2020 की एक खबर की भारत में कहीं चर्चा नहीं हुई- शायद इसलिए कि इसे भारत के लिए बेमतलब माना था। मशहूर हेज फंड मैनेजर स्टीव कोहेन ने बेसबॉल टीम न्यूयॉर्क मेट्स में 2.4 बिलियन डॉलर की हिस्सेदारी खरीदी- इस नार्थ अमेरिकी फ्रेंचाइजी और किसी मनी मैनेजर के खेलों में इन्वेस्टमेंट के लिए ये नया रिकॉर्ड था। ये टीमों में, प्राइवेट पैसा लगाने की शुरुआत का वह कॉन्ट्रैक्ट था जो भविष्य बता रहा था। कोरोना ने इसमें और मदद की- इंडस्ट्री बंद हो रही थीं तो ऐसा पैसा फ्रेंचाइजी टीमों पर लगने लगा। आईपीएल इसी का एक पड़ाव है।
मुंबई इंडियंस (रिलायंस इंडस्ट्रीज), चेन्नई सुपर किंग्स (इंडिया सीमेंट्स), लखनऊ सुपर जायंट्स (RPSG ग्रुप), रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (डियाजियो), दिल्ली कैपिटल्स (JSW ग्रुप और GMR ग्रुप) और सनराइजर्स हैदराबाद (सन ग्रुप) भारत के उद्योग घरानों की टीम हैं। गुजरात टाइटंस और राजस्थान रॉयल्स इनसे अलग हैं- सिर्फ इसलिए नहीं कि दोनों ने अपने पहले सीजन में टाइटल जीता बल्कि दोनों में विदेशी इन्वेस्टमेंट भी है। गुजरात टाइटन्स उसी दौर में बनी जिसकी यहां बात कर रहे हैं।
एक तरफ 2023 आईपीएल खेल रहे थे तो एक बड़ी खबर पर किसी ने ध्यान नहीं दिया- अमेरिकी फंड मैनेजर टाइगर ग्लोबल की नजर आईपीएल पर है और वे राजस्थान रॉयल्स में हिस्सेदारी खरीद रहे हैं। टीम की वैल्यू 650 मिलियन डॉलर मानकर बात-चीत हो रही है और वे इसमें 40 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट करना चाह रहे हैं। रिकॉर्ड के लिए- 2021 में जब रेडबर्ड पार्टनर्स ने इसी टीम में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी तो टीम वैल्यू 250 मिलियन डॉलर पर सौदा हुआ था। इन दोनों गिनती को नोट कीजिए तो अपने आप अंदाजा हो जाएगा कि आईपीएल टीम की वैल्यू किस तरह बढ़ रही है- और यही वजह है कि विदेशी इनवेस्टमेंट को आईपीएल में सब पॉजिटिव नजर आ रहा है।
2021 में ही, एक और फंड मैनेजर सीवीसी कैपिटल पार्टनर्स ने अकेले ही, आईपीएल में, अहमदाबाद फ्रैंचाइज़ी के लिए 5,625 करोड़ रुपये (745 मिलियन डॉलर) खर्च कर दिए- सब ने कहा ये बड़ा महंगा सौदा है पर ये सोच गलत साबित हो चुकी और आज गुजरात टाइटन्स टीम की वैल्यू कई गुना बढ़ चुकी है। प्राइवेट इक्विटी फर्म तेजी से खेलों में इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं- सीवीसी कैपिटल ने टेनिस, फुटबॉल, रग्बी और वॉलीबॉल जबकि रेडबर्ड ने फुटबॉल और बेसबॉल में भी इन्वेस्टमेंट किया है।
आईपीएल इन जैसा ही मुनाफे का सौदा है क्योंकि आईपीएल का अपना वैल्यूएशन 2020 के मुकाबले 75% बढ़कर 11 बिलियन डॉलर हो गया है और 2021 में बनी नई टीमों को छोड़कर बाकी सभी मुनाफे में हैं। आरसीबी, दिल्ली कैपिटल्स या पंजाब किंग्स भले टाइटल न जीतें, मुनाफा कमा रही हैं। सिर्फ 15 साल में, दुनिया में, किसी स्पोर्ट्स प्रॉपर्टी की वैल्यू इस तरह से नहीं बढ़ी। किसी विदेशी इन्वेस्टमेंट की ख़ास तौर पर राजस्थान रॉयल्स में दिलचस्पी की वजह ये है कि इस टीम में पहले से टुकड़ों में हिस्सेदारी है और नजर किसी जरूरतमंद का हिस्सा खरीदने पर रहती है। पिछले कुछ सालों का रिकॉर्ड देख लीजिए- ज्यादातर बिक्री इसी टीम में हैं।
आसान सा गणित ये है कि इस समय बीसीसीआई से मीडिया राइट्स में हिस्से के हर साल 240 करोड़ रुपये मिल रहे हैं और बदले में खिलाड़ियों पर 100 करोड़ और मैचों पर 15-20 करोड़ रुपये खर्च कर भी दिए तो भी मुनाफा है। स्पांसर से आने वाला पैसा अलग है जो बीसीसीआई को दिए जाने वाले शेयर से कहीं ज्यादा है। इसीलिए जिन उद्योग ग्रुप के पास टीम है वे अब टीम बेचेंगे नहीं और टुकड़ों वाली टीम में ही हिस्सा मिल सकता है- इस लिस्ट में राजस्थान रॉयल्स, पंजाब किंग्स और कोलकाता नाइट राइडर्स ख़ास नाम हैं।
बाजार के जानकार ये मान रहे हैं कि क्रिकेट की लोकप्रियता ऐसे ही रही तो अगले 5-10 साल में टीम वैल्यूएशन दोगुना हो सकता है- तो ऐसे में जरूरत न हो तो हिस्सा बेचने की कोई जरूरत नहीं है। यहां दिल्ली कैपिटल्स टीम का जिक्र जरूरी है। जब जीएमआर ने 2018 में जेएसडब्ल्यू को दिल्ली फ्रेंचाइजी में 50% हिस्सेदारी बेची, तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें कैश की जरूरत थी, इसलिए नहीं कि घाटा हो रहा था। तब से वे विदेशी लीग में नई टीमें बना चुके हैं। इसी तरह से राजस्थान रॉयल्स अब एक आईपीएल टीम नहीं, एक अच्छा ब्रांड है- कैरेबियन प्रीमियर लीग और दक्षिण अफ्रीका के SA20 में भी वे टीम के मालिक हैं। उनकी तीन देशों (भारत, यूके और यूएई) में 5 एकेडमी चल रही हैं और एक एडटेक प्लेटफॉर्म है (इसमें 16 प्रोग्राम का ऑफर है)।
नया दौर आ रहा है- इस पर नजर रखिए।
- चरनपाल सिंह सोबती