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सुनील गावस्कर भारतीय क्रिकेट के लिटिल मास्टर और टॉप बल्लेबाज, जिनके नाम ढेरों रिकॉर्ड थे टेस्ट करियर खत्म करते हुए पर इनमें से सबसे ज्यादा टेस्ट (125), सबसे ज्यादा लगातार टेस्ट (106), सबसे ज्यादा रन (10,122), सबसे ज्यादा शतक (34), सबसे ज्यादा 50+ स्कोर (79) और सबसे ज्यादा 100 पार्टनरशिप (58) जैसे रिकॉर्ड से मालूम हो जाता है कि वे कैसे बल्लेबाज थे।

जन्म 10 जुलाई 1949 को और गजब के हिम्मत वाले अन्यथा लगभग 34 साल की उम्र तक बिना हेलमेट या हेड गियर पहने अपनी पीढ़ी के सबसे बेहतर तेज और स्विंग गेंदबाजों- बॉब विलिस, जेफ थॉमसन, डेनिस लिली, रिचर्ड हैडली, इमरान खान, एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग और मैल्कम मार्शल को खेल नहीं पाते और ढेरों रन न बनाए होते।

इस गजब के करियर में परिवार के योगदान की सच्चाई से इंकार नहीं कर सकते। इसीलिए जैसे ही सुनील गावस्कर की माँ मीनल गावस्कर के निधन की खबर आई तो उनके कामयाब करियर में मां के योगदान की बात को सभी ने माना। 90+ उम्र में निधन  हुआ- सुनील तब कमेंट्री ड्यूटी पर थे बांग्लादेश में। ठीक है वे क्रिकेट में, इंग्लैंड के मशहूर ग्रेस भाइयों की माँ  गारथा ग्रेस और पाकिस्तान के मशहूर मोहम्मद भाइयों की माँ अमीर बी की तरह से मशहूर तो नहीं थीं वे पर मीनल गावस्कर का न सिर्फ, अपने इकलौते बेटे सुनील को क्रिकेटर बनाने में योगदान था- साथ ही साथ उन्होंने सुनील की पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दिया।

कुछ मौकों पर तो सुनील को पढ़ाई की कीमत पर क्रिकेट नहीं खेलने दिया। सनी के बचपन के दोस्त और बाद में मुंबई टीम में साथ-साथ खेले मिलिंद रेगे उनके पड़ोस में ही रहते थे। मीनल, न सिर्फ सुनील, मिलिंद को भी पकड़ कर साथ में बैठा देती थीं पढ़ने के लिए – इस मामले में बड़ी सख्त थीं। इस चक्कर में वे दोनों कई बार प्रेक्टिस के लिए भी नहीं जा पाए। कहते हैं इसी वजह से उन्होंने इन दोनों को 1967 में इंडियन स्कूल टीम के साथ इंग्लैंड टूर पर भी नहीं जाने दिया। मिलिंद को तो टूर टीम का कप्तान बनाने की बात चल रही थी। अब मिलिंद कहते हैं कि सुनील की माँ की ये सख्ती, और उस वजह से पढ़ाई  दोनों के बड़े काम आई।

इतना ही नहीं , सुनील की क्रिकेट में भी उनका योगदान था। सबसे पहले आती है विरासत की बात। जन्म हुआ तो स्टाफ़ की गलती से बच्चे बदल गए अस्पताल में ही- पर बच्चे के बाएं कान के पास के बर्थमार्क ने बचा लिया। उनकी रगों में क्रिकेट थी- अंकल माधव मंत्री चार टेस्ट खेले और उन्होंने भी सुनील को क्रिकेट को अपनाने के लिए प्रेरित किया। आज परिवार क्रिकेट में और बड़ा हो चुका है-  छोटी बहन कविता ने टॉप बल्लेबाज गुंडप्पा विश्वनाथ से शादी की और इकलौती संतान रोहन (जन्म फरवरी 1976) 11 वनडे इंटरनेशनल खेले। आज सुनील और रोहन दोनों ही कमेंटेटर हैं।

सुनील की दूसरी बहन नूतन एल्बीज़ क्रिकेट क्लब के लिए खेली जो मुंबई में पहला महिला क्रिकेट क्लब था- इंडियन वूमन क्रिकेट एसोसिएशन की ऑनरेरी सेक्रेटरी भी रहीं। यहां तक कि सुनील की शादी में भी एक क्रिकेटर का योगदान था- टीम इंडिया के खब्बू स्पिनर दिलीप दोषी ने मार्शनील और सनी को 1973 में मिलवाया था।

‘सनी डेज़’ में खुद सुनील गावस्कर ने ये जिक्र किया है कि जब वे बैट पकड़ना सीख रहे थे तो घर में ही खेलना शुरू किया। उनके लिए पहली गेंदबाज/कोच, उनकी माँ थीं जो टेनिस गेंद से क्रिकेट खिलाती थीं। एक बार सुनील के एक शॉट से गेंद सीधे उनकी माँ के नाक में लगा। खून बह निकला और सुनील डर गए पिटाई का सोच कर। दूसरी तरफ माँ ने सुनील को कुछ भी नहीं कहा। खून साफ़ किया, दवा लगाई और फिर से क्रिकेट प्रेक्टिस शुरू कर दी। सुनील गावस्कर बहुत छोटे थे और डरे हुए थे जबकि माँ क्रिकेट की शौकीन थीं और अपने बेटे को एक अच्छा क्रिकेटर बनने के लिए प्रेरित करने के लिए उत्सुक थीं। इसीलिए छोटी सी चोट से टूटने नहीं दिया सुनील को।  

1970-71 रणजी सीजन में सुनील मुंबई टीम में रिजर्व खिलाड़ियों में थे। गुजरात के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी मैच के लिए टीम में उनका नाम नहीं था। इसीलिए वे बिना किट, मैच की सुबह सीसीआई पहुंच गए। वहां पता चला वे खेल रहे हैं तो मां ने ही, भागकर उनकी किट को स्टेडियम समय पर पहुंचाया था और वे मैच खेल सके।

मीनल गावस्कर के लिए वे सबसे बड़ी उम्मीद थे- सीमित साधन के बावजूद उनके लिए क्रिकेट की सब जरूरतें पूरी कीं। इसीलिए वे तनाव में आ जाती थीं।  एक बार ये माना कि जब उनका बेटा बल्लेबाजी कर रहा होता था तो वह खाना नहीं खा पाती थीं। यह बात उन्होंने, अपनी मराठी में लिखी किताब ‘पुत्र वावा ऐसा (ऐसा बेटा होना चाहिए)’ में बताई। इसी तरह जब 1971 के वेस्टइंडीज टूर के लिए सुनील गावस्कर के चयन की चर्चा चल रही थी तो टीम की खबर सुनने के लिए वे उतने ही तनाव में थीं  जितने सुनील। जब वीनू मांकड़ ने टीम में चुने जाने की खबर दी तो सब बेहद खुश थे। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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