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 ये मानना होगा कि वर्ल्ड कप के दौरान जितनी रूचि टीम इंडिया में ली जा रही है- पाकिस्तान टीम मुकाबले में कुछ पीछे नहीं है। वीजा मिलने में देरी (वैसे देरी थी कहां?) की चर्चा से हैदराबाद में खाना और प्रैक्टिस मैच- सब चर्चा में रहे। उधर उनके बोर्ड चीफ जका अशरफ, एक तरफ तो गांधी-जिन्ना ट्रॉफी खेलने का सुझाव देते हैं, बीसीसीआई चीफ रोजर बिन्नी और उनके साथ वहां गए राजीव शुक्ला का यादगार स्वागत करते हैं तो दूसरी तरफ भारत के जिक्र में उसे ‘दुश्मन मुल्क’ कह देते हैं। भले ही बाद में इस बात पर मरहम लगा दी पर नुकसान तो हो ही चुका है।

यही हाल पाकिस्तान क्रिकेट टीम का है। वे तो कुछ दिन पहले के एशिया कप में भी पसंदीदा टीम थे। यही अब वर्ल्ड कप में है। पाकिस्तान, दुनिया की ऐसी पहली टीम नहीं जो कहीं खराब खेली/हर उम्मीद को तोड़ा- खराब होता है हार का वह असर जिससे पैदा होते हैं ऐसे विवाद जो टीम की मुश्किल और बढ़ा देते हैं। एशिया कप की निराशा के बाद पाकिस्तान टीम टुकड़ों में बंटी, बिना कप्तान के कंट्रोल खेलने वाली और चोटिल पेसर की टीम की छवि के साथ भारत आई और बाकी की कमी प्रैक्टिस मैचों की हार ने पूरी कर दी।  

पाकिस्तान टीम की सबसे बड़ी पहचान- प्रदर्शन में अस्थिरता। कब कैसा खेल जाएं, कोई नहीं जानता। इस कमजोरी को कोई कोच दूर नहीं कर पाया। इसीलिए एशिया कप में सिर्फ भारत से हारना नहीं, और भी बहुत से सवाल थे जो टीम को बैकफुट पर ले गए। भारत से हार, आखिरी ओवर में श्रीलंका से हार, शादाब खान और फखर जमान जैसे सीनियर का खराब प्रदर्शन, आईसीसी नंबर 1 रैंकिंग गई और उस पर हारिस राउफ और नसीम शाह की ख़राब फिटनेस की खबर- जो मुकाम हासिल किया था उसे तहस-नहस कर दिया। कोच ग्रांट ब्रैडबर्न के लिए इस टीम का हौसला बढ़ाना आसान नहीं होगा।

पाकिस्तान का बस चले तो एशिया कप 2023 को रिकॉर्ड से ही निकाल दें। न तो रिकॉर्ड से एशिया कप निकलेगा और न ही वर्ल्ड कप। अगर एशिया कप को भुलाना है तो वर्ल्ड कप में बेहतर क्रिकेट खेलनी होगी। सिर्फ नेगेटिव सोच और गलतियां- उस पर पीसीबी का खुद अजीब-अजीब स्टेटमेंट देना यानि कि मुश्किल बढ़ती गईं। 

इस साल के एशिया कप से पहले तक द हंड्रेड, एलपीएल, कनाडा ग्लोबल लीग, कैरेबियन प्रीमियर लीग जैसी कई लीग में उनके खिलाड़ी बिना रोक-टोक खेल रहे थे। इसका असर दिखाई दे रहा है और पीसीबी ने एशिया कप में हार के बाद सबसे पहले खिलाड़ियों को इसी पर घेरा। सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट वाले खिलाड़ियों के विदेशी टी20 लीग में हिस्सा लेने की गिनती तय कर दी- A+ और A कॉन्ट्रैक्ट वाले पीएसएल के अलावा सिर्फ एक और टी20 लीग खेल पाएंगे। बोर्ड ने विदेशी लीग के लिए दिए एनओसी को बीच में वापस लेने/रद्द करने का फैसला भी सुना दिया है। एक्शन शुरू हो गया है पर बोर्ड अपने इस फैसले पर कब तक टिकेगा यह तो समय बताएगा।

एक और घटना जिसने पाकिस्तान क्रिकेट को झटका दिया- बाबर आजम और शाहीन अफरीदी के बीच ड्रेसिंग रूम में भिड़ंत। भले ही बाबर बाद में शाहीन की शादी में शामिल हुए पर खुद पाकिस्तान मीडिया कह रहा है कि वर्ल्ड कप प्रैक्टिस मैचों के दौरान, टीम का कोई भी खिलाड़ी बाबर से खेल पर बात तक नहीं कर रहा था। इसलिए पाकिस्तान के लिए इस सब से वापस लौटना आसान नहीं। संयोग से एशिया कप और वर्ल्ड कप के बीच उनका कोई वनडे नहीं था जो टीम को सब भूल कर एक साथ खेलने का मौका देता इसलिए वर्ल्ड कप से पहले/इस दौरान ही सब सवाल सुलझाने हैं।

पाकिस्तान फिजूल में क्रिकेट में ‘युद्ध’ जैसा माहौल बनाकर कुछ हासिल नहीं कर रहा। उनके एक सीनियर जर्नलिस्ट को तो इस बात पर भी आपत्ति है कि दोनों टीमों के क्रिकेटर अब आपस में दोस्त की तरह मिलते हैं, तोहफे देते हैं- उनके हिसाब से इसीलिए ही तो उनके मौजूदा क्रिकेटरों में मुकाबले/बदला लेने की वह आग नहीं रही जो इमरान खान, वसीम अक्रम, वकार यूनिस, अकीब जावेद और जावेद मियांदाद के साथ देखने को मिलती थी। बाक़ी की कसर, भारत के क्रिकेट में ग्राउंड पर और ग्राउंड के बाहर भी एक पॉवर बनने ने पूरी कर दी। इसीलिए जैसा पहले कभी नहीं होता था अब हो रहा है- भारत का सामना करते हुए पाकिस्तान टीम पहले ही बैकफुट पर होती है। कुछ साल पहले तक ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध भारत के लिए भी यही होता था।

हर वर्ल्ड कप में जमीनी हकीकत को छिपाकर उम्मीद जगाने की कोशिश की जाती है। पिछले कप की टीम के सिर्फ दो खिलाड़ियों को ही इस बार टीम में जगह मिली यानि कि पाकिस्तान को उम्मीद है एक नई टीम के साथ इतिहास लिखने की- वास्तव में कुछ नया करना है तो सबसे पहले तो पिछली गलतियां न करें। क्रिकेट में हर टीम के लिए वापसी का मौका है- 1992 में जीते थे, वास्तव में वह भी तो ‘वापसी’ ही थी। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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