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तो नागपुर की पिच के बारे में जो सोचा जा रहा था वह सही निकला। ऑस्ट्रेलिया टीम का ये डर भी सही रहा कि अब भारत में टेस्ट जीतना, इंग्लैंड में टेस्ट जीतने से भी ज्यादा मुश्किल है। इसके लिए भारत की टीम की मजबूती तो जिम्मेदार है ही- ऑस्ट्रेलिया वाले पिच फैक्टर को भी बड़ा उछालते हैं। इस बार भी, टीम के टूर के लिए रवाना होने से पहले ही, पिच पर शोर शुरु हो गया और ऑस्ट्रेलिया में सोच सिर्फ यही थी कि सीरीज का फैसला टेलेंट से ज्यादा, पिच के मिजाज पर होगा।

मजे की बात ये है कि पिछले कुछ सालों में, ऑस्ट्रेलिया के भारत में टेस्ट के लिए ये पहली बार नहीं कि पिच पर शोर हुआ। सच ये है कि जरूरी नहीं कि उस पर वे हारे ही हों। आखिरकार दोनों टीम उसी एक पिच पर ही खेलती हैं।

1969-70 की सीरीज के लिए बिल लॉरी की जो टीम आई उसे विश्व चैंपियन कहते थे। कई दिग्गज थे टीम में। उसी में- जब लॉरी ने, टेस्ट शुरू से पहले, फिरोज़शाह कोटला की पिच देखी तो खुश हो गए और बोले थे- टेस्ट 3 दिन में ख़त्म होगा और मुझे ओखला में फिशिंग का बड़ा अच्छा मौका मिल जाएगा। उन दिनों में, ओखला में यमुना का किनारा बड़ा खूबसूरत पिकनिक स्पॉट होता था।

उनकी ये बात सच निकली और वे फिशिंग के लिए गए पर टेस्ट हार कर। टेस्ट 3 नहीं, 4 दिन (जिनमें खेल हुआ) चला पर जीती भारत की टीम और उस पिच पर बिशन बेदी और प्रसन्ना दोनों ने टेस्ट में 9-9 विकेट लिए। भारत के स्पिनर 20 में से 19 विकेट ले गए। पिच जैसी नजर आ रही थी, उससे बिलकुल अलग निकली और लॉरी पिच समझने में गलती कर गए।

ऐसा ही झटका मेहमानों को मुंबई 2004 टेस्ट में लगा था। मुंबई में आख़िरी मैच था और पिच दिखने में फ्लैट थी पर ऐसा टर्न लिया कि टेस्ट दो दिनों के वास्तविक खेल से थोड़े ज्यादा समय में खत्म हो गया था। आखिरी सैशन में 13 विकेट गिरे। युवा माइकल क्लार्क 6-9 के आंकड़े दर्ज कर गए तो आसानी से सोच सकते हैं कि पिच कैसी थी?

ये इतनी घटिया पिच थी कि किसी पारी में 210 रन भी नहीं बने और एक पारी तो 100 से भी कम की थी। कप्तान रिकी पोंटिंग ने टेस्ट में हार के बाद कहा- ‘यह टेस्ट विकेट के आसपास भी नहीं था।’

जरूरी नहीं कि स्पिनिंग ट्रेक का झटका भारत को न लगा हो। मद्रास (अब चेन्नई) 1969 के पांचवें टेस्ट से पहले, ऑस्ट्रेलिया 2-1 से आगे था। आम तौर पर मद्रास की पिच को उन सब सालों में ‘विदेशी’ पिच गिनते थे- मिजाज में तेज और तेज गेंदबाजों को ही मदद मिलती थी। टेस्ट का प्रोग्राम ऐसा बना कि क्रिसमस का दिन बीच में आ गया और खेल हुआ। ठीक है ऑस्ट्रेलिया ने चौथे दिन लंच के एक घंटे बाद टेस्ट 77 रन से जीत लिया पर ये वो टेस्ट था जो भारत जीत सकता पर आखिर में हारे।

टेस्ट था तो 6 दिन का पर पिच से ऐसा टर्न मिल रहा था कि 4 दिन में ही खत्म हो गया। मैच से पहले लगातार बारिश थी मद्रास में जिससे पिच की तैयारी पर असर पड़ा- पिच खराब जरूर हुई। इस फैक्ट को दोनों टीम नजरअंदाज कर गई थीं। गिरे 39 में से 26 विकेट स्पिनरों ने लिए। भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों की तरफ से एक-एक स्पिनर ने टेस्ट में 10-10 विकेट लिए। दूसरी पारी में जब प्रसन्ना की बदौलत स्कोर 24-6 था तब तो टेस्ट क्रिकेट में सबसे कम स्कोर के नए रिकॉर्ड की चर्चा शुरू हो गई थी।

ऐसे ही, 2017 में पुणे में टेस्ट से पहले, मेहमान टीम को प्रैक्टिस के लिए मिली तेज पिच पर टेस्ट खेले स्पिन को मदद देने वाली पिच पर। नागपुर के इस साल के टेस्ट की तरह से, हर किसी ने कहा था कि कहेंगे तो ये कि स्पिन पिच भारत की मदद के लिए बनी थी पर 19 सालों में, भारत में टेस्ट में एकमात्र जीत ऑस्ट्रेलिया के हिस्से में आई क्योंकि पुणे में डस्टबॉल पिच पर, भारत ने, श्रीराम की कोचिंग और बाएं हाथ के स्पिनर स्टीव ओ’कीफ की तैयारी पर ध्यान नहीं दिया था।

मेहमान टीम भारत आने से पहले दुबई गई थी और वहां स्पिन पिचों पर जो स्कीम बनाई- उनसे वे पुणे में भारत से बेहतर स्पिन अटैक साबित हुए। टेस्ट में स्टीव ओ’कीफ के नाटकीय 12 विकेट थे। क्यूरेटर को कहा तो था कि पुणे की पिच, 2004 के मुंबई डेक जैसी तैयार करो पर ऑस्ट्रेलियाई घात के लिए तैयार थे।

मजे की बात ये है कि इसी नागपुर में 2004 में मेजबान के साथ घोटाल हो गया। ये तो इस मामले में ऐतिहासिक टेस्ट था। टेस्ट की पिच पर, आपसी टकराव हो गया था बीसीसीआई के उस समय के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया और शशांक मनोहर की अध्यक्षता वाली विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के बीच। इनके टकराव के चलते, क्रिकेट एसोसिएशन ने बोर्ड से मिले इशारों को मानने से इंकार कर दिया। मांगा था स्पिनिंग ट्रैक- दे दिया पेस ट्रैक यानि कि वैसी पिच जो सही मायने में ऑस्ट्रेलियाई थी- तेज गेंदबाजों के लिए लाइव ग्रास, पेस, बाउंस और न समझ आने वाला टर्न जिसका जेसन गिलेस्पी, ग्लेन मैक्ग्रा और ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी लाइन-अप ने पूरा फायदा उठाया।

ये मानने वाले कम नहीं कि ऑस्ट्रेलिया के लिए पिच इतनी मददगार थी कि ऐसा लगा कि यह जान-बूझकर भारत की हार के लिए बनाई थी- जीत का 342 रन का अंतर इसी का सबूत है।
ठीक है मेजबान का अधिकार मान लिया है कि पिच अपने अंदाज में बनाओ पर जरूरी नहीं कि हर बार दांव सीधा पड़े।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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