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7 अक्टूबर को फिरोजशाह कोटला में रन बरस रहे थे और इस बीच बीसीसीआई ने भी एक धमाका किया- अहमदाबाद में भारत-पाकिस्तान मैच के 14 हजार टिकट और रिलीज कर रहे हैं। समझ नहीं आया कि जब पूरे देश में टिकट खरीदने के लिए मारा-मारी थी, वेबसाइट क्रैश हो रही थी और संदेश था ‘सोल्ड-आउट’ तो अब ये टिकट कहां से आ गए? हर रोज जब ऐसा लगता है कि अब तो बीसीसीआई का तमाशा खत्म होगा- वे कुछ नया कर देते हैं। इस रिपोर्ट के लिखने तक वर्ल्ड कप के 4 मैच हो चुके हैं- किस तरफ जा रहा है ये वर्ल्ड कप?

दुनिया में, नरेंद्र मोदी स्टेडियम से बड़ा एकमात्र स्टेडियम प्योंगयांग में है पर वहां क्रिकेट नहीं खेलते। वर्ल्ड कप का पहला मैच और ये स्टेडियम सजा था पर विश्वास कीजिए स्टेडियम के बाहर कहां थी वर्ल्ड कप की धूम? शहर की 75-80 लाख की आबादी इन दिनों सड़कों पर वर्ल्ड कप से ज्यादा, गुजरात टाइटंस के आईपीएल 2024 के पोस्टर देख रही है। वर्ल्ड कप से पहले, जब सभी 10 टीम के कप्तान गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के भव्य बॉलरूम में मौजूद थे तो रोहित शर्मा ने जोर देकर कहा- ‘वर्ल्ड कप का बुखार देश पर चढ़ा हुआ है। लोगों में जो उत्साह है, वह सिर्फ एक-दो शहरों में नहीं है, पूरे देश में फैला है।’ क्या वास्तव में ऐसा है?

जो संकेत पहले मैच ने दिया- 132,000 सीट को भरना आसान नहीं होगा। पहले मैच की 40 हजार टिकट मुफ्त बांटी- तब भी लोग मैच देखने नहीं आए। आईसीसी भी अब सवाल पूछ रही है कि टिकट बिके क्यों नहीं? कई वजह हैं- शेड्यूल देरी से बना, टिकट की बिक्री सिर्फ कुछ दिन चली, भारत ने नजदीक के देशों के क्रिकेट प्रेमियों को वीजा नहीं दिया। इंतजाम की हालत ये कि खबर थी- टूर्नामेंट का ब्लॉकबस्टर उद्घाटन होगा, आतिशबाजी, लेजर शो, बॉलीवुड स्टार और सिंगर यानि कि एक स्टार-स्टडेड प्रोग्राम। ऐसे प्रोग्राम तय हों तो आसानी से रद्द नहीं होते- कुछ घंटे पहले, आईसीसी ने कहा कोई उद्घाटन समारोह नहीं होगा और ये भी स्पष्ट कर दिया कि ये तो होना ही नहीं था। तो फिर जो ख़बरों में आता रहा -वह क्या था? यह अब तक का सबसे हाई-ऑक्टेन वर्ल्ड कप होना चाहिए था- क्या ऐसा होगा?

भारत को वर्ल्ड कप के आयोजन के लिए 4 से ज्यादा साल मिले। 2019 वर्ल्ड कप से गिन लें तो भी 4 साल मिले। इन सालों में क्रिकेट बदल गई। भारत के पास ऐसे ही, मेजबान के तौर पर मिसाल बनने का मौका था। ट्रेंट बोल्ट ने जब जॉनी बेयरस्टो को टूर्नामेंट की पहली गेंद फेंकी तो नरेंद्र मोदी स्टेडियम लगभग खाली था। स्कूली बच्चों को हजारों टिकट मुफ्त दिए, वैसे भी 1000 रुपये से शुरू हुई टिकट की कीमत जो बहुत ज्यादा नहीं। भला हो कि गर्मी कम हुई तो लोग आए और बीसीसीआई का दावा है कि 47 हजार दर्शक थे स्टेडियम में।

अब तो ये भी कह रहे हैं कि बीसीसीआई की टिकट बेचने में रूचि है ही नहीं- ब्रॉडकास्टर इतना पैसा दे रहे हैं कि दर्शकों की चिंता किसे है? ये भूल रहे हैं कि टीवी पर भी क्रिकेट देखने में तभी मजा आता है जब स्टेडियम दर्शकों से भरा हो। इसके अतिरिक्त टी-20 लीग ने भी सोच बदल दी है। अहमदाबाद वाले, वर्ल्ड कप में इंग्लैंड या न्यूजीलैंड टीम को क्यों देखें- आईपीएल में गुजरात टाइटंस के मैच देखना उनके लिए कम रोमांचक नहीं होता। पिछले साल टी20 वर्ल्ड कप में, ऑस्ट्रेलिया में, शुरुआत बहुत कम आकर्षक थी- श्रीलंका का मैच था पहले राउंड में नामीबिया से- तब भी 15,000 की भीड़ स्टेडियम में थी। 9 महीने तक बेचे थे टिकट। बीसीसीआई ने कितने दिन बेचे टिकट?

एक ऐसे समय में जब 50 ओवर फॉर्मेट के भविष्य पर बहस हो रही है- ये सब कोई अच्छा संकेत नहीं है। और देखिए प्लानिंग के नाम पर क्या किया :

  • 1996 के बाद पहली बार मेजबान टीम ने टूर्नामेंट का पहला मैच नहीं खेला- इंग्लैंड बनाम न्यूजीलैंड मैच और वह भी काम वाले दिन! बहुत जरूरी होता है कि टेम्पो बनाने के लिए मेजबान टीम पहला मैच खेले।  
  • ढेरों, जिनके पास ऑनलाइन टिकट थे जब वे मैच देखने स्टेडियम आए तो उन्हें कहा- पेपर टिकट लेने एक होटल जाओ जो लगभग आधा घंटा दूर था।  
  • शेड्यूल में हफ्ते के बीच पहला मैच क्यों रखा? बीसीसीआई ने अब साफ़ कह दिया है कि वे ब्रॉडकास्टर की बात मानने पर मजबूर हैं। ब्रॉडकास्टर ने साफ़ कह दिया था कि टीम इंडिया के सभी बड़े मैच वीकेंड पर खेलें- इसीलिए उनके 9 ग्रुप मैच में से 6 शनिवार/इतवार को हैं।
  • अगर टूर्नामेंट को वीकेंड पर भारत के मैच से शुरू करते तो इसका मतलब था- वर्ल्ड कप 5 दिन और बढ़ाओ या डबल हेडर के दिन बढ़ा दो।

जब सचिन तेंदुलकर ट्रॉफी ले जा रहे थे तो बहुत कम दर्शक उन्हें देख रहे थे- क्या यही है वह वर्ल्ड कप जिसका कई साल से इंतजार कर रहे थे?

  • चरनपाल सिंह सोबती

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