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 कुछ दिन पहले की ही तो बात है। सोशल मीडिया पर दो ख़बरें बड़ी चर्चा में रहीं। पहली- एमसीए-बीकेसी क्लब में मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के एक प्रोग्राम में जो ढेरों क्रिकेटर आए थे उनमें से एक विनोद कांबली भी थे। घर वापस जाने लगे तो उनकी जेब में किराया तक नहीं था और घर जाने के लिए एक दोस्त से कुछ पैसे उधार लिए। विनोद कांबली ने कभी नहीं कहा कि ये खबर गलत है। दूसरी- एक व्यक्ति का एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ- चेहरा साफ़ नहीं था पर ये माना गया कि वह और कोई नहीं, विनोद कांबली हैं। नशे की हालत में सड़क पर इधर उधर गिर रहा था वह व्यक्ति। विनोद कांबली ने कहा ये खबर गलत है पर साथ में कहा- ‘अगर मेरे बारे में झूठी बातें फैलाई जा रही हैं, तो मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मेरी पत्नी एंड्रिया बहुत सख्त है। अगर मैं किसी फंक्शन में जा रहा हूं और वह मुझसे शराब न पीने के लिए कहती है, तो मैं बात मानता हूं।’ बहरहाल मुंबई क्रिकेट में ये मानने वाले ज्यादा है कि वे कांबली ही थे। 

टीम इंडिया के जिस खब्बू बल्लेबाज विनोद कांबली ने 54.20 की औसत से 1084 रन के रिकॉर्ड के साथ 17 टेस्ट मैच खेले- 4 शतक और 3 अर्धशतक लगाए (सबसे बड़ा स्कोर 227) और 104 वनडे खेले जिनमें 32.59 की औसत से 2 शतक और 14 अर्द्धशतक के साथ 2477 रन बनाए (सबसे बड़ा  स्कोर 106)- उसके नाम के साथ ऐसी ख़बरें जुड़ने की नौबत ही क्यों आई? विनोद कांबली का किस्सा उन क्रिकेटरों की सबसे बेहतर मिसाल है जो क्रिकेट की बदौलत जल्दी से मिली शोहरत और और कामयाबी को सही तरह से संभाल नहीं पाए- इसलिए ही 23 साल की उम्र में रिटायर भी हो गए। 

1990 के दशक की शुरुआत में कांबली भारतीय क्रिकेट के हॉट स्टार में से एक थे। करियर की सनसनीखेज शुरुआत- पहले 7 टेस्ट में 113.29 की औसत से 793 रन, दो दोहरे शतक (224 और 227) समेत। कोच रमाकांत अचरेकर ने कहा था- बल्लेबाजी में सचिन तेंदुलकर से भी बेहतर है विनोद कांबली। दोनों के कोच अचरेकर सर थे- तेंदुलकर ने उन्हें पूरी दुनिया में मशहूरी दिलाई और कांबली ने? 

सचिन तेंदुलकर लोकप्रियता और बेहतरी की जिस ऊंचाई पर सीढ़ी से चढ़ रहे थे- विनोद कांबली उस ऊंचाई पर पहुंच रहे थे लिफ्ट से। पैसा और मशहूरी से लाइफ स्टाइल एकदम बदल गया। गरीब परिवार के विनोद कांबली- पैसे की तंगी देखी, हर रोज दो वक्त का खाना मिलना भी तय नहीं था और पूरा पेट तब भरते थे जब शारदाआश्रम स्कूल की टीम को स्कूल में खाना मिलता था। वे फटाफट मशहूर हुए तो शराब, सिगरेट, महंगे चश्मे, गले में सोने की चेन, महंगी घड़ी और मिजाज ऐसा कि टीम सीनियर से भी कई बार खराब व्यवहार किया। नतीजा- शौक और मौज मस्ती ने उनकी क्रिकेट और उन्हें- दोनों को गिराया। उन सचिन तेंदुलकर पर भी मुश्किल वक्त में साथ न देने का आरोप लगा दिया- जो दोस्त थे।  टेलेंट थी तभी तो टीम में रिकॉर्ड 9 बार वापसी की पर आखिरकार टीम का दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया। 1996 वर्ल्ड कप से भारत के बाहर होने पर विनोद कांबली का आंसू बहाना, उस वर्ल्ड कप की सबसे चर्चित फोटो में से एक था। इसके बावजूद नहीं संभले। कोच बन सकते थे। आईपीएल ने काम के मौके बनाए पर उनकी गलत मशहूरी ने कहीं फिट नहीं होने दिया। मौज मस्ती में किसी भूमिका को सही तरह नहीं निभाया। क्रिकेट ग्राउंड के दरवाजे बंद, शादी नाकामयाब, दोस्त घटने लगे, फिल्मों में विलेन बने तो फ्लॉप। शान में फिर भी कोई कमी नहीं और इस तरह सब कुछ हाथ से निकल गया। 

आज वही कांबली, दो बच्चों वाले परिवार का खर्चा बीसीसीआई की 30 हजार रुपये की पेंशन से चला रहे हैं। नई लाइफ स्टाइल- सोने की चेन, ब्रेसलेट और महंगी घड़ी गायब, सेल फोन की स्क्रीन एक तरफ से टूटी, बस और लोकल ट्रेन से आना-जाना, दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल सफ़ेद और पतले भी हो गए। एक चॉल में रहते हैं। सिगरेट पीते हैं पर एक ही सिगरेट को टुकड़ों में। शराब अभी भी नहीं छोड़ी।

  2019 में, मुंबई टी 20 लीग में एक टीम के कोच बने- कोविड ने लीग रोक दी। सचिन तेंदुलकर ने तेंदुलकर मिडलसेक्स ग्लोबल एकेडमी से जोड़ा पर घर से नेरुल जाने की दिक्कत में एकेडमी को छोड़ दिया। अब मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन से हाथ जोड़कर, अपील कर रहे है कि काम दो। काम भी भी मिल जाएगा पर सबसे पहले खुद को बदलना होगा। वे कहते हैं- कोई अच्छा काम मिल गया तो शराब भी छोड़ दूंगा। सही वक्त पर बदल जाते तो उनके नाम सिर्फ 17 टेस्ट और 104 वनडे इंटरनेशनल नहीं होते। विनोद कांबली की मिसाल देश की हर क्रिकेट एकेडमी में बताई जानी चाहिए क्योंकि क्रिकेट की बदौलत जो नई लाइफस्टाइल का सपना देख रहे हैं, वे इसे जान कर संभलें। कब तक और कौन-कौन मदद करेगा? आज अगर क्रिकेट बोर्ड से मिलने वाली पेंशन भी न होती तो क्या होता? विनोद कांबली ने, परिवार को पालने के लिए, काम मांगने के लिए मीडिया के जरिए गुहार लगाई तो विश्वास कीजिए उनसे हमदर्दी करने वालों से कहीं ज्यादा हैं, वे जो बोले- ये तो होना ही था! ऐसा क्यों?

चरनपाल सिंह सोबती

One thought on “विनोद कांबली सही वक्त पर बदलते तो उनके नाम सिर्फ 17 टेस्ट और 104 वनडे इंटरनेशनल नहीं होते”

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