क्रिकेट टीम का मतलब 11 खिलाड़ी। जब एक टीम के दो बल्लेबाज़ बैटिंग करते हैं तो दूसरी टीम के 11 खिलाड़ी गेंदबाज़ी/ फील्डिंग में शामिल होते हैं। इसके बावजूद इस्लामाबाद यूनाइटेड और पेशावर जाल्मी के बीच एलिमिनेटर 2 मैच के दौरान एक बड़ी अजीब और विवादास्पद बात देखने को मिली।
टॉस जीतकर जाल्मी के कप्तान वहाब रियाज ने यूनाइटेड को पहले बल्लेबाजी के लिए बुलाया। उनकी पारी के 12वें ओवर में एक अजीबोगरीब बात हुई। ज़ालमी के लंबे खब्बू तेज गेंदबाज मोहम्मद इरफ़ान बाउंड्री लाइन के करीब नीचे बैठे फिजियो से इलाज करवा रहे थे क्योंकि उन्हें कुछ दर्द हो रहा था। अंततः यह फैसला हुआ कि वह आगे नहीं खेल पाएंगे। इस बीच हैदर अली सब्स्टिट्यूट फील्डर की ड्यूटी लेने वहां आ चुके थे। तभी अंपायरों ने कहा जाल्मी का सब्स्टिट्यूट फील्डर ग्राउंड में नहीं आ सकता। इस पर अंपायरों और जाल्मी के अनुभवी खिलाड़ियों वहाब रियाज़ और शोएब मलिक के बीच इरफ़ान की चोट को लेकर बहस हुई। तब पता लगा कि अंपायर इरफ़ान की चोट पर ‘संतुष्ट’ नहीं थे और उनके हिसाब से जो तमाशा इरफ़ान ने किया, उसके लिए उनकी जगह कोई सब्स्टिट्यूट ग्राउंड में नहीं आ सकता। क्या थी अंपायरों की सोच?
* इरफान ने तब तक बिना दिक्कत, अपना गेंदबाजी स्पेल पूरा कर लिया था (4 ओवर में 1 विकेट 21 रन पर)। * अब आगे वे सिर्फ फील्डर ही थे और वे एक घटिया फील्डर हैं। * इसलिए अंपायरों को शक था कि चोट तो महज एक बहाना है – इस बहाने एक बेहतर फील्डर को ग्राउंड में लाने की स्कीम बन गई।
नतीजा ये रहा कि जाल्मी को 10 खिलाडियों के साथ ही खेलना पड़ा। इस बीच न्यूट्रल डॉक्टर ने इरफ़ान की चोट को सही ठहरा दिया था। जब ये बात अंपायरों को बताई गई तो उन्होंने सब्स्टिट्यूट की इजाजत दे दी। मजे की बात ये है कि अब जाल्मी ने हैदर अली के बजाय खालिद उस्मान मोहम्मद को इरफ़ान का सब्स्टिट्यूट बनाकर भेजा। मैच की कमेंट्री कर रहे जिम्बाब्वे के इंटरनेशनल क्रिकेटर पोम्मी म्बंगवा ने साफ़ कहा कि अंपायरों को इरफ़ान पर भरोसा नहीं है। 15 वें ओवर में सब्स्टिट्यूट फील्डर मिला। ये मसला सिर्फ इस मैच का नहीं है। ऐसा तो किसी भी मैच में हो सकता है कि अपने घटिया फील्डर को छिपाकर सब्स्टिट्यूट ले लिया जाए। इरफ़ान पूरी फिटनेस के बिना इस मैच में खेले और मैच के दौरान चोट सिर्फ बहाना है – अंपायरों की इस सोच की एक वजह ये भी थी कि इरफ़ान इससे एक हफ्ते पहले इस्लामाबाद के विरुद्ध फिट न होने के कारण ही नहीं खेले थे।
सब्स्टिट्यूट के क्रिकेट लॉ में बड़ा साफ़ लिखा है कि सब्स्टिट्यूट तभी आ सकता है जब उस टीम का खिलाड़ी मैच के दौरान घायल हो गया हो। आम तौर पर इस तरह के विवाद होते नहीं पर मिसाल मौजूद हैं।
देखिए :1910 -11 में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध एक टेस्ट के दौरान अंपायरों ने नहीं, दक्षिण अफ्रीका के कप्तान ने सब्स्टिट्यूट के आने पर आपत्ति कर दी थी – दलील वही थी कि जिसकी जगह सब्स्टिट्यूट माँगा जा रहा है, वह टेस्ट खेलने के लिए पहले से फिट ही नहीं था। * 1907 में केंट के कप्तान ईडब्लू डिलन ने वूस्टरशायर को दूसरा सब्स्टिट्यूट लाने की इजाजत एक शर्त पर दी – जो फील्डिंग नहीं कर सकता, वह बैटिंग भी नहीं करेगा। वूस्टरशायर ने इस शर्त को नहीं माना और एक पूरे दिन सिर्फ 10 खिलड़ियों के साथ फील्डिंग की। * 1976 मैं इंग्लैंड – वेस्टइंडीज ट्रेंट ब्रिज टेस्ट में जब वेस्टइंडीज ने 12 वें खिलाड़ी के तौर पर कोलिस किंग को ग्राउंड पर बुलाया तो इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रेग ने इस पर आपत्ति की और उनका कहना था कि पहले से किंग को 12 वें खिलाड़ी के तौर पर नामित नहीं किया गया था। इसके बाद ही क्रिकेट लॉ में स्पष्ट किया गया कि ऐसा करना जरूरी नहीं है। यही वजह है कि जाल्मी ने अपने सब्स्टिट्यूट को बदल लिया। ऐसे कई किस्से हैं।
आखिर में एक सच्चा किस्सा जो सब स्पष्ट कर देगा। महिला क्रिकेट के एक मैच में एक फील्डर को गेंद के पीछे भागने में बड़ी दिक्कत हो रही थी। उसके लिए सब्स्टिट्यूट माँगा गया यह कहकर कि वह गर्भवती है। अंपायर ने उनकी जगह सब्स्टिट्यूट की इजाजत नहीं दी – अंपायर की दलील थी कि जिस ‘वजह’ से सब्स्टिट्यूट माँगा जा रहा है – वह इस मैच के दौरान नहीं हुई!
– चरनपाल सिंह सोबती
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