शेन वार्न की पहचान सिर्फ ऑस्ट्रेलियाई लेग-स्पिन गेंदबाज के तौर पर नहीं थी- आल टाइम सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में से एक के बिलकुल सही दावेदार थे। 145 टेस्ट मैचों में 708 विकेट का रिकॉर्ड तो अद्भुत है ही, उनका क्रिकेट में योगदान इससे कहीं ज्यादा था- इसीलिए 52 साल की उम्र में उनकी मृत्यु की खबर ने पूरी क्रिकेट की दुनिया को झटका दिया। वह किसी भी खेल की सबसे प्रभावशाली शख्सियत में से एक थे- अपने खेल और जीवन में जो किया, बड़े पैमाने पर किया। अगर क्रिकेट में उनके एक सबसे बड़े योगदान का नाम लेना हो तो लेग-स्पिन गेंदबाजी को पुनर्जीवित करने का जिक्र होगा। 1990 के दशक में टेस्ट क्रिकेट में उनके आने के समय, ये आर्ट लगभग गायब हो रही थी। वे उस ऑस्ट्रेलिया टीम में आए जिसने पहले ही लगातार एशेज सीरीज जीत का रिकॉर्ड बना दिया था। उनके समय में ऑस्ट्रेलिया ने अपने सबसे कामयाब दौर में से एक को देखा।
बचपन में क्रिकेट उनका पहला प्यार नहीं था- ऑस्ट्रेलियाई रूल्स फुटबॉल, टेनिस और स्विमिंग आगे थे क्रिकेट के। वे तो सेंट किल्डा के लिए फुटबॉलर बनना चाहता थे लेकिन जब 19 साल का होने पर क्लब ने रिलीज कर दिया गया तो क्रिकेट को अपनाया। इसके बाद सीनियर क्रिकेट में आने में देर नहीं लगी- जनवरी 1992 में भारत के विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया टीम में आ गए। हालांकि उस पहले मैच में कुछ नहीं किया और टीम से बाहर कर दिए गए पर अगली सर्दियों में ऑस्ट्रेलिया को वेस्टइंडीज पर शानदार जीत दिलाई- उनका स्कोर 143-1 से 219 रन पर ऑल आउट हो गया था। न्यूजीलैंड में तीन टेस्ट में 17 विकेट लिए और तब विरोधी कप्तान मार्टिन क्रो ने उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ लेग स्पिनर कहा था।
इसके बाद नया दौर शुरू हुआ। 1993 में ओल्ड ट्रैफर्ड में एशेज के पहले टेस्ट में बॉल ऑफ द सेंचुरी फेंकने के बाद तो उनकी वजह से ‘सर्वश्रेष्ठ स्पिनर एवर’ के खिताब के लिए बहस शुरू हो गई। उस टेस्ट में माइक गैटिंग को जो पहली गेंद फेंकी उसे हमेशा याद किया जाएगा- पिच के दो-तिहाई रास्ते में गेंद लेग-साइड पर थी, फिर एकदम टर्न लिया और ऑफ स्टंप की बेल्स उड़ा दीं। गेटिंग खड़े ही रह गए- किसी असंतोष या निराशा में नहीं, इस अविश्वास में कि गेंद इतना टर्न भी ले सकती है।
उस समय कुछ ने इसे ‘बॉल फ्रॉम हैल’ कहा पर धीरे-धीरे ये ‘बॉल ऑफ द सेंचुरी’ बन गई। 1993 की उस एशेज में ये वॉर्न के 34 विकेटों में से पहला विकेट था और टेस्ट करियर में भी 195 इंग्लिश विकेटों में से पहला। इस ‘बॉल ऑफ द सेंचुरी’ को लेग स्पिन को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। अब्दुल कादिर ने 1980 के दशक के दौरान क्रिकेट की सबसे मुश्किल आर्ट को कायम रखा। मुश्ताक अहमद और अनिल कुंबले दोनों ने वार्न से दो साल पहले 1990 में टेस्ट डेब्यू किया था। वार्न ने इस आर्ट को ऐसी चर्चा दिलाई कि ढेरों युवा लेग स्पिन फेंकने लगे।
2000 में, वार्न को विजडन अल्मनैक ने फाइव क्रिकेटर्स ऑफ द सेंचुरी में से एक नामित किया- एक ऐसी तारीफ़ जिसे किसी ने गलत नहीं कहा। वार्न ने 1990 के दशक में 25.7 की औसत से 351 विकेट लिए।
वॉर्न 21वीं सदी में और बेहतर रहे- 357 विकेट पहले से कम औसत पर। हर 64 गेंदों पर विकेट का रिकॉर्ड, हर 51 गेंद पर एक विकेट बन गया। 1998/99 में कंधे के ऑपरेशन के बाद, वार्न ने फ्लिपर फेंकने में मुश्किल का सामना किया और गुगली को तो छोड़ ही दिया। इसके बजाय लेग-ब्रेक में महारत ने उन्हें नई पहचान दी। 2005 में एजबेस्टन में एंड्रयू स्ट्रॉस को आउट करना एक ऐसा नजारा था कि ओल्ड ट्रैफर्ड में गैटिंग का आउट होना फिर से याद आ गया।
और भी बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसने उन्हें चर्चा में रखा। मैच फिक्सिंग में नाम आया जब एक श्रीलंकाई सट्टेबाज को पिचों और मौसम के बारे में जानकारी देने के लिए पैसे लिए। उस समय उनकी प्रतिष्ठा को बड़ा नुकसान पहुंचा था। एक साल के लिए सस्पेंड। इसी तरह वार्न कभी ऑस्ट्रेलिया के कप्तान नहीं बने। वार्न ने स्पिन गेंदबाजों को वन डे क्रिकेट में कामयाब साबित किया। टी 20 की बात करें तो 2008 में पहले इंडियन प्रीमियर लीग टाइटल के लिए राजस्थान रॉयल्स के कप्तान वे ही थे। हैम्पशायर के साथ इंग्लैंड में एक प्रभावी और लोकप्रिय कप्तान और कोच साबित हुए। लिज़ हर्ले के साथ उनके संबंध गॉसिप पत्रिकाओं में खूब चर्चा में रहे। लिव लाइफ किंग साइज- करिश्माई, मस्ती-प्रेमी और कमेंटेटर बने तो जो ठीक लगा, वह बोला।
वार्न ने अपनी मौत से लगभग 12 घंटे पहले ट्विटर पर अपनी पोस्ट में रॉड मार्श को श्रद्धांजलि दी थी- क्या मालूम था कि उनके साथ क्या होने वाला है। वार्न के 15 साल के इंटरनेशनल करियर में 708 टेस्ट विकेट- सिर्फ मुथैया मुरलीधरन ने उनसे ज्यादा विकेट लिए। जब द हंड्रेड फ्रैंचाइज़ी द लंदन स्पिरिट के कोच के तौर पर इंग्लैंड में थे तो कोरोनावायरस से उन्हें भी नहीं छोड़ा। सचिन तेंदुलकर ने श्रद्धांजलि में ठीक लिखा- ‘भारत में उनकी अलग जगह और पहचान थी।’
ऐसे खिलाड़ी, जो चार अलग-अलग ऑस्ट्रेलियाई कप्तानों के लिए ‘ड्रीम प्लेयर’ थे। ये कहना गलत नहीं होगा कि वॉर्न की गेंदबाजी पर सिर्फ सचिन तेंदुलकर ही हावी रहे- और कोई भी नहीं। क्रिकेट में ऐसे प्रभावशाली गेंदबाज की कमी की चर्चा हमेशा होगी।
- चरनपाल सिंह सोबती