2023-24 के भारत में घरेलू क्रिकेट सीजन की तैयारी में त्रिपुरा से एक बड़ी खबर- अपने समय के तेज-तर्रार ऑलराउंडर लांस क्लूजनर इस सीजन के लिए कोच-सलाहकार होंगे। अकेले रणजी टीम के कोच नहीं होंगे- सीजन में कुल 100 दिन राज्य की सभी टीमों के लिए उपलब्ध जिसमें ज्यादा फोकस रणजी ट्रॉफी टीम पर होगा।
हर टीम के लिए अलग से, कोच भी होंगे पर वे क्लूजनर के राज्य क्रिकेट के ब्ल्यू प्रिंट में काम करेंगे। क्रिकेट में बेहतर बनने के साथ-साथ, राज्य में क्रिकेट को बढ़ावा देने वाली स्कीम भी शुरू होंगी और क्लूजनर का अनुभव इस में मदद करेगा।
राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के एक कोच-सलाहकार की जरूरत के विज्ञापन के जवाब में, विदेशियों में से क्लूजनर और डेव व्हाटमोर ने आवेदन किया पर बाद में डेव ने नाम वापस ले लिया। 51 साल के क्लूजनर दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर और अपनी तेज और विस्फोटक बल्लेबाजी और मीडियम पेस गेंदबाजी के लिए मशहूर, 1999 वर्ल्ड कप में मैन ऑफ द टूर्नामेंट थे। साथ में, 1996 और 2004 के बीच 49 टेस्ट और 171 वनडे खेले हैं।
इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने के बाद, अफगानिस्तान और जिम्बाब्वे के साथ-साथ टी20 क्रिकेट की कई फ्रेंचाइजी के कोच रहे- कुछ साल पहले, एक फ्रेंचाइजी के कोच थे तमिलनाडु प्रीमियर लीग में भी। राज्य क्रिकेट एसोसिएशन की सोच ये है कि उन के अनुभव से त्रिपुरा के क्रिकेटरों को काफी मदद मिलेगी। वे तो क्लूजनर, का त्रिपुरा क्रिकेट का कोच-सलाहकार बनने के लिए राजी होना ही बड़ी बात मान रहे हैं।
लांस क्लूजनर, ने काम शुरू कर दिया है। अगरतला के पहले ट्रिप में, त्रिपुरा टीम के पिछले सीजन के कप्तान रिद्धिमान साहा से मिले और क्रिकेट के बुनियादी ढांचे का जायजा लिया। पिछले रणजी सीजन में त्रिपुरा टीम एलीट ग्रुप डी में 7 मैच से 11 पॉइंट के साथ नंबर 6 थी और क्रिकेट स्तर पर बहुत काम की जरूरत है।
अब मुद्दा ये है कि भारतीय क्रिकेट में, किसी विदेशी को कोच-सलाहकार के तौर पर बुलाना कितना सही रहता है? बीसीसीआई ने सीनियर टीम के लिए जॉन राइट, ग्रेग चैपल और गैरी कर्स्टन जैसे मशहूर कोच जोड़े और आईपीएल में भी विदेशी कोच पहले सीजन से नजर आ रहे हैं पर राज्य स्तर की क्रिकेट के साथ काम करना इससे बिलकुल अलग है
खिलाड़ियों के साथ वास्तव में बुनियादी स्तर पर क्रिकेट की बेहतरी के लिए काम की जरूरत होती है। ये जादू नहीं और इसलिए ये उम्मीद बिलकुल बेकार है कि क्लूजनर, टुकड़ों में 100 दिन त्रिपुरा आएंगे और टीम को ऐसा बना देंगे कि मुंबई और सौराष्ट्र जैसी टीम का मुकाबला करे। सवाल कम्युनिकेशन यानि कि भाषा के फर्क का भी है। विदेशी क्रिकेटर-कोच को जब बुलाते हैं तो आम बोल-चाल की भाषा का फर्क, उनकी बात को उस असरदार तरीके से समझने नहीं देता, जो जरूरी है। पाकिस्तान वाले सीनियर टीम के साथ की इस दिक्कत को अब छिपाते नहीं। त्रिपुरा राज्य के अपने क्रिकेटर, क्लूजनर की बात कितने असरदार तरीके से समझ पाएंगे- ये सवाल है। इसीलिए रणजी स्तर पर विदेशी कोच लाने का प्रयोग अब तक कोई ख़ास कामयाब नहीं रहा है।
ऐसा लगता है भारत में, घरेलू क्रिकेट में, विदेशी कोच-सलाहकार लाने के पिछले अनुभव पर त्रिपुरा ने ध्यान नहीं दिया। पंजाब ने शुरुआत की और पाकिस्तान से, 2004-05 सीजन में, इंतिखाब आलम को लाए। पहले सीजन में रणजी फाइनल खेले पर बाद के सालों में कुछ ख़ास नहीं किया। डेव व्हाटमोर- केरल टीम (2017-18 में पहली बार रणजी क्वार्टर फाइनल खेले पर उसके बाद कुछ ख़ास नहीं), माइकल बेवन- उड़ीसा टीम (2011-12 सीजन, लगभग नाकामयाब और सीजन के बीच कॉन्ट्रैक्ट से ही छुट्टी) और महाराष्ट्र के तीन विदेशी कोच डैरेन होल्डर, शॉन विलियम्स और डर्मोट रीव भी कोई ख़ास कामयाब नहीं रहे।इंतिखाब अगर कुछ कामयाब रहे तो ये समझना जरूरी है कि वे नाम के विदेशी थे अन्यथा तो पंजाबी हैं, होशियारपुर में जन्मे और माहौल को अच्छी तरह से जानते थे।
त्रिपुरा क्रिकेट में हर टीम के कोच, क्लूजनर की स्कीम को, उनसे समझ कर आगे लागू करेंगे। इसमें, क्लूजनर की बात कितने असरदार तरीके से क्रिकेटरों तक पहुंचेगी- ये देखना होगा। सीजन कोई ज्यादा दूर नहीं है। भारत की क्रिकेट में किसी भी तरह का कॉन्ट्रैक्ट, आईपीएल में एंट्री का रास्ता है। इसलिए एकदम घरेलू कॉन्ट्रैक्ट में विदेशी कॉन्ट्रैक्ट की रूचि बढ़ी है। आईपीएल का पैसा सभी को भारत की क्रिकेट की तरफ आकर्षित कर रहा है और अब तो राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के पास भी इतना पैसा है कि अच्छा कॉन्ट्रैक्ट दे सकें। तब भी ऐसे कोच का क्या करें जिसकी बात ही समझ न आए।
- चरनपाल सिंह सोबती