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ऐसा नहीं कि कुछ साल पहले तक के क्रिकेटरों के चमकने में उनके पिता की मेहनत का योगदान नहीं था पर फर्क था। सिर्फ मिसाल के लिए- विराट कोहली, एमएस धोनी या मोहम्मद सिराज भी, अपनी क्रिकेट डेवलपमेंट में पिता के योगदान का जिक्र करते हैं, कई स्टोरी भी हैं पर ये क्रिकेट के मामलों में बोलते नहीं थे। मां की तरह से बैकग्राउंड में रहे। युवराज के पिता क्रिकेट में बोले- सही या गलत पर वे टेस्ट क्रिकेटर थे, कोच थे। चेतेश्वर पुजारा के पिता भी कोच हैं पर आम तौर पर उनके इंटरनेशनल क्रिकेट में आने के बाद, खुले में उनकी क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं बोले।

सरफराज खान की इंटरनेशनल क्रिकेट में एंट्री में देरी की जिन वजह का जिक्र होता है उनमें से एक ये भी थी कि सीनियर क्रिकेट टीम (जिनके अपने कोच हैं) में आने के बावजूद वे अपने पिता से कोचिंग लेते हैं। पिछले कुछ दिनों में शुभमन गिल के पिता टीम इंडिया में उनके बैटिंग के नंबर पर कमेंट दे रहे हैं। ठीक है ‘मेकिंग ऑफ शुभमन गिल’ में उन्होंने गजब का योगदान दिया और इंटरनेशनल क्रिकेटर बना दिया पर उसके बाद अपने कमेंट का दायरा पहचान लेना चाहिए- वह घर की चारदीवारी में रहे तो ज्यादा अच्छा है। आज जिस भी युवा क्रिकेटर का नाम चमकता है- उसके पिता की मेहनत की स्टोरी सामने आ जाती है।

इसी तरह का एक और चलन परिवार में बेटे के जन्म पर उसे अपने मनपसंद क्रिकेटर का नाम देने का है। परिवार के, अपने बच्चे के नामकरण के अधिकार को चुनौती देने का मेरा कोई इरादा नहीं, पर एक बढ़ती आदत ध्यान देने वाली है। अपने बेटे को सचिन तेंदुलकर के नाम पर ‘सचिन’ का नाम देना अपनी पसंद है पर ध्यान दीजिए- जब सचिन तेंदुलकर के पिता ने उन्हें सचिन देव बर्मन से प्रभावित हो कर, सचिन का नाम दिया तो एक बार भी ये नहीं कहा कि उनका बेटा वैसा ही संगीतकार/गायक बने। आधुनिक दौर में जो बेटे को सचिन का नाम दे रहे हैं- उनके मन में कहीं न कहीं ये कसक है कि ये भी ‘क्रिकेटर सचिन’ बने।

अब तक की क्रिकेटर बनाने की आम स्टोरी इस तरह की हैं- पिता, बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए तरह-तरह के साधन जुटा रहे हैं, अपनी हैसियत का दायरा लांघ कर भी बेहतर ट्रेनिंग का इंतजाम कर रहे हैं, घर/खेत बेच दिया। घंटों ट्रेनिंग कराते थे। अब इसमें ‘नाम’ भी जुड़ गया है। एक दिग्गज ने इसे उनके ‘पागल पिता की पागल चाहत’ लिखा पर इतने कड़े शब्द का इस्तेमाल न करते हुए, नाम का ये बढ़ता रुझान कितना सही है? क्या यह बच्चे पर समय से पहले, टेलेंट देखे बिना, सिर्फ नाम की बदौलत, दबाव बनाना नहीं है?

इन दिनों एक और सचिन की बड़ी चर्चा है- वे भी महाराष्ट्र से और पूरा नाम सचिन धस। तेंदुलकर की तरह नंबर 10 जर्सी, दक्षिण अफ्रीका में 2024 अंडर-19 वर्ल्ड कप में शानदार प्रदर्शन- टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन की लिस्ट में नंबर 5 लेकिन टॉप 10 में सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट (रिकॉर्ड- 7 मैच में 303 रन, 116.53 स्ट्राइक रेट)। समानता की हद तो ये कि 6 फरवरी 2024 को आईपीएल टीम पंजाब किंग्स ने सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध जीत के बाद एक ट्वीट किया जिसमें तेंदुलकर और धस के नॉन स्ट्राइकर सिरे पर पोज़ की पिक्चर भी थी- दोनों के खड़े होने का तरीका भी बिलकुल एक सा।

असली बात तो ये कि अब एक इंटरव्यू में सचिन धस के पिता, संजय धस ने कहा है- ‘ये बताने की जरूरत नहीं कि सचिन का नाम, किसके नाम पर रखा क्योंकि, उनके जन्म से पहले ही, मैंने तय कर लिया था कि वह एक क्रिकेटर बनेगा और कुछ नहीं।’ धस सीनियर ने अपने बेटे को चार साल की उम्र से, हर रोज 1400 गेंद खेलना सिखाया, एक क्रिकेट एकेडमी शुरू कर दी ताकि उनका बेटा भी क्रिकेट एकेडमी में जा सके। अपना इनडोर ट्रेनिंग हॉल बनाने के लिए, परिवार के घर का एक हिस्सा तोड़ दिया। उनकी पत्नी चिंता में कभी-कभी स्कूल वर्क जैसी जरूरत के बारे में बात करती थी पर वे गर्व से कहते है कि अच्छा हुआ- ‘मैंने उसकी बात नहीं सुनी।’ ठीक है धस ने सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध 96 रन बनाए पर अभी तो क्रिकेट सफर की सही शुरुआत भी नहीं हुई।

सरफराज के पिता नौशाद खान राजकोट में अपने बेटे को टेस्ट कैप लेते, देखने मौजूद थे, आंखों में आंसू थे पर डेब्यू 50 के दौरान शांत थे और बाद की इनिंग में गलत स्ट्रोक पर आउट होने पर भी। शायद वे दायरा बना रहे हैं।

सचिन बेबी, खब्बू बल्लेबाज, दाएं हाथ के ऑफ स्पिनर- उनका नाम भी सचिन तेंदुलकर के नाम पर रखा था। क्रिकेटरों के वंशज की ढेरों स्टोरी हैं- आधुनिक दौर में एक नया वंशज बन रहा है। सब सचिन को देखते हैं- उस सिस्टम को नहीं देखते जिससे क्रिकेट को सचिन तेंदुलकर मिले। एक और टेस्ट डेब्यूटेंट ध्रुव जुरेल- पिता एक सैनिक, चाहते थे कि उनके बेटे का करियर अधिक स्थिर हो और हमेशा क्रिकेट खेलने से रोका। इसी चक्कर में कुछ साल खेलना भी छोड़ दिया पर अब टेस्ट क्रिकेटर हैं। 

नाम को क्रिकेटर बनाने से जोड़ना समझ से बाहर है। सुनील गावस्कर ने बेटे का नाम चार महान खिलाड़ियों, रोहन (कन्हाई), जयविश्व (एम.एल. जयसिम्हा और गुंडप्पा विश्वनाथ) और साथ में पिता का अपना नाम, दिया लेकिन कभी नहीं कहा कि इन जैसा बनाना है। वे भारत के लिए वनडे खेल गए ये एक अलग बात है। ढेरों सचिन/ राहुल/सौरव मिल जाएंगे जो कामयाब नहीं हो पाए। इसकी तुलना में सचिन बेबी या सचिन धस कम हैं। इसीलिए लोकेश राहुल ने खुद ये स्पष्टीकरण दिया कि उन का नाम राहुल द्रविड़ के नाम पर नहीं रखा गया। भगवत चंद्रशेखर ने अपने बेटे का नाम अपने हीरो सिंगर मुकेश के नाम पर रखा पर बेटे से नहीं कहा कि सिंगर बनो।

इंग्लैंड के क्रिकेटर स्टुअर्ट ब्रॉड की स्टोरी बड़ी मजेदार है। पूरा नाम : स्टुअर्ट क्रिस्टोफर जॉन ब्रॉड। इसमें क्रिस्टोफर पिता का नाम है पर जॉन किसका नाम है- उस डॉक्टर का जिसने जान बचाई और इसलिए अपने नाम के बीच में जॉन लगा लिया। सचिन धस के पिता, सुनील गावस्कर के भी दीवाने थे पर सोचा कि युवा पीढ़ी गावस्कर से ज्यादा तेंदुलकर को पहचानेगी, इसलिए बेटे का नाम सुनील नहीं, सचिन रखा

इन दिनों आईपीएल खेल रहे रचिन रवींद्र की स्टोरी। हर जगह छपता रहा कि रचिन नाम, राहुल +सचिन से बना है- उनके पिता रवि कृष्णमूर्ति कहते हैं ये गलत है। वे बोले- रचिन नाम पत्नी ने सुझाया। नाम अच्छा लग रहा था, बोलने में आसान और छोटा तो बस चुन लिया। कुछ साल बाद उन्हें एहसास हुआ कि ये नाम राहुल+सचिन से बन गया पर ये बच्चे को क्रिकेटर या ऐसा कुछ बनाने के इरादे से नहीं रखा था।

चर्चा के लिए नाम तो और भी कई हैं पर एक महिला क्रिकेटर का जिक्र जरूरी है- 2022 महिला वर्ल्ड कप में गिलगित-बाल्टिस्तान की एक खिलाड़ी डायना बेग खेली पाकिस्तान टीम में। उसे ‘डायना’ का शाही परिवार का इंग्लिश नाम कैसे मिला? खूबसूरत इलाके में डायना बेग का घर है- वह डबल-इंटरनेशनल है (क्रिकेट और फुटबॉल) और पाकिस्तान की सबसे पढ़ी-लिखी महिला क्रिकेटर में से एक। बेग के पिता ने ही उन्हें डायना नाम दिया था जो वास्तव में एक मुस्लिम लड़की के लिए अलग सा नाम है। जन्म 1995 में हुआ और ये वह दौर था जब लेडी डायना (स्पेंसर- प्रिंसेस ऑफ वेल्स) बड़ी लोकप्रिय/चर्चित थीं। पिता को ये नाम पसंद आ गया और परंपरा की चिंता किए बिना ये नाम दे दिया। अपने कंधे तक बाल रखे थे, अलग स्टाइल की कटिंग की पर ‘डायना’ के साथ संबंध इसी के साथ खत्म हो गया। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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