1983 से चर्चा शुरू करें और 1983 एवं 2011 में वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम की संरचना का पोस्टमार्टम करें तो ये बात समझ में आ जाती है कि ये दोनों टीम ऑलराउंडर की मौजूदगी के मामले में बड़े फायदे में थीं। क्रिकेट में, बहुत पुरानी जरूरत है प्लेइंग वर्ल्ड इलेवन में एक अच्छे ऑलराउंडर की- उस की मौजूदगी, टीम को 12 खिलाड़ियों वाला बना देती है यानि कि एक अतिरिक्त बल्लेबाज/गेंदबाज। हां, ऑलराउंडर की जरूरत तब महसूस नहीं होती जब बल्लेबाज/गेंदबाज अपनी भूमिका में परफेक्ट हों और विकेटकीपर भी बैट से योगदान दे रहा हो। इस पैमाने में हाल के सालों की टीम इंडिया कहां फिट होती है?
इंग्लैंड के भूतपूर्व कप्तान नासेर हुसैन तो इसी ऑलराउंडर की कमी को, टीम इंडिया की वर्ल्ड कप में चुनौती की, सबसे कमजोर कड़ी मान रहे हैं। उनकी नजर में- टीम इंडिया को एक ऐसे ऑलराउंडर की सख्त जरूरत है- जो बल्लेबाज हो और उपयोगी गेंदबाजी करे, न कि ऐसा सीमर की जो बल्लेबाजी कर सकता हो। उन्होंने मिसाल के तौर पर बेन स्टोक्स/कैमरून ग्रीन/मिचेल मार्श का नाम भी बता दिया। वैसे इंग्लैंड के लिए खुद स्टोक्स वर्ल्ड कप 2023 में सिर्फ बल्लेबाजी ही करेंगे पर स्टोक्स 2019 वर्ल्ड कप जीत में, ऑलराउंडर के तौर पर ही, चमके थे। न्यूजीलैंड के विरुद्ध हाल ही में खत्म हुई वनडे सीरीज में वे बल्लेबाज के तौर पर ही खेले और 52,1 और 182 के स्कोर बनाए। ऐसा बल्लेबाज मिल जाए तो उसे परफेक्ट ही तो कहेंगे।
टीम इंडिया के लिए ऐसी जरूरत की चर्चा में एकदम हार्दिक पांड्या का नाम सामने आता है- सीम-बॉलिंग ऑलराउंडर पर निराशा ये कि हार्दिक खुद शायद इस रोल के प्रति अब गंभीर नहीं। रिकॉर्ड (13 सितंबर 2023 तक)- 81 वनडे में 1758 रन और 76 विकेट पर 9 जुलाई 2019 के बाद किसी वनडे में 10 ओवर नहीं फेंके (जबकि इससे पहले फेंकते थे), सिर्फ दो वनडे में 8 या उससे ज्यादा ओवर फेंके और सिर्फ बल्लेबाजी देखें तो वे बेन स्टोक्स नहीं हैं।
यही चर्चा एक दूसरे नजरिए से- असल में ये जरूरत इसलिए भी है कि मौजूदा टीम इंडिया में टॉप ऑर्डर बल्लेबाज, गेंदबाजी नहीं करते- इसी से टीम ‘ऑलराउंडर’ के फेक्टर में कजोर पड़ जाती है। जब शुद्ध बल्लेबाज भी कुछ गेंदबाजी करे तो टीम को मजबूती मिलती है और वनडे में ऐसा टेलेंट टीम को बैलेंस कर देता है। ऑलराउंडर न होते हुए भी गेंद से भी कीमती योगदान देते हैं।
भारत के पास, 2000 और 2010 के दशक में इस मामले में ऐसे टॉप बल्लेबाज थे जो गेंदबाजी भी करते रहे- सचिन तेंदुलकर ने 18000+ रन बनाए तो 154 विकेट भी लिए। इसी तरह सौरव गांगुली (100 विकेट) मीडियम पेस, युवराज सिंह (111 विकेट) खब्बू स्पिन, वीरेंद्र सहवाग (96 विकेट) और सुरेश रैना (36 विकेट) ऑफ स्पिन में बड़े काम आए।
गौतम गंभीर युवराज को यूं ही 2011 वर्ल्ड कप जीत में हीरो नहीं कहते- बैट के साथ चमके और 9 मैच में 15 विकेट भी लिए। इसीलिए प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बने थे। ऐसे गेंदबाज भले विकेट न लें- गेंदबाजों को रोटेट करने, विपक्षी बल्लेबाजों की एकाग्रता ख़राब करने (जिससे गलत शॉट खेल जाएं) में बड़े काम आते हैं। इस फार्मूले को 1983 की वर्ल्ड कप जीतने वाली कपिल देव की टीम पर फिट करें तो- जिन 13 ने बल्लेबाजी की, उनमें से सिर्फ गावस्कर, किरमानी, श्रीकांत, वेंगसरकर और यशपाल ने गेंदबाजी नहीं की। रवि शास्त्री इसीलिए वर्ल्ड कप टीम के 15 में अक्षर और शार्दुल को लेने की वकालत कर रहे थे। संदीप पाटिल भी उनसे सहमत हैं और कहा- 1983 टीम में कई ऑलराउंडर थे, इससे विविधता मिलती है और आप किसी को भी चुन सकते हैं।
मौजूदा टीम में ये बात नहीं- टॉप ऑर्डर में रोहित शर्मा, शुभमन गिल, विराट कोहली, रुतुराज गायकवाड़, श्रेयस अय्यर, केएल राहुल, सूर्यकुमार यादव, ईशान किशन और हार्दिक पांड्या और इनमें से अकेले हार्दिक ऑलराउंडर जबकि राहुल एवं किशन विकेटकीपर। जो भी वर्ल्ड कप में टॉप 6 में होंगे- किसी से भी गेंद के साथ कुछ करने की उम्मीद नहीं कर सकते। रोहित शर्मा और विराट कोहली के नाम क्रमशः 8 और 4 विकेट लेकिन दोनों ने वनडे में पिछले लगभग 6 साल में गेंदबाजी नहीं की है। गिल, गायकवाड़ और सूर्यकुमार जैसों को तो ये भी नहीं मालूम होगा कि वनडे में गेंदबाजी कैसे करते हैं? श्रेयस अय्यर- 42 वनडे में कुल 37 गेंद।
इसीलिए टीम के गेंदबाजी कोच पारस म्हाम्ब्रे ने भी टीम में कामचलाऊ गेंदबाज की जरूरत का जिक्र किया था। नए यशस्वी जायसवाल और तिलक वर्मा अंडर-19 में उपयोगी गेंदबाज थे पर अगर इंटरनेशनल क्रिकेट में कप्तान ने उन पर भरोसा न किया तो वे भी ‘गेंदबाज’ नहीं रहेंगे। इस समय टीम की सबसे बड़ी जरूरत है- ऐसे बल्लेबाज जो गेंदबाजी भी कर सकें। मजे की बात ये है कि जिस आईपीएल से टेस्ट खिलाड़ी निकाल रहे हैं उसे ऑलराउंडर/कामचलाऊ गेंदबाज देने योग्य छोड़ा नहीं- इम्पैक्ट प्लेयर के तौर पर जरूरत में बाहर से शुद्ध गेंदबाज मिल सकता है तो किसी बल्लेबाज को गेंदबाजी की तकलीफ क्यों दें?
- चरनपाल सिंह सोबती