अब टीम इंडिया को बस एक आईसीसी टाइटल जीतना है। इसके लिए हर से तैयारी हो रही है। सपोर्ट स्टाफ काफिले में एक नया नाम भी इसी इरादे से जुड़ गया- पैडी अप्टन को टीम का मेंटल कंडीशनिंग कोच बनाया। 53 साल के अप्टन की ड्यूटी वेस्टइंडीज के विरुद्ध टी20 सीरीज से शुरू हो चुकी है और कॉन्ट्रैक्ट अक्टूबर-नवंबर में ऑस्ट्रेलिया में टी20 विश्व कप तक चलेगा।अप्टन के मुताबिक़ क्रिकेट में सबसे बड़ी मानसिक मुश्किल नाकामयाबी और दबाव का डर है- हर खिलाड़ी की मुश्किल इन्हीं दो के साथ जुड़ती है। ऐसा है तो देखें वह क्या जादू करेंगे?बात साफ़ है- भारत ने 2013 से आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीती है और बीसीसीआई इस सूखे को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। टीम के लिए मेंटल कंडीशनिंग कोच चाहिए- ये सलाह कोच राहुल द्रविड़ ने दी थी।
पैडी अप्टन का नाम भारतीय क्रिकेट के लिए नया नहीं- 2011 विश्व कप में भारत की जीत के दौरान भी वे मेंटल कंडीशनिंग कोच थे। इस बार अप्टन को राहुल द्रविड़ लाए- 2011 विश्व कप की ऐसी ही तैयारी के लिए उस समय के कोच गैरी कर्स्टन ने चुना था। तब अप्टन 2008 और 2011 के बीच मेंटल कंडीशनिंग कोच के साथ-साथ स्ट्रेटेजिक लीडरशिप कोच भी थे। उस समय द्रविड़ टीम में थे और उस दौरान भारत, ICC टेस्ट रैंकिंग में टॉप पर पहुंच गया था। बाद में दोनों ने आईपीएल में बतौर कोच साथ में काम किया।अप्टन और द्रविड़ के बीच तब से संपर्क बना हुआ है और दोनों एक दूसरे के हुनर की तारीफ़ भी करते हैं। अप्टन ने अपनी किताब ‘द बेयरफुट कोच’ में इसका जिक्र भी किया और ट्विटर पर पोस्ट किया- ‘राहुल द्रविड़ ने मेरे कोचिंग सफर में बड़ी ख़ास भूमिका निभाई। मैंने उनसे क्रिकेट और जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सीखा है।
‘भारतीय क्रिकेट में sports psychologists/mental conditioning experts की नियुक्ति कोई नई बात नहीं है। जाने-माने स्पोर्ट्स मनोवैज्ञानिक सैंडी गॉर्डन 2003 विश्व कप से पहले सौरव गांगुली की टीम के साथ थे और ‘अभी या कभी नहीं’ की आवाज दी। भारत फाइनल खेला था। ग्रेग चैपल ले आए स्पोर्ट्स मनोवैज्ञानिक रूडी वेबस्टर को। शास्त्री ने किसी की जरूरत महसूस नहीं की और माइंड कोच नियुक्त करने का सिस्टम खत्म हो गया। रवि शास्त्री को अपने ऊपर विश्वास था और टीम को अपने ढंग से तैयार करना पसंद करते थे। तब भी पिछले साल टी 20 विश्व कप से पहले, एमएस धोनी को टीम मेंटर के रूप में सेट-अप में शामिल किया ताकि उनकी सोच का फायदा मिले लेकिन भारत सेमीफाइनल के लिए भी क्वालीफाई नहीं कर पाया और अपने पहले दो मैचों में पाकिस्तान और न्यूजीलैंड से हार गया था। अब वापस पुराने तरीके पर लौट आए हैं।
2011 विश्व कप में भारत की जीत के बाद, अप्टन दक्षिण अफ्रीकी टीम के परफॉर्मेंस डायरेक्टर बन गए और 2014 तक उनके साथ रहे। वे आईपीएल में पुणे वॉरियर्स, राजस्थान रॉयल्स और दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ रहे। सिडनी थंडर और लाहौर कलंदर्स के साथ क्रमशः बिग बैश लीग और पाकिस्तान सुपर लीग में भी काम किया।अप्टन की फिलॉसफी बड़ी साफ़ है। क्रिकेट या किसी भी खेल में, नाकामयाबी और दबाव का डर सबसे बड़ा होता है। जब सीनियर खिलाड़ी गलतियों को लेकर बहुत भावुक हो जाता है, तो इससे नाकामयाबी का डर और दबाव और बढ़ जाता है और युवा खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर इसका असर आ जाता है। अप्टन के पास ह्यूमन मूवमेंट साइंसेज की डिग्री है और मूल मंत्र है- हर चीज को आसान बनाओ, उलझाओ मत। जीत को दबाव बनाना उनका तरीका नहीं- इसीलिए 2011 विश्व कप की तैयारी कई महीने पहले ही शुरू कर दी थी और बात-बात पर कहते थे कि जब हम फाइनल खेलेंगे तो ऐसा होगा-वैसा होगा। अब इसी तरह से उन्होंने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि ‘जब हम एमसीजी में विश्व कप फाइनल खेलेंगे’ तो . . .।
2011 विश्व कप फाइनल से 10 महीने पहले, एशिया कप फाइनल की सुबह जब श्रीलंका में श्रीलंका से खेलने की तैयारी कर रहे थे तो अचानक ही कोच गैरी कर्स्टन ने पूछ लिया- अगर इस मैच को ही विश्व कप फाइनल समझ लें तो क्या हम एक टीम के तौर पर जीतने के लिए तैयार हैं? तब गैरी, अप्टन और एरिक सिमंस (गेंदबाजी सलाहकार) तीनों ने माना कि टीम विश्व कप फाइनल जीतने के लिए तैयार नहीं हैं। क्यों? घरेलू दबाव, वानखेड़े में फाइनल जो सबसे शोर वाले स्टेडियम में से एक है और सचिन तेंदुलकर का आखिरी विश्व कप मैच- इन्हें झेलना था यानि कि इन दबाव की स्थिति के लिए तैयार रहना था। उस दिन ही तय कर लिया कि आज से ही सब 2011 विश्व कप में भारत के फाइनल में खेलने की बात करेंगे- इसीलिए जब वास्तव में फाइनल खेले तो इस बड़े मैच के लिए, खिलाड़ी मानसिक तौर पर तैयार थे क्योंकि इस पर बार-बार बात की थी।द्रविड़ को लगता है कि अप्टन का भारतीय क्रिकेट सेट-अप से पुराना नाता मददगार साबित होगा। बस आईसीसी ट्रॉफी आ जाए- सब सही लगेगा।
– चरनपाल सिंह सोबती