10 अक्टूबर का दिन, वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे था। उसकी पूर्व संध्या पर एजुकेशन इंस्टीट्यूट आकाश BYJU’s के ‘चैंपियंस ऑफ आकाश 2022’ प्रोग्राम में, इंस्टीट्यूट ने अपने उन स्टूडेंट को सम्मानित किया जो एनईईटी और जेईई एडवांस एग्जाम 2022 में टॉप 500 रैंक में आए। ऐसे में स्टूडेंट्स को उत्साहित करने के लिए 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम से बेहतर व्यक्ति और कौन हो सकता था? वे ‘एचीवर’ हैं तो ‘मोटिवेटर’ भी। प्रोग्राम में, बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल ने कपिल से पूछा कि चैंपियन होने का क्या मतलब होता है तो कपिल कुछ ऐसा कह गए जिसका उन्हें शायद हमेशा अफ़सोस रहेगा।
जो बोले वह महज एक ऐसी स्टेटमेंट नहीं था जिससे वे इंकार कर दें। कपिल देव क्रिकेटर हैं और वे स्टूडेंट और क्रिकेटर की मेंटल हेल्थ को अलग नहीं मानते- दोनों पर कुछ ख़ास हासिल करने का दबाव है। इस ‘हासिल करने’ के दौर में जो ‘दबाव’ और ‘डिप्रेशन’ आते हैं- वे उन्हें महज अमेरिकी फैशन मानते हैं। ये भी कहा- ‘इन दिनों टीवी पर बहुत सुनता हूं कि खिलाड़ी कहते हैं कि बहुत दबाव है क्योंकि आईपीएल खेलते हैं। तब मैं सिर्फ एक ही बात कहता हूं- मत खेलो।’
उनकी सोच है- ‘अगर खिलाड़ी में खेलने का जुनून है तो कोई दबाव नहीं होगा।’ वे किसान परिवार से हैं और मजे के लिए खेले और मजे में खेलते हुए कोई दबाव नहीं हो सकता। स्कूली बच्चों को भी नहीं छोड़ा। एयरकंडीशन स्कूलों में पढ़ने वाले वे बच्चे, जिनके माता-पिता फीस देते हैं और टीचर जिनकी पिटाई नहीं कर सकते- उन पर भला किस बात का दबाव होगा? अपने दौर पर वे बोले- ‘टीचर पहले पीटते थे और तब पूछते थे कि कहां गए थे … पढ़ाई को मौज-मस्ती में बदलो। ये दबाव बड़ा गलत शब्द है।’ दिग्गज क्रिकेटर कपिल देव की ये बातें सोशल मीडिया में उन पर बड़ी भारी पड़ रही है और बुरी तरह ट्रोल हो रहे हैं।’दबाव’ और ‘डिप्रेशन’ अमेरिकी फैशन कैसे जबकि इससे परेशान खिलाड़ियों की गिनती लगातार बढ़ रही है। हर कोई, सही समय पर, इस परेशानी/बीमारी से बाहर नहीं निकल पाया। दिक्कत ये है कि मेंटल हेल्थ के बारे में कोई बात नहीं करता था- इसे छिपाते हैं। खिलाड़ी अगर परेशान तो अपने आप में घुटते थे और कोई मदद नहीं- इससे कई करियर खत्म हुए। इयान बॉथम को माइक ब्रेयरली मिले- हर एक को ऐसा मोटिवेटर नहीं मिला।
अब बदलाव आया है। खिलाड़ी अपनी मेंटल हेल्थ छिपाते नहीं- खुल कर बोलते हैं और चर्चा करते हैं। हर मैच में अच्छा खेलने के बढ़ते दबाव और कई-कई दिन परिवार से दूर रहते हुए जो महसूस करते हैं, उसे साझा करते हैं। इसीलिए बड़ी क्रिकेट टीम के साथ साइकोलॉजिस्ट या मेंटल फिटनेस ट्रेनर नजर आते हैं।
ऐसा लगता है कपिल देव मौजूदा दौर को नजर अंदाज कर गए। इस साल विराट कोहली (खराब फॉर्म से जब जूझ रहे थे), ने अपनी बिगड़ी मेंटल हेल्थ का जिक्र किया- ‘ऐसा समय आया जब में सपोर्ट और प्यार करने वाले लोगों से भरे कमरे में भी अकेला महसूस करता था, और मुझे यकीन है कि यह एहसास उन्हें होगा जो परेशान हैं।’ नतीजा- विराट कोहली ने ब्रेक लिया और वेस्टइंडीज और जिम्बाब्वे में लिमिटेड ओवर सीरीज के लिए नहीं गए। बदले में क्या मिला- आरोप कि क्रिकेट की परवाह नहीं करता, मनमर्जी से सीरीज चुनता है और टीम की प्रतिष्ठा की कोई चिंता नहीं। इसी तरह- बेन स्टोक्स जो पिता की तकलीफ और उसके बाद मौत से टूट से गए थे। ये दोनों, फिर से क्रिकेट ग्राउंड में लौटे तो ये उनकी हिम्मत है- अपनी तकलीफ के बारे में बात की।
आज लगभग हर पारी में अच्छा स्कोर कर रही हरमनप्रीत कुछ महीने पहले एक अच्छे स्कोर के लिए तरस रही थी- जानकार उन्हें टीम से निकालने की बात कर रहे पर वे ‘तकलीफ’ में थीं। इसे छिपाया नहीं- बोर्ड ने मोटिवेटर का इंतजाम किया। इसीलिए आज वे टीम के साथ साइकोलॉजिस्ट जोड़ने की वकालत करती हैं। महिला टीम इंडिया- आखिकार क्या वजह है कि बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में खेलने के बावजूद टाइटल नहीं जीत रही?
मोइन अली- इसी मेंटल हेल्थ की वजह से 2019 में टेस्ट क्रिकेट से अनिश्चितकालीन ब्रेक लिया था। अब टेस्ट खेलने का फैसला लिया पर फिर से इंकार कर दिया। ग्लेन मैक्सवेल और ट्रेंट बौल्ट- दोनों ने क्रिकेट से ज्यादा अपनी मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता दी- अपने भले के लिए।
आज के ज्यादातर खिलाड़ियों में जुनून की कमी का जिक्र होता है पर मेंटल हेल्थ की तकलीफ ऐसी है जिसमें कोई बुखार/चोट/सर्जरी नहीं- इसलिए क्रिकेटरों का मेंटल हेल्थ के बारे में खुल कर बोलना एक आधुनिक ट्रेंड है पर सच्चाई है। डॉन ब्रैडमैन के बेटे ने अपना सरनेम बदल लिया क्योंकि पिता की मशहूरी का दबाव झेल नहीं पाए। तीसरे अमरनाथ भाई- राजेंद्र टेस्ट तक नहीं पहुंचे क्योंकि उनमें ‘सुरिंदर’ या ‘मोहिंदर’ की तलाश के दबाव ने, वे जो थे- वह भी न रहे। शोएब मोहम्मद में हनीफ मोहम्मद को ढूंढा जाता रहा- वे इसका दबाव् न झेल पाए।
शायद कपिल आज की सच्चाई से दूर रह गए। जब से रिटायर हुए- क्रिकेट में काफी बदलाव आया है। साल भर तीन तरह की क्रिकेट, कोई ऑफ-सीजन नहीं, हर वक्त सामान पैक- ट्रेवल, खेलना, ट्रेनिंग तो मेंटल और फिजिकल दोनों तरह से इसका असर पड़ सकता है। खिलाड़ियों को इन दिनों सोशल मीडिया से भी जूझना पड़ रहा है- ऐसे लाखों हैं जो तरह-तरह के कमेंट करते हैं। ग्राउंड पर खराब दिन के बाद ट्रोल होने से बड़े से बड़े खिलाड़ियों की भी रातों की नींद हराम हो सकती है और सारा चैन गायब। जब कपिल देव टेस्ट विकेट के रिकॉर्ड की तलाश में, बेहतर दिन बीत जाने के बावजूद खेले जा रहे थे या जब उन पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे, अगर तब सोशल मीडिया होता तो क्या होता- इस दबाव का वे अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
- चरनपाल सिंह सोबती