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दो नई आईपीएल टीम की रिकॉर्ड कीमत ने आईपीएल का अर्थशास्त्र और मजेदार बना दिया!

आईपीएल का मतलब अगर टी 20 क्रिकेट है तो पैसा भी। इसीलिए पहले दिन से इसकी हर चर्चा में पैसे का जिक्र था- टीम उन्होंने बनाईं जिन्होंने पैसा लगाया, भले ही क्रिकेट से कोई नाता था या नहीं। अभी तो खिलाड़ी खरीदने के लिए रकम बराबर तय कर दी अन्यथा वहां भी पैसे का खेल ही चलता। अगर मौजूदा 8 आईपीएल टीम के फ्रेंचाइजी की बैलेन्स शीट देखें तो 5 घाटे में हैं पर इसका मतलब ये नहीं कि इन टीम की कीमत कम हो गई। कीमत तो दो नई टीम की बिक्री से ही पता चल जाती है। बड़ा मजेदार है आईपीएल टीम का ये अर्थशास्त्र।

नई आईपीएल टीम बनाने के लिए 6 शहर- अहमदाबाद, लखनऊ, कटक, धर्मशाला, गुवाहाटी और इंदौर- टीम बेस के तौर पर बाजार में थे। आखिर में मशहूर व्यापारी संजीव गोयनका की आरपीजीएस वेंचर्स लि.ने सबसे बड़ी बिड के साथ लखनऊ टीम को 7,090 करोड़ रूपए में और सीवीसी केपिटल पार्टनर्स ने अहमदाबाद टीम को 5,625 करोड़ रूपए में खरीद लिया। इसका मतलब दो नई टीम कुल 12 हज़ार करोड़ रुपए से भी ज्यादा में बिकीं जबकि बोर्ड ने हर टीम की निम्नतम कीमत 2 हज़ार करोड़ रूपए आंकी थी बोली शुरू करने के लिए- इसके ऊपर जो मिले वह बोनस।

ये 2 हज़ार करोड़ रुपए की कीमत कैसे तय की थी? असल में 2008 के टीम नीलाम की सबसे सस्ती टीम राजस्थान रॉयल्स की कीमत पिछले वेल्यूएशन में 1850 करोड़ रुपए आंकी गई थी- उसी हिसाब से नई टीम के लिए बेस कीमत 2000 करोड़ रुपए तय कर दी। शुरू में बोर्ड को उम्मीद थी कि दोनों टीम की बिक्री से कम से कम 5000 करोड़ रूपए तो जरूर मिलेंगे। बाद में इसे और बढ़ा दिया- तब भी बीसीसीआई का अंदाजा 7-8 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा का नहीं था। मिल गए 12 हज़ार करोड़ रूपए से भी ज्यादा।

इससे सिर्फ क्रिकेट बोर्ड को ही फायदा नहीं हुआ- मौजूदा 8 टीम भी फायदे में रहीं। कैसे? लीग में टीम की कीमत देखी जाती है उसकी ब्रैंड वैल्यू से। उदाहरण के लिए 2008 में, मुकेश अंबानी ने मुंबई इंडियंस को 111.9 मिलियन डॉलर में खरीदा। 13 साल बाद लखनऊ टीम की कीमत उससे लगभग नौ गुना ज्यादा है। मुंबई इंडियंस की कीमत अपने आप बढ़ गई। डफ एंड फेल्प्स के अनुसार, आईपीएल की ब्रैंड वैल्यू 2019 में 47,500 करोड़ रुपए थी, जो कोविड के कारण 3.6 प्रतिशत गिरी और 2020 में 45,800 करोड़ रुपये तक आ गई थी।

दिल्ली कैपिटल्स ने 2018 में यही तो किया था। जिंदल साउथ वेस्ट (जेएसडब्ल्यू) ने जीएमआर से 50 प्रतिशत मालिकाना अधिकार खरीदे। उस समय, दिल्ली फ्रेंचाइजी का वैल्यूएशन लगभग 1100 करोड़ रुपये आंका गया था और जेएसडब्ल्यू ने उसका आधा पैसा दिया। जो इस बार टीम नहीं खरीद पाए, वे आगे टीमों के मौजूदा फ्रैंचाइज़ी से इसका एक हिस्सा खरीद सकते हैं यानि कि तब भी मालिक बन सकते हैं – शेयर बिकते रहते हैं। स्पष्ट है कि नई टीम के लिए बड़ी बोली लगी तो उतनी ही मौजूदा टीमों की कीमत बढ़ गई- बहरहाल इसका फायदा तब होगा, जब वे कभी पूरी टीम या इसका कुछ हिस्सा बेचते हैं।

अब दूसरा सवाल उनसे जुड़ा है जो आईपीएल टीम बनाने के लिए इतनी बड़ी रकम दे रहे हैं। क्या घाटे का सौदा किया या फायदे में रहे? उन्होंने भी तो कुछ हिसाब लगाया होगा। वे कैसे वसूल करेंगे अपना पैसा? बड़े व्यापारी हैं और भला घाटे का सौदा क्यों करेंगे?

लखनऊ टीम के मालिक संजीव गोयनका का गणित बड़ा सीधा है :

  • वे बीसीसीआई को टीम की कीमत के सालाना 709 करोड़ रुपये देंगे (टीम की कुल कीमत 10 साल की क़िस्त में देनी है)।
  • उन्हें हर साल बीसीसीआई से ब्रॉडकास्ट और सेंट्रल स्पांसरशिप पूल से, अगर मौजूदा कॉन्ट्रेक्ट ही देखें तो ,कम से कम 390 करोड़ रुपये मिलेंगे।
  • इसलिए वास्तव में हर साल 319 करोड़ रुपए ही देने हैं।
  • उनका अपना क्या रहेगा- सभी मैच की गेट मनी और टीम स्पांसरशिप (जैसे कि खिलाड़ियों की किट, जर्सी पर लोगो आदि) और टीम बनाने तथा मैच आयोजन का खर्चा वे करेंगे।

अब जिस तरह इंटरनेशनल पैसा बाजार के खिलाड़ी आईपीएल में रुचि ले रहे हैं तो वह दिन दूर नहीं कि आईपीएल और बड़ी होगी- इसका दायरा और बढ़ेगा। घाटा कम होगा। यह अनुमान है कि 2023 से 2027 तक, अगले पांच साल के लिए आईपीएल मीडिया अधिकारों की नीलामी से क्रिकेट बोर्ड को 5 बिलियन डॉलर तक मिल सकते हैं- ऐसा हो गया तो टीमों का हिस्सा भी अपने आप बढ़ जाएगा।

मीडिया अधिकार के लिए 2017 में स्टार इंडिया ने रिकॉर्ड रकम दी, इससे मौजूदा आठ फ्रेंचाइजी में से हर एक ने आईपीएल के मीडिया राइट्स सेंट्रल पूल से लगभग 200 करोड़ रुपये कमाए। नए कॉन्ट्रेक्ट के बाद ये रकम हर फ्रैंचाइज़ी के लिए 275-350 करोड़ रुपए प्रति सीजन तक पहुँच सकती है।

दोनों नए फ्रेंचाइजी में से हर एक को 10 साल में बोली वाली रकम की टीम की कीमत देने के बाद,11वें साल से अपने पास आए कुल पैसे का 20 प्रतिशत हिस्सा बीसीसीआई को फ्रेंचाइजी फीस के तौर पर देना होगा। मौजूदा 8 टीम भी ऐसा ही कर रही हैं।

इसलिए वे कहते हैं कि ये कोई घाटे का सौदा नहीं है- उन्हें पूरा विश्वास है कि 10 साल बाद कहा जाएगा कि उन्होंने सस्ते में टीम खरीद ली।

वे लंबे समय की गेम खेलने का इरादा रखते हैं पर अहमदाबाद की टीम खरीदने वाले शायद ऐसी सोच के साथ मैदान में नहीं आए हैं- आम सोच ये है कि वे पैसा कमाने आए हैं क्रिकेट में। सीवीसी एक इंटरनेशनल ग्रुप है और फॉर्मूला 1 और ला लीगा में हिस्सेदारी से खेलों से पहले से जुड़े हैं। क्रिकेट में पैर सोच समझकर ही रखा होगा। उनके लिए पहला फायदा तो टीम बनाने के साथ ही शुरू हो गया। कैसे :

  • लखनऊ की तुलना में 1465 करोड़ रुपए कम देकर टीम ले गए।
  • उन्हें गेट मनी ज्यादा मिलेगी क्योंकि नरेंद्र मोदी स्टेडियम की क्षमता 1.32 लाख दर्शकों की है।
  • वे इसे इन्वेस्टमेंट के तौर पर देख रहे हैं- बाजार के जानकारों का कहना है कि वे पैसा कमाने के लिए धीरे- धीरे इस टीम का हिस्सा भी बेचेंगे।

जो पैसा इन दोनों ग्रुप ने खर्चा- और कोई खर्चने के लिए तैयार नहीं था। मैनचेस्टर यूनाइटेड के मालिक, ग्लेज़र्स अहमदाबाद के लिए 4,180 करोड़ रुपये और लखनऊ के लिए 4,024 करोड़ रुपए की सबसे कम बोली लगाने वालों में से एक निकले। यहां तक कि अहमदाबाद टीम बनाने के लिए फेवरिट अदानी ग्रुप भी पीछे रह गया।आरपीएसजी ग्रुप के अतिरिक्त और किसी ने एक टीम के लिए 6,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बोली नहीं लगाई। सच तो ये कि अगर एक ग्रुप को एक टीम ही देने वाला नियम न होता तो गोयनका की दोनों शहरों की बोली सबसे ज्यादा थी। वे दोनों में से कोई भी शहर ले सकते थे। वे लखनऊ के लिए ज्यादा पैसा दे रहे थे- इसलिए बोर्ड ने उन्हें लखनऊ की टीम दी, न कि अहमदाबाद की। उन्होंने तो इंदौर की टीम के लिए भी बिड दिया था।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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