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पाकिस्तान- न्यूजीलैंड दूसरा कराची टेस्ट :  न्यूजीलैंड ने दूसरी पारी 5 विकेट पर 277 पर समाप्त घोषित की और जीत के लिए 319 का लक्ष्य दिया पाकिस्तान टीम को। बचा समय- चौथे दिन स्टंप्स से पहले तीन ओवर और पूरा आख़िरी दिन। इसे कहते हैं स्पोर्टिंग डेक्लेरेशन यानि कि ऐसे मुकाम पर पारी समाप्त घोषित कर दूसरी टीम को जीत की चुनौती देना जिसमें दोनों टीम के पास जीत का लगभग बराबरी का मौका है। पारी समाप्त घोषित करने वाला कप्तान हार भी सकता है तो ऐसा क्यों किया- जीत की चाह में जोखिम उठाया और ऐसे कप्तान ही टेस्ट क्रिकेट के रोमांच को ज़िंदा रखे हुए हैं।

अब इस धारणा में देखिए क्या गजब का रहा कराची टेस्ट और जब टेस्ट ड्रा हुआ तो दोनों टीम को लग रहा था कि जीत उनके हाथ से निकल गई।   अब देखिए पाकिस्तान- न्यूजीलैंड पहले कराची टेस्ट में क्या हुआ? वहां पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम ने जो किया उसे जानकार ‘पागलपन’ कह रहे हैं। पाकिस्तान तब सिर्फ 137 रन से आगे था जब बाबर ने अचानक पारी को 311-8 पर समाप्त घोषित कर दिया। लक्ष्य 138 रन और बचे थे 15 ओवर/90 गेंद/एक घंटा। जब तक पारी समाप्त घोषित नहीं हुई थी- स्कोर देख कर सोचा तो ये जा रहा था कि पाकिस्तान ने टेस्ट बचा लिया है पर बाबर ने तो नजारा ही बदल दिया। ये स्पोर्टिंग डिक्लेरेशन नहीं था क्योंकि पाकिस्तान की जीत के लगभग जीरो आसार थे और हार के पूरे-पूरे। रिकॉर्ड यही बताता है।  

टेस्ट क्रिकेट के 145 साल में, सिर्फ एक बार किसी टीम ने, विपक्षी टीम को 90 गेंदों से कम में आउट किया है- इंग्लैंड ने 75 गेंदों में दक्षिण अफ्रीका को 1926 में एजबेस्टन में। तब सामने जूझ रही दक्षिण अफ्रीका टीम थी, न कि डेढ़ साल पहले वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप जीतने वाली टीम। एशिया में  रिकॉर्ड- 120 गेंद जब भारत को 2008 में अहमदाबाद में दक्षिण अफ्रीका ने आउट किया और पाकिस्तान में रिकॉर्ड है- 153 गेंद जब पाकिस्तान ने फैसलाबाद में वेस्टइंडीज को आउट किया था 1986/87 में। तो बाबर ने किस बुनियाद पर ये सोच लिया कि इतिहास बदल देंगे? 

बात साफ़ है कि बाबर को अपने गेंदबाजों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा था पर क्रिकेट समझ ये कहती है कि इस चुनौती में पाकिस्तान टेस्ट नहीं जीत सकता था। न्यूजीलैंड ने चुनौती को स्वीकार किया और जीत के लिए खेले तभी तो माइकल ब्रेसवेल (नंबर 7) को डेवोन कॉनवे के साथ ओपनिंग  के लिए भेज दिया। पहले ओवर में ब्रेसवेल आउट तो टॉम लैथम आ गए वनडे स्टाइल में खेलने। जब पांचवें ओवर में 14 रन बने तो बाबर ने स्पिन की जगह पेस अटैक लगा दिया। तब तक सूरज ढल चुका था और स्टेडियम में फ्लड लाइट्स रोशनी दे रही थीं

एक समय  न्यूजीलैंड के लिए लक्ष्य- 9 ओवर में 83 रन था। तब बाबर को पसीना आ रहा था लेकिन जब लक्ष्य 77 रन था 7.3 ओवर में तो अंपायरों /मौसम ने उनकी मदद की और ख़राब रोशनी की दलील पर खेल रोक दिया। अंपायर अलीम दर और एलेक्स व्हार्फ लगातार लाइट मीटर पर थे और अगर स्पिनर ही अटैक पर होते तो शायद खेल और आगे चल गया होता- कितना ये कह पाना मुश्किल है। न्यूजीलैंड तब 61-1 पर था। इस टेस्ट की पहली पारी में न्यूजीलैंड ने पाकिस्तान को लगभग 195 ओवर तक ग्राउंड पर रखा था और तब भी 10 विकेट नहीं गिरे थे तो अब बाबर ने यह कैसे सोच लिया कि दूसरी पारी में 15 ओवर से भी कम में आउट कर देंगे- वह भी तब जबकि पिच में कुछ नहीं था। 

क्या ये बेन स्टोक्स और इंग्लैंड की टेस्ट खेलने की नई स्टाइल का असर था? अगर ऐसा था भी तो बाबर ने स्टोक्स से सही प्रेरणा नहीं ली। कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान के विरुद्ध रावलपिंडी टेस्ट की चौथी शाम स्टोक्स ने जब पारी समाप्त घोषित कर पाकिस्तान को एक स्पोर्टिंग चुनौती दी थी तो साथ में अपने गेंदबाजों को 10 विकेट लेने के लिए पूरा समय दिया था। इसलिए अगर वास्तव में बाबर का इरादा पारी समाप्त घोषित कर टेस्ट जीतने की कोशिश का था तो वे अपने बल्लेबाजों को दूसरी पारी में तेजी से स्कोरिंग के लिए कह सकते थे- ऐसा कुछ नहीं हुआ और पाकिस्तान का स्कोरिंग रेट सिर्फ 2.99 था। सऊद शकील अपने 55* के लिए 108 गेंद खेल चुके थे।  जो बाबर ने किया क्या वैसा जोखिम और किसी ने भी उठाया है? इस संदर्भ में टॉप पर मार्च 1968 में पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट को रख सकते हैं। वेस्टइंडीज के कप्तान गैरी सोबर्स ने दो बार (526/7 और 92/2) पारी को समाप्त घोषित किया। इंग्लैंड को 165 मिनट में 215 रन बनाने थे और वे लगभग 54 ओवर में, 7 विकेट से जीत गए- तब भी 3 मिनट/8 गेंद बचे थे।  
क्रिकेट में कहा जाता है जब कप्तान तब पारी समाप्त घोषित करता है जब वह मैच जीतने का कम से कम 55% मौका देखता है। जब बाबर ने ऐसा किया तो उनके जीतने की संभावना महज 5% थी- इसे जोखिम उठाना नहीं, पाकिस्तान क्रिकेट में भी जानकारों ने ‘मूर्खता’ कहा – खुशकिस्मत रहे कि टेस्ट हारने से बच गए अन्यथा उन्हें कोई माफ़ न करता। इसके उलट विलियमसन ने क्या गजब किया दूसरे टेस्ट में।    फिर से पहले टेस्ट पर लौटते हैं। बाबर के फैसले से टेस्ट के सिर्फ दो नतीजे संभव थे- न्यूजीलैंड की जीत या ड्रॉ। पाकिस्तान को टेस्ट जीतना था तो उसके लिए ‘तैयारी’ की जरूरत थी। कोई नहीं जानता कि बाबर का फैसला कहां से और किस सोच से आया? सऊद शकील ने तो साफ़ कह भी दिया है कि उसे कुछ नहीं बताया था- वे 55* के लिए 108 गेंद खर्च गए और मीर हमजा के साथ 81 गेंद की पार्टनरशिप में वे तो ड्रा के लिए खेल रहे थे। उनकी नजर में पाकिस्तान को एक ड्रा की जरूरत थी और वह उसके लिए खेल रहे थे।

बाबर ने मैच के बाद कहा- ‘हमने एक चांस लिया- आप कभी नहीं जानते कि क्या हो सकता है? यह क्रिकेट है। कुछ भी हो सकता है।’ शायद पाकिस्तान क्रिकेट के के घरेलू संकट ने उन पर असर डाला- ये लगातार सातवां टेस्ट था जिसे पाकिस्तान अपनी पिचों पर जीतने में नाकाम रहा। उनकी पिछली जीत को अब लगभग दो साल हो चुके हैं। अपनी पिचों पर लगातार पांचवीं हार के रिकॉर्ड से तो बच गए पर जो हुआ हुआ उसे कोई भूलेगा नहीं। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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