तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया और जो सोचा था उससे भी ज्यादा मिला बीसीसीआई को। बीसीसीआई के इतिहास की जिन कुछ तारीखों को ख़ास गिना जाता है- उनमें 15 सितंबर, 2022 भी जुड़ गई। किसी नए फैसले के लिए नहीं- कुछ पुराने फैसले पर पानी डालने के लिए। मामला क्या है इसकी विस्तार से चर्चा कर चुके हैं :
बीसीसीआई का मौजूदा संविधान जस्टिस आरएम लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया था। अब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और हेमा कोहली की दो सदस्य की बैंच ने जो ख़ास सुनाया :
- बीसीसीआई के संविधान में संशोधन की इजाजत।
- जरूरी कूलिंग-ऑफ अवधि की शर्त में बदलाव और इससे सीधे मौजूदा प्रेसिडेंट सौरव गांगुली और सेक्रेटरी जय शाह के लिए बड़ी राहत ।
कूलिंग ऑफ की पिछली शर्त : स्टेट स्तर या बीसीसीआई में या दोनों को मिलाकर जो 6 साल ऑफिशियल- उसके लिए, अगले 3 साल कूलिंग ऑफ यानि कि इन दोनों में से किसी में कोई पद नहीं।
नई शर्त : 3-3 साल के दो टर्म बीसीसीआई ऑफिशियल के तौर पर हो सकते हैं, भले ही उससे पहले स्टेट एसोसिएशन में दो टर्म ऑफिशियल रहे हों। उसके बाद अगले 3 साल कूलिंग ऑफ। इस तरह अब कूलिंग-ऑफ शुरू होने से पहले एक ऑफिशियल लगातार 12 साल (स्टेट स्तर और बीसीसीआई में 6-6 साल) काम कर सकता है। ये संशोधन सीधे सौरव गांगुली और जय शाह को एक और टर्म के लिए बीसीसीआई में रहने की इजाजत देता है। दोनों, स्टेट और बीसीसीआई में एक-एक टर्म पूरा कर चुके हैं। ये संशोधन न होता तो दोनों बीसीसीआई से बाहर हो जाते।
- संविधान के क्लॉज 45 में संशोधन की इजाजत नामंजूर। हर बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट की इजाजत जरूरी। हां, बदलाव को एजीएम में मंजूर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
- ‘पब्लिक सर्वेंट’ को फिर से बीसीसीआई में ऑफिशियल बनने की इजाजत। इस नई ‘इजाजत ‘ के दायरे में सिर्फ मंत्री और सरकारी कर्मचारी- यानि कि एमपी और एमएलए बीसीसीआई में ऑफिशियल बन सकते हैं। इस तरह हाल ही में राज्यसभा सदस्य बने, बोर्ड वाइस प्रेसिडेंट राजीव शुक्ला के लिए राहत और वे अपने पद पर टिके रहेंगे।
तो हासिल क्या हुआ पिछली सख्ती से? पीछे झांकें तो सच ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा कमेटी बनाई तो उसने नई सिफारिशें लिखी बीसीसीआई में पिछली गुटबाजी और प्रभावशाली लोगों की ‘बपौती’ खत्म करने के लिए। भूमिका नए संविधान ने बांधी पर अक्टूबर 2019 में, सौरव गांगुली और जय शाह बीसीसीआई की राजनीति में, दो पूरी तरह से अलग गुटों के समर्थन से ही आए थे। चलो, इससे गांगुली और शाह की जोड़ी को एक और टर्म का मौका मिल गया पर संकेत ये है कि और बदलाव के पूरे आसार हैं। गांगुली को स्टेट एसोसिएशन से पूरा समर्थन मिल नहीं रहा (या इसके लिए माहौल तैयार कर दिया)- इसलिए जय शाह नए प्रेसिडेंट और सौरव गांगुली के लिए आईसीसी का रास्ता। इन दोनों का पहला टर्म घरेलू खिलाड़ियों के मुआवजे के ढांचे को बदलने, आईपीएल अधिकारों की बिक्री और नया रोडमैप, 2023 से महिला आईपीएल और कोविड में भी क्रिकेट की कोशिशों के लिए याद किया जाएगा। कमियां भी रहीं- घरेलू क्रिकेट का स्तर गिरा, राहुल जौहरी के टर्म से पहले बीसीसीआई से इस्तीफे पर नए सीईओ को लाने की जगह, आईपीएल से हेमांग अमीन को ले आए- इसकी इजाजत नहीं थी, सेलेक्शन कमेटी मजाक बनी- कोई स्पष्टीकरण नहीं, जिसे चाहे चुनते रहो, कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं ये बताने के लिए किसे क्यों चुना या नहीं चुना।
मजे की बात ये कि दोनों के लिए दूसरा टर्म मंजूर हो गया पर बीसीसीआई के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि अब तक कोई भी प्रेसिडेंट तीन साल से ज्यादा नहीं टिका। अब भी गांगुली गए तो यही होगा। बीसीसीआई एजीएम अक्टूबर में होने की संभावना है और बदलाव की पूरी उम्मीद। जहां तक गांगुली का सवाल है, हालांकि वह प्रेसिडेंट बने रहने के योग्य हैं पर बोर्ड की राजनीति का समीकरण उनका साथ नहीं दे रहा। पहले भी वह, पहली पसंद नहीं, ‘समझौता’ ज्यादा थे। दूसरी ओर शाह, के लिए लाइन क्लियर- स्टेट एसोसिएशन का समर्थन और हाल फिलहाल कोई मुकाबले पर नहीं। मौजूदा ट्रेजरर, धूमल नए सेक्रेटरी की रेस में सबसे आगे हैं। कर्नाटक के सेक्रेटरी संतोष मेनन का नाम संयुक्त सचिव जयेश जॉर्ज को बदलने के लिए चर्चा में है।
* आईसीसी में, बीसीसीआई के प्रतिनिधि की उम्र पर 70 साल वाली शर्त हटा दी : बीसीसीआई की ये दलील काम कर गई कि ‘बड़े बुजुर्गों’ के पास बेहतर नेटवर्किंग है और बातचीत में ज्यादा वसूलने की पावर। इस तरह पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन फिर से सुर्ख़ियों में। उनकेअंदर सालों से ये इच्छा है कि फिर से आईसीसी में जाएं- वे प्रभावशाली हैं, आज की क्रिकेट समझते हैं और भारतीय क्रिकेट की बेहतरी ही सोचेंगे। श्रीनिवासन जब आईसीसी बोर्ड में थे तो भारत को क्रिकेट के पावरहाउस के तौर पर पहचान मिली थी- उन्होंने ही ‘बिग थ्री’ (भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड) को आईसीसी की कमाई में बड़े हिस्से वाली पॉलिसी को शुरू कराया था।
शशांक मनोहर (एक टर्म बचा है) और मौजूदा खेल मंत्री अनुराग ठाकुर, एकदम दावेदार बन कर मुकाबले को रोचक बना दें तो कोई हैरानी नहीं होगी। शरद पवार भी हैं पर शायद वे इस उम्र में फिर से दुबई में आईसीसी हेड ऑफिस में जाने के इच्छुक नहीं होंगे। श्रीनिवासन को मौका मिलना बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि जय शाह के साथ उनका मौजूदा समीकरण क्या है? ये क्यों भूल जाएं कि बृजेश पटेल का अगले कुछ महीनों में आईपीएल प्रेसिडेंट का टर्म पूरा हो रहा है, उम्र 70 साल से कम, अनुभवी क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर और भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 70 साल वाली शर्त हटा दी पर ये कहां लिखा प्रतिनिधि 70 से ऊपर ही होना चाहिए?
आईसीसी के फ्रंट पर देखें तो भी सारी टाइमलाइन सही है। नवंबर में एक नए प्रेसिडेंट ने आना है- बशर्ते मौजूदा प्रेसिडेंट, न्यूजीलैंड के ग्रेगर बार्कले एक्सटेंशन लेने पर राजी न हो जाएं। वे इसके हकदार हैं पर हाल फिलहाल संकेत ये है कि वे जाना चाहते हैं। गांगुली तो पहले भी आईसीसी में टॉप पोजिशन के दावेदार हो सकते थे। वे जरूरी शर्तों को भी पूरा करते हैं- दावेदार पूर्व अध्यक्ष/अध्यक्ष हो या कम से कम एक आईसीसी बोर्ड मीटिंग में हिस्सा लिया हो।
तो हैं न आने वाले दिन जोरदार चर्चा के !
– चरनपाल सिंह सोबती
सरजी बहुत बढीया आपने विश्लेषण किया और सही तरी के से हमे बेहद्द अच्छि जानकारी देने के लीये धन्यवाद . ऐसे नियम का बदलाव हो गया तो फिर लोढा कमिटी बनाई क्यू ?
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