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मशहूर फिल्म ‘दीवार’ का एक डायलॉग आइकॉनिक बन गया। शशि कपूर ने फिल्म में अपने बड़े भाई अमिताभ बच्चन से कहा था- ‘मेरे पास माँ है।’ दुनिया, भारत के डब्ल्यूटीसी/आईसीसी टाइटल न जीतने के बारे में चाहे जो कहती रहे, बीसीसीआई का जवाब है- ‘हमारे पास आईपीएल है।’ ये मानने वालों की कमी नहीं भारत की, हाल के सालों में, कोई बड़ा टाइटल न जीतने की नाकामयाबी के लिए, आईपीएल बहुत कुछ जिम्मेदार है। आईपीएल के पैसे ने खिलाड़ियों और बीसीसीआई दोनों को क्रिकेट को प्रमोट करने और ‘ब्ल्यू कैप’ पहनने के गौरव से हटा दिया है- भारत का कोई खिलाड़ी नहीं कह सकता कि उसने पैसे का लालच न कर, डब्ल्यूटीसी फाइनल की तैयारी की।

ऐसी बात को साफ़-साफ़ कहने से भूतपूर्व कप्तान और चीफ सिलेक्टर दिलीप वेंगसरकर हिचकिचाते नहीं। द ओवल हार के बाद वे बोले- ‘सिर्फ आईपीएल होना और करोड़ों की कमाई ही उपलब्धि नहीं होनी चाहिए।’ क्या बीसीसीआई पर इससे कोई असर पड़ेगा?

टीम इंडिया की 209 रन की शर्मनाक हार के बाद कई तरह की गलतियों को बताने, बदलाव या आईपीएल के असर के नुकसान की चर्चा है पर वेंगसरकर का आरोप है कि बीसीसीआई ने देश में सही टेलेंट को पहचानने और उसे बेहतर लेवल तक लाने के ख़ास मुद्दे को लगभग नजर अंदाज ही कर दिया है। इसीलिए नई टेलेंट सामने नहीं आ रही जो सीनियर टीम को टॉप क्रिकेटर दे। सबसे ज्यादा दोष बीसीसीआई के नजरिए का है।

दावा है कि देश में इतनी टेलेंट है कि 50 टॉप खिलाड़ियों का पूल है और भारत एक साथ, लगभग बराबर स्तर की दो टीम खिला सकता है। तब भी ओवल टेस्ट के दौरान हर चर्चा में जसप्रीत बुमराह, ऋषभ पंत और श्रेयस अय्यर की ख़राब फिटनेस के असर का जिक्र था क्योंकि इनकी जगह लेने वाले सही खिलाड़ी नहीं हैं। तो पूल या दो टीम बनाने का दावा किस काम आया?

दिलीप वेंगसरकर सिलेक्टर्स में सही नजरिए की कमी को बहुत कुछ जिम्मेदार मानते हैं- ‘मैंने पिछले 6-7 सालों में जिन चयनकर्ताओं को देखा है, उनके पास भारतीय क्रिकेट की बेहतरी के लिए न तो सही नजरिया है, न ही खेल के बारे में पूरी जानकारी है और न ही क्रिकेट की समझ है।’ इसलिए भविष्य के कप्तान और क्रिकेटर तैयार नहीं हो रहे।’ एक कप्तान की मौजूदगी में ही भविष्य के कप्तान ग्रूम किए जाते थे- आज इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं कि अगर रोहित शर्मा को टेस्ट क्रिकेट में कप्तान न बनाएं तो उनकी जगह कौन?

इसीलिए वेंगसरकर का सवाल है- ‘बेंच स्ट्रेंथ कहां है?’ सिर्फ आईपीएल होना, मीडिया राइट्स से करोड़ों रुपये कमाना ही बीसीसीआई की एकमात्र उपलब्धि नहीं होनी चाहिए। आज जब ढेरों नए पुराने खिलाड़ी किसी न किसी तरह आईपीएल से जुड़ कर अपने बैंक अकाउंट को देख रहे थे- वेंगसरकर मुंबई में जूनियर क्रिकेट के साथ व्यस्त हैं। दिलीप  वेंगसरकर एकेडमी टीम आज भी एक्सपोजर टूर पर जाती है और इंग्लैंड के एक ऐसे ही टूर में यशस्वी जायसवाल ने जो क्रिकेट खेला- उसी से सीधे मुंबई अंडर-16 टीम में एंट्री मिली थी। उसके बाद से पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वेंगसरकर का मानना है कि युवा क्रिकेटरों के लिए, फोकस पर नजर और लालच में न पड़ना सबसे ख़ास है। इसके उलट बीसीसीआई के पास तो अंडर 19 और इंडिया ए जैसी टीमों के लिए टूर /सीरीज के आयोजन की फुर्सत नहीं। जिस टीआरडीडब्ल्यू (Talent Resource Development Wing) जैसी स्कीम से एमएस धोनी और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ियों को पहचाना था- वैसी कोई स्कीम शुरू करने की फुर्सत अब बीसीसीआई के पास क्यों नहीं है?

इतिहास गवाह है भारत को बड़ी हार भूलने में ज्यादा समय नहीं लगता- वर्ल्ड कप या वर्ल्ड टी20 में हार मिले तो कुछ ज्यादा और टेस्ट में कुछ कम। सच ये है कि जो हो रहा है उसमें टेस्ट क्रिकेट की जरूरतों को नजरअंदाज करना सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। शेड्यूलिंग, ढेरों मैच , ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की चाह और इसी में फिटनेस का ध्यान न रखना- सब जिम्मेदार हैं। फ्रेंचाइजी क्रिकेट ने टेस्ट को और कमजोर कर दिया। जो चर्चा वर्ल्ड कप फाइनल में धोनी के 6, रवि शास्त्री की ऑडी, सचिन तेंदुलकर के डेजर्ट तूफ़ान और जोगिंदर शर्मा की आखिरी गेंद की होती है- वीवीएस लक्ष्मण के 281 या ऋषभ पंत की ब्रिस्बेन इनिंग्स की नहीं। 1999 के चेन्नई टेस्ट में, भारत की पाकिस्तान से हार में तेंदुलकर का सकलैन मुश्ताक की ‘दूसरा’ पर आउट होना उतना दुख नहीं देता जितना जावेद मियांदाद का चेतन शर्मा की गेंद पर आखिरी गेंद पर लगाया 6 का शॉट। इसलिए युवा क्रिकेट प्रेमी जो देख रहा है- उसी की तरफ ही तो आकर्षित होगा। आईपीएल से टेस्ट टीम में एंट्री मिल सकती है- टेस्ट से आईपीएल में नहीं।

इसलिए सबसे पहले तो बीसीसीआई तय करे कि उनका फोकस क्या है?

– चरनपाल सिंह सोबती 

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