ऑस्ट्रेलिया के टेस्ट खिलाड़ी और फील्ड हॉकी ओलंपियन ब्रायन बूथ का निधन हो गया- 89 साल की उम्र में। जी हां, आपने ठीक पढ़ा- वे इन दोनों खेल में इतने बेहतर थे कि ऑस्ट्रेलिया के लिए खेले। युजवेंद्र चहल ने क्रिकेट को चुना- शतरंज को छोड़ दिया। गेरथ बेट्टी ने टेनिस को चुना- क्रिकेट को छोड़ दिया। ऐसी लिस्ट बहुत लंबी है। पहले क्रिकेट का एक ही फॉर्मेट था और मैच भी कम थे- इसीलिए क्रिकेट के साथ और दूसरे खेल को खेलना संभव हो पाया।
बूथ 2 टेस्ट में कप्तान थे और कुल 29 टेस्ट- 5 शतक और 1960 के शुरुआती दौर में ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाजी लाइन अप के एक ख़ास खिलाड़ी जिसमें 42.21 औसत से 1,773 टेस्ट रन बनाए। 1965-66 एशेज सीरीज में बॉब सिम्पसन कप्तान थे और जिन दो टेस्ट में वे नहीं खेले तो बूथ कप्तान थे पर गड़बड़ ये हुई कि उसी समय उनकी अपनी बल्लेबाजी लड़खड़ा गई। इसीलिए अजीब बात ये हुई कि जैसे ही सिम्पसन लौटे, बूथ के लिए प्लेइंग इलेवन में भी जगह नहीं थी- टेस्ट कप्तान से सीधे टीम से बाहर। फिर कभी ऑस्ट्रेलिया के लिए नहीं खेले।
ये तब इतना बड़ा और अनोखा फैसला था कि सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन सर डॉन ब्रैडमैन, बूथ को चिठ्ठी लिखने पर मजबूर हो गए थे- ये बताने के लिए कि ऐसा क्यों हुआ? वह ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट में बदलाव का दौर था और नए खिलाड़ी टीम में आ रहे थे- इयान चैपल और कीथ स्टैकपोल उसी सीरीज में टीम में आए थे।
हॉकी की बात करें तो 1956 मेलबर्न ओलंपिक टीम में इनसाइड-लेफ्ट थे-ऑस्ट्रेलिया की टीम में। बूथ ने हमेशा अपने पॉवरफुल स्ट्रोक-प्ले और लचीले फुटवर्क का श्रेय हॉकी को दिया। सबसे पहले 1955 में न्यू साउथ वेल्स हॉकी टीम में आए थे और 1956 में न्यूजीलैंड टूर पर गए। टूर में अच्छे प्रदर्शन से मेलबर्न 1956 ओलंपिक टीम में आए। तब क्रिकेट खेलने की वजह से मीडिया में उन्हें प्रोफेशनल कहा गया और इस नाते ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले सकते थे। मामला आईओसी तक पहुंचा और न सिर्फ बूथ, हॉकी टीम के अन्य दो फर्स्ट क्लास क्रिकेटरों इयान डिक और मौरिस फोले को भी ओलंपिक में खेलने की मंजूरी मिली। बूथ ओलंपिक की वजह से 1956-57 शेफ़ील्ड शील्ड सीज़न में नहीं खेल पाए थे। तब भी, न्यू साउथ वेल्स ने लगातार चौथा शेफ़ील्ड शील्ड टाइटल जीता।
रिटायरमेंट के बाद क्लब क्रिकेट खेलते रहे लेकिन ध्यान इससे भी आगे था- एनएसडब्ल्यू क्रिकेट एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट बने और 1974 के चुनाव में सेंट जॉर्ज सीट से लिबरल पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार थे। हालांकि 21,000 से ज्यादा वोट मिले पर जीत नहीं पाए। इसके बाद वापस टीचिंग में लौट आए और साथ- साथ बैपटिस्ट प्रचारक बन गए।
- चरनपाल सिंह सोबती