भारतीय क्रिकेट में जो युग नवाब पटौदी के साथ शुरू हुआ- उसके विकेट एक के बाद एक गिरते जा रहे हैं। खुद पटौदी, हनुमंत सिंह, दिलीप सरदेसाई, एकनाथ सोलकर के बाद सलीम दुर्रानी जैसे कुछ नाम और अब इस लिस्ट में बिशन सिंह बेदी का नाम भी जुड़ गया। सभी अपने आप में बेहतरीन क्रिकेटर पर बेदी कुछ अलग थे- क्रिकेट को सम्मान देने और इसे सही भावना के साथ खेलने वाले क्रिकेटरों में से एक। ऐसा नहीं कि कभी गुस्सा नहीं आया पर दिल इतना बड़ा था कि आज उनकी तारीफ जितनी भारत में होती है- उतनी ही भारत से बाहर भी।
उनके गेंद फेंकने के एक्शन को ‘पोएट्री इन मोशन’ कहते थे। वे ‘सरदार ऑफ स्पिन’ भी थे। इनके साथ, वे क्रिकेट को बांटने में विश्वास रखते थे और किसी भी देश के, किसी भी क्रिकेटर के लिए उनके पास टिप्स थीं। वे शायद ऐसे पहले थे जिनके बारे में ये कहा गया कि वे विदेशी स्पिनरों को जो टिप्स देते हैं -उन्हीं से वे भारत के बल्लेबाजों के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं।
77 साल की उम्र, पिछले लगभग दो साल से बीमार थे और करीब एक महीने पहले घुटने की सर्जरी भी हुई थी। परिवार में इस समय पत्नी अंजू, बेटी नेहा और बेटा अंगद (जिसे वे क्रिकेटर बनाना चाहते थे पर वह फिल्म स्टार बना) और उनकी पत्नी नेहा धूपिया के साथ-साथ ग्लेनिथ माइल्स (पहली पत्नी- ऑस्ट्रेलिया से) और उस परिवार से बेटा गवासइंदर (जिसे सुनील गावस्कर से प्रभावित हो ये नाम दिया था) और बेटी गिलिंदर हैं।
सबसे आसान परिचय- क्रिकेट के सबसे बेहतरीन बाएं हाथ के स्पिनरों में से एक, 1967 से 1979 तक 67 टेस्ट और 10 वनडे खेले पर मशहूरी टेस्ट क्रिकेट के लिए है- 28.71 औसत से 266 विकेट और कई साल तक टेस्ट में भारत के लिए सबसे ज्यादा विकेट का रिकॉर्ड उनके नाम रहा।
आज के क्रिकेट प्रेमियों ने भारत की मशहूर ‘स्पिन चौकड़ी’ के बारे में जरूर सूना होगा- इसमें उनके साथ लेगस्पिनर भागवत चंद्रशेखर और ऑफस्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना एवं श्रीनिवास वेंकटराघवन थे। तब यही भारत का अटैक थे- हर पिच, हर मौसम में। पेसर तो सिर्फ गेंद की चमक उतारने या स्पिनर रोटेट करने में मदद की भूमिका ज्यादा निभाते थे। ये नजारा तो कपिल देव के आने के बाद बदला।
जिस दौर में इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेलने का मौका मिलना बहुत बड़ी पहचान मानते थे- बेदी वहां कई साल तक नॉर्थम्पटनशायर के लिए खेले और 20.89 औसत से 434 फर्स्ट क्लास विकेट लिए। इससे उनके करियर रिकॉर्ड में विकेट की गिनती बढ़ी थी- भारत के एकमात्र गेंदबाज जिन्होंने 1500 विकेट लिए। इस गिनती को रिकॉर्ड में ख़ास चर्चा इसलिए मिलती है क्योंकि विजडन में 1500 विकेट लेने वालों का ही करियर रकोर्ड दिया जाता है। वे और भी आगे खेलते पर जॉन लीवर पर आरोप की कीमत चुकाई और काउंटी ने न सिर्फ उनका कॉन्ट्रैक्ट बीच में तोड़ दिया- उन्हें परंपरागत ‘बेनिफिट’ तक नहीं दिया।
वे खुद कमाल के गेंदबाज थे तो टेलेंट के पारखी भी थे- चारों स्पिनरों में से अकेले जो एक्टिव कोच रहे, कई साल तक अपना समर कैंप लगाते रहे और जब वे टीम इंडिया के पहले क्रिकेट मैनेजर बनाए गए तो कई क्रिकेटर उनके सख्त फिटनेस शेड्यूल को झेल नहीं पाए। उनके एक्शन को अद्भुत मानते थे- ऐसा जैसे क्लासिकल म्यूजिक हो। गेंदबाज को बीट तो वे करते ही थे- वे वास्तव में गेंद फेंकने से पहले ही बल्लेबाज को ‘डबल माइंड’ में फंसाकर बीट कर देते थे-आर्थर मैली की तरह। इयान चैपल इसका सबूत हैं।
उनकी एक और ख़ास बात का जिक्र जरूरी है- उसे से, मुझे भी उनके बहुत नजदीक आने का मौका मिला। आज के क्रिकेटर, क्रिकेट खेलते तो हैं- क्या क्रिकेट ‘पढ़ते’ भी हैं? क्रिकेट के बारे में पढ़ने का समय कहां है और आदत भी नहीं है। बेदी खूब पढ़ते थे- सिर्फ मुफ्त में मिली किताबें नहीं, खरीद कर भी। 1984 में उनके बेनिफिट मैच के लिए जो सोविनियर छपा था- उसके लिए आर्टिकल उन्होंने खुद चुने थे। शायद ही इस समय किसी क्रिकेटर के पास उन जैसा किताबों का कलेक्शन हो।
उनके रंगीन पटके भी बड़े चर्चित थे- कई बार उनसे पूछा जाता था कि वे ये कैसे तय करते हैं कि मैच में कब किस रंग का पटका बांधना है? जब वे क्रिकेट में आए तो पगड़ी पहन कर ही खेलते थे, पटका बांधना तो बाद में शुरू किया और ये इतने लोकप्रिय हुए कि सिख युवा के लिए फैशन बन गए और इन्हें तब आम तौर पर ‘बेदी पटका’ भी कहते थे।
नार्थ जोन और दिल्ली की क्रिकेट का स्तर ऊंचा उठाने में उन्होंने जो मेहनत की, दिग्गज क्रिकेट अधिकारियों की क्रिकेट बपौती को खत्म करने के लिए जो टकराव किया उसके किस्से भारतीय क्रिकेट में हमेशा चर्चा में रहेंगे। वे शायद भारत के अकेले ऐसे कप्तान रहे जिसने अपने पूरे ‘कैप्टैन्स अलाउंस’ को टीम के क्रिकेटरों पर खर्च किया।
कई बात हैं। कई यादें हैं। वे सबसे अलग थे।
– चरनपाल सिंह सोबती