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ज्यादा पुरानी बात नहीं है- 8 साल पहले तक विशेषज्ञ ये सवाल पूछ रहे थे कि भारत सही तेज गेंदबाज़ क्यों नहीं पैदा कर पा रहा या लगभग एक सा माहौल होते हुए भी पाकिस्तान को एक के बाद एक टॉप पेसर मिल रहे हैं और भारत को क्यों नहीं? तभी ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 2016 में 5वें वनडे में जसप्रीत बुमरा ने डेब्यू किया। कुछ अजीब सा एक्शन, प्रदर्शन रहा 2/40 और दोनों टीम ने 330+ का स्कोर बनाया। सीरीज के पहले 4 मैच हारने के बाद भारत को जीत मिली और ये मैच भारत के पेस अटैक में बदलाव का प्रतीक बन गया। आज वही बुमराह टेस्ट, वनडे और टी20ई में नंबर 1 बनने वाले किसी भी देश के पहले गेंदबाज बन गए हैं!

पेस अटैक में क्रांति विराट कोहली के कप्तानी संभालने के साथ भी आई- उन्हें अपने तेज गेंदबाजों से प्यार था, उन पर विश्वास था- इसलिए सपोर्ट करते थे। वह जानते थे कि विदेश में जीतने के लिए बेहतर पेस बैटरी की जरूरत है। अगर ओवल में, जब ऑस्ट्रेलिया का स्कोर 76-3 था, बुमरा होते तो न जाने उस ख़ास टेस्ट का नतीजा क्या होता पर ऐसा सोच रहे हैं- यही बहुत है। सच ये है कि बुमराह भारत के सबसे ग्रेट नहीं तो, टॉप तेज गेंदबाज में से एक हैं। स्किल, स्पीड, असर और सबसे ख़ास दूसरी टीम के बल्लेबाजों पर मेंटल प्रेशर बनाने में उन जैसा इस समय कोई नहीं है।

सबूत के लिए ज्यादा पीछे क्यों जाएं? विशाखापत्तनम में इंग्लैंड की दूसरे टेस्ट में 106 रन से करारी हार की सबसे बड़ी वजह- यशस्वी के 200 और शुभमन के 100 से भी ज्यादा- जसप्रीत बुमराह को न खेल पाना। राजकोट टेस्ट के लिए इंग्लैंड के खिलाड़ी अबू धाबी में ब्रेक में जरूर सबसे ज्यादा, बुमराह को खेलने की स्ट्रेटजी के  ‘हॉट टॉपिक’ पर चर्चा कर रहे होंगे। यहां बुमराह के 6-45 और 3-46 ने हैदराबाद में सीरीज के पहले टेस्ट को जीतने का सारा नशा उतार दिया। बुमराह का अब सीरीज रिकॉर्ड- 10.66 औसत से 15 विकेट।

कहां तो इंग्लैंड वाले ये सोचने लग गए थे कि पोप (हैदराबाद में 196) और जो रुट (एशिया की पिचों पर उनके रिकॉर्ड) की बदौलत सीरीज में भारत को कड़ी चुनौती देंगे- वहीं विजाग में उनकी बैटिंग कई सवालों में फंस गई। एशिया में इंग्लैंड के ग्रेट में से एक रूट का सीरीज रिकॉर्ड- 4 पारी में 52 रन और बुमराह ने टेस्ट में 8 बार उनका विकेट लिया है। रिकॉर्ड तो बनते ही गए। कुछ ख़ास :

  • बुमराह के टेस्ट में 9-91, भारत में इंग्लैंड के विरुद्ध, भारतीय तेज गेंदबाज का नया रिकॉर्ड है (इससे पहले : 1934 में चेन्नई में एल अमर सिंह के 8-141)।
  • एक टेस्ट में बुमराह का अपना दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (इससे बेहतर : ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 9/86, मेलबर्न 2018)।  
  • इंग्लैंड के विरुद्ध भारतीय तेज गेंदबाज का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (इससे बेहतर : 1986 में एजबेस्टन में चेतन शर्मा 10/188)। 
  • भारत और इंग्लैंड दोनों में, भारत-इंग्लैंड टेस्ट क्रिकेट में, एक टेस्ट में 9 विकेट लेने वाले अकेले गेंदबाज।

बात सिर्फ 9 विकेट की नहीं- उस डर की है जो बुमराह के बेहतरीन यॉर्कर ने इंग्लिश बल्लेबाजों के दिल और दिमाग में पैदा किया और अकेले दम पर भारत को सीरीज में मुकाबले पर वापस ले आए। भारत बल्लेबाजों और चालाक स्पिनरों के देश से अब तेज गेंदबाजी की भी पहचान है और जसप्रीत बुमराह ने इसे एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। बुमराह खुद उन तेज गेंदबाजों से प्रभावित होते थे जो यॉर्कर से स्टंप्स उखाड़ देते हैं- अब खुद वही कर रहे हैं। ओली पोप के स्टंप्स जैसे उखड़े- इंग्लैंड वाले उसे कभी भूलेंगे नहीं।

मुश्किल पिचों पर भी गजब की गेंदबाजी करने वाले कई दिग्गज हैं- जैसे 1976 में ओवल में माइकल होल्डिंग या वसीम अकरम/वकार यूनिस और अगर वे भी बुमराह के यहां के जादू को देखते तो हैरान रह जाते। यॉर्कर को एक आर्ट बनाने में आज कोई उनकी बराबरी पर नहीं।

पहली पारी में जब स्टोक्स को आउट किया तो 34 टेस्ट में 150 विकेट पूरे हुए- भारतीय तेज गेंदबाज में इस रिकॉर्ड के लिए टेस्ट की गिनती में सबसे तेज। टेस्ट करियर रिकॉर्ड- 20.19 औसत से 155 विकेट और फ्रैंक टायसन के बाद से 50 टेस्ट विकेट लेने वाले किसी भी पेसर ने उनसे कम औसत दर्ज नहीं की है। जेम्स एंडरसन भी यहां चर्चा में पीछे रह गए। टेस्ट इतिहास में कम से कम 100 विकेट लेने वाले किसी भी तेज़ गेंदबाज़ का औसत इतना बेहतर नहीं है। सबसे करीब- ऑस्ट्रेलियाई ग्रेट एलन डेविडसन (20.43 औसत से 186 विकेट) लेकिन वे बुमराह जैसे तेज नहीं थे।

पैट कमिंस की तेज गेंदबाजी कोचिंग में परफेक्ट गेंद है पर अपने छोटे रन-अप के बावजूद बुमराह उनसे भी आगे निकल गए (क्या आप जानते हैं बुमराह का रन अप इतना छोटा क्यों है- घर में जगह ही इतनी थी कि शुरू से रन अप छोटा रखना पड़ा और वही आदत बन गया)। वे पिच के मिजाज से बेखबर, गेंदबाजी करते हैं।

नोट कीजिए- इंग्लैंड ने (2022 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध सीरीज के अलावा) बज़बॉल युग में किसी भी अन्य सीरीज की तुलना में इस सीरीज में सबसे धीमे स्कोरिंग की है। एशिया में सिर्फ एक बार इंग्लैंड ने इस बार के टेस्ट से बड़ा स्कोर बनाया है- 2015 में दुबई में हार वाले टस्ट में 312 रन।

वनडे में यॉर्कर फैशन से बाहर हैं और टेस्ट में बहुत कम हैं, गेंदबाज अब इनकी प्रैक्टिस नहीं करते पर ये पेसर के लिए एक अद्भुत हथियार है- खासकर इसलिए कि आम तौर पर आधुनिक बल्लेबाज आक्रामक इरादे से, ऊंचे बैक-लिफ्ट के साथ खेलते हैं। गेंद रिवर्स-स्विंग कर रही हो तो तेज यॉर्कर क्रीज पर आए नए बल्लेबाज को तो एकदम चकमे में डाल देता है। पोप तो 54 गेंद खेल चुके थे तब तक यानि कि सेट थे- पर उनकी भी वही दुर्दशा हुई। बेन स्टोक्स आउट हुए तो निराशा में बैट जमीन पर मारा- ये एक तरह से बुमराह की क्लास के प्रति सम्मान का तरीका था।

बुमराह के पास स्पीड है, ऊंचा रिलीज है, बिलकुल सही गेंद है जिसे स्विंग और सीम दोनों कर सकते हैं और एशिया हो या एशिया से बाहर- बुमराह ने कभी चिंता नहीं की। चोट के कारण एक साल से ज्यादा बाहर होने से पहले अगर 22 औसत से विकेट ले रहे थे तो वापसी के बाद से 11.2 औसत से। नंबर 1 तो बनना ही था। ये मुकाम आसान नहीं क्योंकि अभी भी सिस्टम गेंदबाज की मदद नहीं करता- जिस बुमराह की इतनी बात कर रहे हैं, उन्हें विजाग टेस्ट में अपना सिर्फ दूसरा टेस्ट एमओएम अवार्ड और 5 साल में पहला अवार्ड (जबकि इस दौर में रिकॉर्ड- 24 टेस्ट में 19.40 औसत, 7 बार 5 विकेट, कुल 106 विकेट) मिला। फिर भी वे हर तारीफ़ के हकदार हैं।

-चरनपाल सिंह सोबती

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