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इस साल मध्य प्रदेश के रणजी टाइटल ने, उनके कोच चंद्रकांत पंडित का नाम हर किसी की जुबान पर ला दिया। घरेलू क्रिकेट के कामयाब कोच से वे ऐसे कोच में बदल गए जिसके बारे में कह सकते हैं कि वह अपने ‘गोल्डन टच’ से किसी भी टीम को चैंपियन आउट-फिट में बदल सकते हैं। जब 2002-03 और 2003-04 तथा उसके बाद 2015-16 में मुंबई ने उनके साथ रणजी ट्रॉफी जीती तो उनके पास फिर भी कुछ मशहूर खिलाड़ी थे। लो-प्रोफाइल टीमों के साथ कामयाबी ने उनके प्रोफाइल को एकदम बदल दिया- 2017-18 और 2018-19 में विदर्भ और 2021-22 में मध्य प्रदेश, जिसने 41 बार के चैंपियन, रणजी पावर हाउस मुंबई को फाइनल में हराया। राजस्थान में तब क्रिकेट डायरेक्टर थे जब टीम ने 2011-12 में अपने रणजी टाइटल का बचाव किया। इस रिकॉर्ड को तुक्का या संयोग नहीं कहेंगे।

इसके अतिरिक्त नेशनल क्रिकेट एकेडमी और भारत अंडर-19 भी- 2010 के अंडर-19 विश्व कप में उस टीम के कोच थे जिसमें केएल राहुल, मयंक अग्रवाल, हर्षल पटेल, मनदीप सिंह और जयदेव उनादकट भी थे। इस लिस्ट में आईपीएल का नाम नहीं था। इसीलिए, उनके इस रिकॉर्ड के साथ, ये सवाल एक बार फिर उठा कि आईपीएल घरेलू टूर्नामेंट तो बीसीसीआई ने जिस तरह भारत के खिलाड़ियों का खेलना तय किया, वैसे ही भारतीय कोच के लिए ड्यूटी क्यों नहीं? आम तौर पर हर टीम की पहली पसंद- विदेशी कोच। पिछले सीजन में ये शिकायत उतनी जोरदार नहीं थी क्योंकि अनिल कुंबले (पंजाब किंग्स), आशीष नेहरा (गुजरात टाइटन्स) और संजय बांगर (रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर) चीफ कोच की ड्यूटी पर थे। अब एक और नाम- केकेआर ने चंद्रकांत पंडित को चीफ कोच बना दिया है।

वे कोलकाता नाइट राइडर्स कैंप में ब्रेंडन मैकुलम की जगह हैं- जो इंग्लैंड टेस्ट टीम के कोच बने तो आईपीएल छोड़ना उनकी जरूरत बन गया था। वैसे मैकुलम के साथ टीम 2020 और 2022 में नॉकआउट में भी नहीं पहुंची और 2021 में फाइनल में चेन्नई सुपर किंग्स से 27 रन से हारे।

फिर भी अनिल कुंबले, आशीष नेहरा और संजय बांगर की तुलना में चंद्रकांत पंडित का चीफ कोच बनना फर्क है- इन तीनों में से कोई भी घरेलू क्रिकेट के रिकॉर्ड के दम पर आईपीएल में चीफ कोच नहीं बना था। रिकॉर्ड बेहतर करने के लिए केकेआर की पसंद चंद्रकांत पंडित होंगे- ये अंदाजा नहीं था। वैसे ये रिकॉर्ड तो आईपीएल 2012 सीज़न में ही बन गया होता- तब भी केकेआर ने उन्हें कॉन्ट्रैक्ट देना चाहा था पर असिस्टेंट कोच का और पंडित किसी विदेशी कोच के अधीन काम नहीं करना चाहते थे! इसलिए चंद्रकांत पंडित का अब चीफ कोच बनना वास्तव में ऐसी पहली मिसाल है जब भारत की घरेलू क्रिकेट में कोच की कामयाबी को भाव मिला। चंद्रकांत पंडित के लिए आईपीएल में पहुंचना किसी बड़ी इंटरनेशनल टीम का कोच बनने का रास्ता बन जाएगा।अब दो सवाल सामने हैं।

पहला- क्या उनकी कोचिंग स्टाइल आईपीएल टीम पर फिट बैठेगी? विदर्भ, राजस्थान और मध्य प्रदेश के क्रिकेटरों के लिए वे बड़ा नाम रहे- इसलिए नहीं कि कीपर-बल्लेबाज के तौर पर 5 टेस्ट और 36 वनडे इंटरनेशनल खेले, इसलिए कि टीमों में रणजी चैंपियन का जज्बा पैदा कर सकते हैं। इसके लिए, उनकी अपनी स्टाइल है जो फिट बैठ रही है और हर कामयाबी के साथ इस स्टाइल पर भरोसा और बढ़ गया।

मध्यप्रदेश के क्रिकेटरों को रात 2 बजे बिस्तर से निकाल दिया- कुछ मिनट बाद सब ग्राउंड में थे। विदर्भ के एक क्रिकेटर को कोचिंग में ढील पर थपड़ मारने का किस्सा। वे तो ये भी तय करते हैं कि ड्रेसिंग रूम के किस कोने में कौन बैठेगा और अपना बैग कहां रखेगा? क्या केकेआर के इंटरनेशनल क्रिकेटर ऐसी स्टाइल झेलेंगे?

दूसरा सवाल- क्या उनके चीफ कोच बनने को ये मान लें कि भारत की घरेलू क्रिकेट के कोच को भाव मिलने का दौर शुरू हो गया है? ऐसा नहीं कि फ्रेंचाइजी के लिए विदेशी कोच को झेलना कोई आसान होता है- अपनी पसंद का सपोर्ट स्टाफ ले आते हैं, टीम से उनका रिश्ता सिर्फ आईपीएल के दिनों का और उनकी भावना टीम से कतई नहीं जुड़ती, पूरे परिवार के साथ आईपीएल में आते हैं- खर्चा फ्रैंचाइज़ी झेले। कोविड लॉकडाउन के दिनों की, अपने कमरे में शराब से लेकर न जाने क्या क्या मांगने की स्टोरी फ्रैंचाइज़ी कैंप से बाहर आती रहीं- यहां तक कि एक कोच ने तो टीम के साथ किसी कमर्शियल एक्टिविटी के लिए अलग से पैसा मांग लिया हालांकि ये उनके कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा था। इस सब के अतिरिक्त दबी आवाज में उनकी बोलने की स्टाइल समझ न आने की शिकायत तो होती ही रहती है। कुछ फायदे भी हैं जिनमें सबसे खास है उनका ‘नाम’ जो टीम को अपने आप चर्चा दिला देता है।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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