जैसे सेंटर में सरकार इतने प्रभावशाली नंबर के साथ काबिज है कि कि किसी भी बिल पर मंजूरी महज एक औपचारिकता है- वैसा ही अब बीसीसीआई में है। बीसीसीआई की गोवा में एजीएम हो भी गई, जो चाहा बिना विरोध मंजूर हो गया अन्यथा सिर्फ कुछ साल पहले तक तो हालत ये थी कि एजीएम से पहले ही, अलग-अलग ग्रुप अपनी स्ट्रेटजी बनाने और बीसीसीआई के बड़े पद के लिए अपने कैंडिडेट तय करने के लिए मीटिंग में जुट जाते थे। वहां देखने को मिलता था क्रिकेट में पॉलिटिक्स का खेल।
एक मिसाल के लिए 19 साल पहले यानि कि सितंबर 2004 की बीसीसीआई की एजीएम। क्या आप विश्वास करेंगे कि पॉलिटिक्स के दिग्गज शरद पवार तब बीसीसीआई अध्यक्ष के चुनाव में हार गए थे। इस झटके के बाद अगले साल (2005) जीते लेकिन 27 सितंबर 2004 का दिन वे भूलेंगे नहीं और कोलकाता में, वे अपने 50+ साल के करियर में पहला और एकमात्र चुनाव हारे थे। ये होता था बीसीसीआई की एजीएम में। ये सब आसानी से नहीं हुआ था- जगमोहन डालमिया ने बड़ी तैयारी की थी उसके लिए।
बीसीसीआई की एजीएम ऐसी है कि बीसीसीआई में पहुंचने की चाह में बड़े-बड़े लोग ये भी भूल जाते हैं कि दिल्ली की पॉलिटिक्स में वे किस पार्टी के हैं? एक बड़ी अच्छी मिसाल- कांग्रेस के राजीव शुक्ला जो बीजेपी के प्रभुत्व वाले मौजूदा बीसीसीआई में भी ऐसे फिट हैं कि कोई उनका विरोध नहीं करता। क्रिकेट की एक बड़ी लेखिका ने पिछले दिनों अपने एक आर्टिकल में उन्हें ‘टमाटर’ जैसा बताया- अपना सवरूप छोड़ कर हर डिश में फिट होने की खूबी की वजह से। खैर ये सब एक अलग चर्चा है। देखिए इस बार बीसीसीआई की एजीएम में क्या-क्या तय हुआ :
- जो राज्य क्रिकेट एसोसिएशन रणजी या अन्य टीम में ‘गेस्ट’ क्रिकेटर लेंगी- वे उन्हें लालच के तौर पर कोई अतिरिक्त फीस/पैसा नहीं देंगे। खिलाड़ी, जो पेशेवर बन कर टीम बदलते हैं- उन्हें किसी भी और घरेलू क्रिकेटर की तरह सिर्फ तय मैच फीस ही मिलेगी। तय नहीं किया कि ये कंडीशन क्या इस सीजन से लागू हो जाएगी? मौजूदा सिस्टम ये है कि हर राज्य क्रिकेट एसोसिएशन 3 गेस्ट खिलाड़ियों को कॉन्ट्रैक्ट दे सकते हैं- रणजी ट्रॉफी में टीम की गिनती बढ़कर 38 हो जाने के बाद नई टीम को कुछ मजबूती देने के लिए पेशेवर के तौर पर गेस्ट खिलाड़ी लेना शुरू हुआ था। गड़बड़ ये हुई कि खिलाड़ी छीनने की आपसी होड़ में, खिलाड़ियों को लुभाने का खेल शुरू हो गया- फालतू पैसा देकर। इस नई गाइड लाइन से 100 से ज्यादा क्रिकेटरों पर असर पड़ेगा।
- सदस्य क्रिकेट एसोसिएशन के लिए बीसीसीआई की सालाना ग्रांट को बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये कर दिया- हां, नार्थ-ईस्ट क्रिकेट एसोसिएशन और पांडिचेरी को क्रिकेट के लिए 17.5 करोड़ रुपये ही मिलेंगे। ख़ास अनुरोध- मिल रही ग्रांट का कम से कम 85% क्रिकेट पर खर्च करो न कि जोर बैंक में एफडी बनाने पर हो।
- बीसीसीआई एजीएम ने अपने लोकपाल और नैतिक अधिकारी (Ombudsman and Ethics Officer) जस्टिस विनीत सरन का कार्यकाल बढ़ा दिया।
- बढ़ रही, बे-बुनियाद और बिना सबूत वाली, बीसीसीआई या राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के विरुद्ध शिकायत को रोकने के लिए नैतिक अधिकारी (Ethics Officer) से कहा कि वे हर शिकायत के साथ एक डिपॉजिट लेने के सिस्टम पर सोचें। इससे फिजूल में शिकायत दर्ज कर, ख़बरों में आने वाले कम हो जाएंगे। शिकायत सही निकली तो डिपॉजिट वापस।
- पैसे का हिसाब– 2022-23 फाइनेंशियल साल में- बीसीसीआई का कुल मुनाफा 2,198.23 करोड़ रुपये बढ़ा और 6,558 करोड़ रहा। 2021-22 में ये रकम 4,360.57 करोड़ रुपये थी। – 2027 तक बोर्ड की सालाना कमाई 80,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान- आईसीसी की कमाई में से हिस्सेदारी बढ़ने से (18% की तुलना में 38.5%) और दो टीम वाली सीरीज के अगले राउंड में मीडिया अधिकार से प्रति मैच 67 करोड़ रुपये (लगभग) मिलने से।
– पिछले साल कमाई में गिरावट की सबसे बड़ी वजह कोविड-19 का प्रकोप था। 2021-22 सीज़न में सिर्फ 3 टूर्नामेंट खेले थे जबकि 2022-23 घरेलू सीज़न बिना दिक्कत खेले।
- अरुण सिंह धूमल और अविषेक डालमिया- आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के लिए फिर से चुने गए। उनकी जगह लेने के लिए कोई और कैंडिडेट नहीं था। इस तरह धूमल आईपीएल चेयरमैन बने रहेंगे।
- आईपीएल गवर्निंग काउंसिल छोड़ने की, प्लेयर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधि प्रज्ञान ओझा (भूतपूर्व टेस्ट क्रिकेटर) की चाह की चर्चा हुई- तय हुआ कि फैसला प्लेयर्स एसोसिएशन ले और नए प्रतिनिधि का नाम भेजे। इस एसोसिएशन के अपने चुनाव होने वाले हैं- स्पष्ट है कि फैसला उसके बाद होगा।
- चूंकि सीनियर सेलेक्शन कमेटी में अब वेस्ट जोन से दो प्रतिनिधि हैं इसलिए सलिल अंकोला को पैनल से हटाने की खबर थी- इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। वर्ल्ड कप के बाद ही अब कोई बदलाव होगा।
एजीएम के बाद, राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के लिए एक वर्कशॉप हुई- टिकट बिक्री पर जीएसटी, कमाई पर डबल टैक्स रोकना, सही एकाउंटिंग सिस्टम, टीडीएस और लोन पर ब्याज जैसे मुद्दों की चर्चा के लिए। सरकार की तरफ से बदलती गाइड लाइन में इन सब के बारे में नई सोच और बदले एक्शन की जरूरत है।
- चरनपाल सिंह सोबती