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बीसीसीआई की हाई प्रोफाइल रिव्यू मीटिंग, जो नए साल की पहली सुबह ही हुई, उसमें फिटनेस पैरामीटर पर भी चर्चा की गई। दीपक चाहर और जसप्रीत बुमराह जैसे गेंदबाजों ने भारतीय क्रिकेटरों की फिटनेस को चिंता में बदल दिया है- ये दोनों लंबे समय से टीम बाहर हैं। इस मसले पर खास ये तय हुआ कि टीम इंडिया में चयन के लिए यो-यो फिटनेस टेस्ट क्लीयर करना जरूरी यानि कि यो-यो (एरोबिक फिटनेस टेस्ट) की वापसी। जब विराट कोहली कप्तान थे तो इसे शुरू किया था पर बाद में ढील दे दी। साथ में डेक्सा (बोन स्कैन टेस्ट) क्लीयर करना भी जरूरी। जानकार बार-बार कह चुके हैं कि आज के समय में यो-यो और डेक्सा स्केन कोई बहुत अनोखी जरूरत नहीं- ये वह युग है जहां स्पोर्ट्स साइंस हर आधुनिक खेल की रीढ़ है और यो-यो तो महज धीरज (endurance) को मापने की बुनियादी शुरुआत है।

साथ में बढ़ती इंजरी लिस्ट को देखते हुए, बीसीसीआई ने एनसीए को आईपीएल 2023 के दौरान इन खिलाड़ियों की फिटनेस पर नजर रखने और वर्कलोड मैनेज करने के लिए फ्रेंचाइजी के साथ काम करने का निर्देश दिया। इसका मतलब है- रवींद्र जडेजा, जसप्रीत बुमराह और हार्दिक पांड्या जैसों पर ख़ास नजर रहेगी। ये क्या, रोहित शर्मा, वाशिंगटन सुंदर, मोहम्मद शमी और केएल राहुल भी इंजरी लिस्ट में रहे हैं।
इस माहौल में, फिटनेस की बहस में एक नया नाम जुड़ा सरफराज खान का। जब उनके पिछले तीन सीजन में मिलाकर 2400 से ज्यादा रन बनाने के बावजूद, उन्हें अभी तक भारत की रेड-बॉल टीम में जगह न मिलने की  बहस हो रही थे तो उसी में, उनकी फिटनेस का सवाल उठा। देखने से ही पता चल जाता है कि वे शरीर से भारी हैं पर क्या इससे स्टंप्स के बीच भागने में दिक्कत को कभी किसी ने नोट किया? उनकी शारीरिक फिटनेस पर सवाल कोई रोक नहीं सकता पर क्या इसे वजह मान लें, उन्हें लगातार रन बनाने के बावजूद, न चुनने की?

सुनील गावस्कर ने टेस्ट टीम से सरफराज खान की उपेक्षा पर साफ़ कहा- क्रिकेटरों को उनके आकार पर नहीं, बैटिंग या गेंदबाजी के आधार पर चुनना चाहिए। वे बोले- अगर सिर्फ स्लिम और ट्रिम लोगों को चुनना तो फैशन शो से कुछ मॉडलों को चुनो- उनके हाथ में एक बैट/गेंद दे दो और टीम में शामिल कर लो। यदि खिलाड़ी अनफिट है तो लगातार शतक नहीं लगा सकता- इसलिए क्रिकेट फिटनेस सबसे ख़ास है। यो-यो टेस्ट या और कोई भी टेस्ट करो पर सिर्फ इन्हें टीम चुनने का आधार मत बनाओ- इस तरह के टेस्ट और क्रिकेट के लिए फिट होने में फर्क है और क्रिकेट फिट होना ज्यादा जरूरी है।

भारतीय क्रिकेट की, इस समय सबसे बड़ी मुश्किल खिलाड़ियों की फिटनेस का मुद्दा है। जब बिन्नी बीसीसीआई अध्यक्ष बने थे तो उन्होंने भी इस पहलू पर चिंता जाहिर की थी। अब, इस पर एक्शन का समय है- ख़ास तौर पर इसलिए चूंकि ये 50-50 वर्ल्ड कप का साल है। गेंदबाजों, बल्लेबाजों और फील्डर को इस पर समय लगाना होगा। दिसंबर 2001 के भारत-इंग्लैंड मोहाली टेस्ट को याद कीजिए। हालांकि भारत ने 3 टेस्ट की सीरीज के शुरुआती टेस्ट में नासेर हुसैन की टीम को हरा दिया पर टीम शीट में जवागल श्रीनाथ, जहीर खान, वेंकटेश प्रसाद, अजीत आगरकर और आशीष नेहरा में से किसी का भी नाम न होना सबसे बड़ी हैरानी था। उसी दौर में, टीम के फिजियो एंड्रयू लिपस ने एक युवा गेंदबाज को ‘आलसी’ भी कहा था। जब बोर्ड अध्यक्ष डालमिया ने कोच राइट और लिपस से इस मुद्दे पर बात की तो वहीं से फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत हुई थी। क्रिकेट फिटनेस को सबसे जरूरी माना और टीम का रिकॉर्ड सामने है

हर खिलाड़ी की अपनी-अपनी मुश्किल अलग है। सुनील गावस्कर कहते हैं कि पैरामीटर में वे कभी बहुत फिट नहीं थे पर ‘क्रिकेट फिट’ थे। सब जानते हैं कि उन्हें शुरू से शिन स्प्लिट की तकलीफ थी और ग्राउंड के एक-दो चक्कर लगाने से भी पिंडली के आसपास की मसल्स जकड़ जाती हैं और चलने में दर्द होता है। क्या वे कभी पिच पर रन लेने के लिए भागने से रुके? कौन सबसे ज्यादा दौड़ा, इस आधार पर क्रिकेट टीम नहीं चुन सकते- क्रिकेट फिटनेस ज्यादा जरूरी है। सुनील गावस्कर फिटनेस ड्रिल में 15 मिनट से ज्यादा नहीं भागते थे पर तीन दिनों तक बैटिंग कर सकते थे। अनिल कुंबले, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली जैसे भी फिटनेस में टॉप नहीं थे पर बेहतरीन खिलाड़ी साबित हुए। हरभजन सिंह जब खेलते थे तो यो-यो टेस्ट को ‘नया नाटक’ कहा था। तब बोले थे- ये मेरे लिए क्रिकेट में नहीं है, फुटबॉल और हॉकी प्लेयर्स के लिए है क्योंकि इस टेस्ट में आगे-पीछे दौड़ते हैं, जो क्रिकेट में कभी नहीं होता। इसी टेस्ट की वजह से अंबाती रायुडू जैसा फॉर्म में चल रहा बल्लेबाज, टीम इंडिया में  जगह नहीं बना पाया और वर्ल्ड कप की एक बेहद चर्चित स्टोरी बना ये किस्सा।

जानकार कहते हैं- क्रिकेट जैसे खेल में इसे सेलेक्शन का आधार बनाना है तो हमेशा सावधान रहना होगा। हर खिलाड़ी, कम से कम इसके सबसे नीचे के लैवल (16.1 स्पेक्ट्रम) पर तो हो क्योंकि सभी को सबसे नीचे की फिटनेस की जरूरत होती है लेकिन ये टीम सेलेक्शन का आधार नहीं हो सकता। कितनी हैरानी की बात है कि एक खिलाड़ी कई ओवर गेंदबाजी कर सकता है, शतक और दोहरे शतक लगा सकता है या 5/10 विकेट ले सकता है, लेकिन इन टेस्ट को पास नहीं कर पाता तो टीम में सेलेक्शन नहीं होगा।

अगर टेस्ट रिपोर्ट पर टीम चुननी है तो सेलेक्शन कमेटी में बायो-मैकेनिक्स विशेषज्ञ या मेडिकल साइंस वालों को रखो- क्रिकेट की समझ वालों को नहीं। ठीक भी है- जब दो खिलाड़ियों के बीच मुकाबला हो तो ये विशेषज्ञ बेहतर बता पाएंगे कि दोनों में से कौन ज्यादा फिट है और रन या विकेट पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए। जो खुद फिट नहीं रहे- वे इन टेस्ट की ज्यादा वकालत कर रहे हैं। क्रिकेट की किताबों के पेज पलटिए- कोलिन मिलबर्न या इंजमाम जैसे कई मिल जाएंगे जो ‘मोटे’ थे पर कमाल के क्रिकेटर थे। इस दलील पर सरफराज का करियर शुरू होने से पहले ही खराब मत करो।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

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