के साथ- टीम इंडिया ने ज्यादातर मौके पर सही तालमेल ढूंढ ही लिया है।

अपनी पिचों पर रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जड़ेजा दोनों के एक साथ खेलते हुए भारत ने अटैक की कई पहेली को आसानी से सुलझा लिया है। ये जोड़ी भारत के अब तक के सबसे बेहतरीन स्पिनरों में से एक है- गेंद को मदद न देने वाली परिस्थितियों में भी ये गेंद को टर्न करा सकते हैं। जडेजा टॉप 6 में बल्लेबाजी भी करते हैं और नोट कीजिए- अश्विन के नाम 5 टेस्ट शतक हैं। यदि आईपीएल स्टाइल की टेस्ट फ्रेंचाइजी लीग भी भारत में शुरू हो जाए तो अश्विन और जडेजा दोनों ही रिकॉर्ड कीमत पर बिकेंगे और इन्हें खरीदने के लिए लड़ाई हो जाएगी- न सिर्फ गेंदबाजी, बल्लेबाजी में भी बेहतर।

अश्विन का अपनी पिचों पर बैट से औसत 28 है- जबकि 20.9 की औसत से 337 विकेट लिए हैं। अपनी पिचों पर बैट से जड़ेजा का औसत 39.8 है और 20.5 के औसत से 194 विकेट लिए हैं। अपनी पिचों पर अपने 40 टेस्ट में, दोनों ने 20.9 की औसत से 428 विकेट लिए हैं – लगभग 11 प्रति मैच। जिन टेस्ट में ये दोनों खेले- भारत इनमें से सिर्फ 2 मैच हारा है।

हो सकता है जाडेजा की चोट से थोड़ी राहत मिल जाए पर कुछ नहीं बदलने वाला। तीसरे विशेषज्ञ स्पिनर के लिए एक और खब्बू स्पिनर अक्षर पटेल को ढूंढ लिया है- वे बहुत धीमे नहीं हैं, गेंद में पेस है और जब तीन साल पहले इंग्लैंड गए थे तो 10.6 की औसत से 27 विकेट लिए थे। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में 5 पारी में तीन अर्धशतक लगाए- इस फार्म में गेंद के साथ कुछ ख़ास न करना नजरअंदाज हो गया।

सिर्फ‌ स्पिनर ही नहीं, भारत का सीम अटैक भी गजब का है। आज किसी को कपिल देव से जुड़ी वह स्टोरी शायद याद भी नहीं होगी- जिसे इस चर्चा में याद करना सबसे जरूरी है। कपिल तब 15 साल के थे- 1974 में, जब एक कोचिंग कैंप में हिस्सा लिया। लंच पर मिली दो सूखी चपाती और थोड़ी सी सब्जी देखकर कपिल खुद को रोक न पाए और न सिर्फ इस खाने की शिकायत की, आगे के लिए भी बेहतर डाइट मांगी। कपिल देव की दलील थी कि तेज गेंदबाजी करने वाले को बेहतर डाइट मिलनी चाहिए। उन्हें जवाब मिला- भारत में कोई तेज गेंदबाज है ही नहीं और तुम किस तेज गेंदबाज की बात कर रहे हो?

उसी भारत के पास अब दुनिया के सबसे बेहतर और पैने तेज अटैक में से एक है- ऐसा जो किसी भी सीम मूवमेंट का फायदा उठाने में माहिर है। याद कीजिए- हाल ही के केपटाउन टेस्ट मैच में क्या हुआ था? दक्षिण अफ्रीका ग्रीन टॉप पर लंच से पहले 55 रन पर आउट और दूसरी पारी में 176 रन पर आउट। पहली पारी में- मोहम्मद सिराज ने 6-15 रन और दूसरी पारी में जसप्रीत बुमरा 6- 61 रन। इंग्लैंड का मुकाबला हैदराबाद में इन दोनों से है और जब मोहम्मद शमी भी इन के साथ जुड़ गए तो वे भी गजब के गेंदबाज हैं- सीधी सीम के साथ रिवर्स स्विंग में माहिर और अपनी पिचों पर औसत 22.1 है।

ऐसा नहीं कि भारत ने सिर्फ गेंदबाजी से टेस्ट जीते- भारत के लगभग हर बल्लेबाज का, विदेश की तुलना में भारत में रिकॉर्ड बेहतर है और ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि आम तौर पर जानी-पहचानी परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, असाधारण रिकॉर्ड हैं। रोहित शर्मा और विराट कोहली (जो पहले दो टेस्ट नहीं खेलेंगे)- दोनों का भारत में टेस्ट में औसत 60+ है। कोहली का रिकॉर्ड इस बात का प्रतीक है कि भारत में उस टीम को खेलने की चुनौती कितनी बड़ी है, जिसमें वे खेलते हैं। इंग्लैंड में उनका औसत 33.7 है और स्विंग और सीम मूवमेंट के सामने जूझने की बात सब जानते हैं- दूसरी तरफ इंग्लैंड के विरुद्ध भारत में यही रिकॉर्ड 56.4 है।

सोने पर सुहागा ये कि जहां एक तरफ अपनी पिचों पर भारत के खिलाड़ी अपनी सबसे बेहतर क्रिकेट खेलते हैं- विदेशी खिलाड़ियों का रिकॉर्ड खराब रहा है। साफ़ है कि जिन चुनौतियों में खेलते हैं- उनमें बड़े-बड़े विदेशी खिलाड़ी भी अपने रिकॉर्ड को बचा न पाए। इस इंग्लैंड टीम की ही बात करते हैं- अपने कुल टेस्ट औसत की तुलना में, भारत में स्कोर में बेन स्टोक्स (-4) और जॉनी बेयरस्टो (-6) दोनों ख़राब हालत में हैं जबकि ओली पोप का औसत 2021 में सिर्फ 19.1 रहा था। जो रूट गजब के बल्लेबाज हैं और उनका भारत में औसत 50+ है पर स्टीव स्मिथ (2017 में भारत में 3 बेहतरीन शतक के बावजूद) का भारत में औसत का स्कोर -7 है जबकि केन विलियमसन का टेस्ट औसत 54.4 से भारत में घटकर 33.5 रह गया है।

भारत में खेलना आसान नहीं है- चुनौती कई फ्रंट पर मिलती है। भारत में खेलना है तो स्पिन सबसे बड़ी चर्चा बन जाती है और इसी में गड़बड़ हो जाती है। यहां की अलग-अलग तरह की परिस्थितियों में टूर एक चुनौती बन जाता है। स्पिन तो है ही- पेस, बाउंस और गर्मी भी हर टेस्ट के साथ बदलते रहेंगे। हैदराबाद में गर्मी लगेगी तो धर्मशाला में पांचवें टेस्ट में ठंड। इतना ही नहीं, उसके ऊंचाई पर होने से मसला और पेचीदा हो जाता है- यहां अक्सर सीम को मदद मिलती है।

इस सबका मतलब है टूर पर कोई भी टीम गलत सोच में फंस सकती है- तीन साल पहले, अहमदाबाद में डे-नाइट टेस्ट से पहले हर रिपोर्ट में लिखा था कि गुलाबी एसजी गेंद सीम में मदद करेगी, इंग्लैंड ने 4 तेज गेंदबाज चुन लिए लेकिन सबसे कामयाब जो रूट रहे और ऑफ स्पिन से 5-8 की गेंदबाजी की। भारत ने 10 विकेट की जीत में स्पिन से 19 विकेट लिए। ऐसी ही गलती इंग्लैंड ने 1993 में कोलकाता में भी की थी- तब भी सीम पर गलत भरोसा किया और सिर्फ एक विशेषज्ञ स्पिनर को चुना था।

ऐसा नहीं कि भारत में सीम से विकेट नहीं मिलते – जेम्स एंडरसन ने यहां 29.32 की औसत से 34 विकेट लिए हैं और तीन टेस्ट जीत में ख़ास रोल निभाया पर आम तौर पर मेहमान टीम के पेस पर ज्यादा भरोसे वाली गलती की संभावना ज्यादा है। स्पिन के सामने, भारत की बल्लेबाजी बहुत बेहतर है और इसीलिए हर स्पिनर को सफलता नहीं मिलती। विदेशी लेग स्पिनरों, यहां तक ​​कि शेन वार्न का भी यहां रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा नहीं- पिचें थोड़ी उन्हें सपोर्ट कर सकती हैं जो तेज हैं- इसीलिए रेहान अहमद कुछ ख़ास कर सकते हैं।

एक और बात, भारत टूर पर कई टीम सही बेलेंस की तलाश में ऐसे खिलाड़ियों को चुनने के लालच में पड़ जाती हैं जो कुछ ओवर फेंक लें और निचले आर्डर में कुछ रन भी बना दें। 2016 में इंग्लैंड 4-0 से हार गया तो पता चला कि जफर अंसारी और क्रिस वोक्स को यही रोल दिया था- वे दोनों में फ्लॉप रहे। बेन स्टोक्स की टीम को अगर भारत में खेलने की स्ट्रेटजी को समझना है तो 2023 के ऑस्ट्रेलिया के भारत टूर को स्टडी करें। वे भले ही 2-1 से हारे पर मुकाबला किया। ऑस्ट्रेलिया ने एश्टन एगर के बजाय नाथन लियोन के साथ दूसरे ऑफ स्पिनर के तौर पर (सभी को हैरान करते हुए) टॉड मर्फी को चुना- वे बेहतर बल्लेबाज थे पर उतने बेहतर खब्बू स्पिनर नहीं। मर्फी ने डेब्यू पर 7-124 का प्रदर्शन किया और सीरीज में उनका औसत 25.2 रहा। जब ऑस्ट्रेलिया को इंदौर में जीत मिली तो उनके पांचवें गेंदबाज ने सिर्फ 2 ओवर फेंके और उनके नंबर 8-11 ने मिलकर 6 रन बनाए लेकिन वे जीते क्योंकि बल्लेबाजों और गेंदबाजों ने अपनी सही स्किल दिखाई।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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