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अब तक तो चिंता ये जाहिर हो रही थी कि टी20 क्रिकेट लीग की बढ़ती गिनती पारंपरिक क्रिकेट को प्रभावित कर रही है पर वास्तव में जो सामने आ रहा वह तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है। हर देश को आईपीएल जैसी अपनी लीग खेलने की कितनी बेताबी है दक्षिण अफ्रीका उसका सबूत है- ढंग की टी20 लीग आयोजित करने में दो बार नाकाम रहने के बावजूद वे तीसरी लीग ले आए जो SA20 के नाम से इन दिनों खेल रहे हैं। सभी 6 फ्रेंचाइजी के मालिक वे जो आईपीएल टीमों के मालिक हैं। क्रिकेट का जिस तरह से प्राइवेटाइजेशन हो रहा है- समय आने पर इंग्लैंड भी निशाने पर होगा।

इस लीग में क्रिकेट एक प्रॉडक्ट से ज्यादा कुछ नहीं- उसे बेचने के लिए विज्ञापन, बनावटी नए लॉ- जिसमें टॉस के बाद 13 खिलाड़ियों की लिस्ट में से खेलने वाले 11 को बदलने का विकल्प  तो सबसे अजीब और साथ में हर रोज कोई नई स्टेटमेंट। एक और मजेदार उदहारण ब्रेविस। शुरुआत की 41 गेंद में 70* से जिसमें 5 छक्के थे- ये वही हैं जिनकी तुलना एबी डिविलियर्स से करते हैं। ध्यान दीजिए- ब्रेविस ने अभी तक एक भी इंटरनेशनल मैच तो क्या, फर्स्ट क्लास मैच भी नहीं खेला है लेकिन हर टॉप प्रोफ़ाइल फ़्रैंचाइज़ी उन्हें अपनी टीम में चाहता है। क्या उनका करियर इसी रास्ते पर चलेगा- क्या कभी घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट, टेस्ट क्रिकेट या देश की टीम में शामिल किया जाएगा?

दक्षिण अफ्रीका टेस्ट क्रिकेट की टॉप टीम में से एक है भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की तरह पर नोट कीजिए- अगले फ्यूचर टूर्स प्रोग्राम (2023 से 2027) में दक्षिण अफ्रीका 2/3 से ज्यादा मैचों की सिर्फ दो सीरीज खेलेगा (2026-27 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया विरुद्ध अपनी पिचों पर) अन्यथा वे तो 2/3 टेस्ट खेलने वाली टीम बन गए हैं। पूरा ध्यान देश में टेस्ट क्रिकेट को बचाने पर नहीं, नए टूर्नामेंट से पैसे कमाने और बड़े खिलाड़ियों की जेब भरने पर है। घरेलू क्रिकेट खत्म ही हो जाएगी।

जनवरी में टी20 फ्रैंचाइजी लीग टॉप पर थी- ऑस्ट्रेलिया में बिग बैश, बांग्लादेश प्रीमियर लीग, SA20 और यूएई में नया टी20 टूर्नामेंट। दक्षिण अफ्रीका ने अपने नए टूर्नामेंट के लिए दिन निकालने के लिए ऑस्ट्रेलिया में तीन वनडे रद्द कर दिए और लीग के बीच में, इंग्लैंड से किम्बरली और ब्लोमफोंटेन में 3 वनडे खेले- इसलिए कि इनकी टी20 फ्रेंचाइजी टीमें नहीं हैं। जो रूट टीम के साथ वहां नहीं गए- एमिरेट्स टी-20 में खेले। जब इंग्लैंड एक छोटी टेस्ट सीरीज़ के लिए न्यूज़ीलैंड जाएगा तो पूरे आसार हैं कि ट्रेंट बोल्ट नहीं खेलेंगे- टी20 फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट के बीच, उनके पास फुर्सत ही नहीं है और सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट उन्होंने लिया नहीं जिससे उनके साथ जबरदस्ती भी नहीं कर सकते। एलेक्स हेल्स की भी मिसाल सामने है।

अगर फ्रेंचाइजी और पारंपरिक क्रिकेट, एक दूसरे के विरुद्ध पिच किए जाएंगे तो सिर्फ एक ही विजेता होगा। फ्रेंचाइजी इस समय शुद्ध व्यापारी है और सिर्फ पैसा लगा रहे हैं- वे खिलाड़ी प्रोड्यूस नहीं करते, ग्राउंड/पिच का रख-रखाव नहीं करते और कोई जिम्मेदारी नहीं। ऐसे कब तक चलेगा? खिलाड़ी एक टूर्नामेंट से दूसरे टूर्नामेंट में भागते रहेंगे तो मुकाबले पर असर आएगा ही, भीड़ और रुचि कम होंगे और टेलीविजन सौदे भी प्रभावित होंगे।

कौन चमक रहे हैं- ब्रेविस जिन्हें इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने में कोई रुचि नहीं, आर्चर जिनकी इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी तय नहीं, जोस बटलर- जो फर्स्ट क्लास क्रिकेट नहीं खेल रहे, जेसन रॉय- जो फॉर्म में नहीं थे और अफगानिस्तान के राशिद खान जो अपनी 16 वीं टी20 फ्रेंचाइजी के लिए खेल रहे हैं- एक ऐसा टेस्ट क्रिकेटर जिसने कई सौ विकेट तो ले लिए पर टेस्ट सिर्फ 5 खेले हैं।

SA20 को खेल दक्षिण अफ्रीका में रहे हैं पर भारत के टीवी दर्शकों के लिए। दक्षिण अफ्रीका इस समय में जबरदस्त बिजली कटौती को झेल रहा है और इसीलिए तय भी हो गया था कि SA20 के मैचों को दिन में खेलेंगे ताकि फ्लडलाइट्स की जरूरत ही न पड़े पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि होगा वह जो ‘बड़े पैसे वाले’ चाहते हैं। नतीजा ब्लैकआउट झेल रहे देश में फ्लडलिट क्रिकेट खेल रहे हैं- जनरेटर किराए पर ले लिए और स्टेडियम सरकारी बिजली का इस्तेमाल नहीं कर रहे। जिसके पास पैसा है वे रोशनी चालू रख सकते हैं।

जब कार निर्माता शेवरले ने 2012 में मैनचेस्टर यूनाइटेड को स्पांसर करने के लिए 559 मिलियन अमेरिकी डॉलर का 7 साल का कॉन्ट्रैक्ट किया तो यह प्रीमियर लीग के इतिहास में सबसे आकर्षक कॉन्ट्रैक्ट था और आज तक है। ख़ास बात ये कि शेवरले ब्रिटेन में कार बेचते तक नहीं- तब भी इतना पैसा लगा दिया। पालिसी थी कि उन्हें मैनचेस्टर यूनाइटेड का नाम चाहिए था- वहां के लिए जहां वे ऑपरेट करते हैं। दक्षिण अफ्रीका के लिए समस्या ये है कि भारत को उनकी कोई जरूरत नहीं पर क्रिकेट के जरिए कंट्रोल की शुरुआत हो चुकी है और ये कमजोरी की निशानी है। दक्षिण अफ्रीका वाले समझ रहे हैं पर उनके पास विकल्प नहीं थे और बिना रंग देखे ‘लाइफ जैकेट’ पहन ली।

चरनपाल सिंह सोबती 

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