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पाकिस्तान क्रिकेट से आई एक नई खबर- टॉप बल्लेबाज बिस्माह मारूफ मार्च 2022 से शुरू होने वाले वन डे वर्ल्ड कप के लिए उपलब्ध हैं। इस खबर में ऐसी क्या बात है कि इसकी चर्चा करें? ख़ास बात ये है कि बिस्माह दिसंबर 2020 से मेटरनिटी छुट्टी पर हैं और मां बनने के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी कर रही हैं- अगस्त 2021 में बेटी को जन्म दिया।

मारूफ ने कहा- ‘पिछले कुछ महीने मेरे जीवन के सबसे अच्छे दिन रहे- माँ बनने और अपनी बेटी के साथ समय बिताने से मुझे बड़ी खुशी मिली पर अब इंटरनेशनल स्तर पर पाकिस्तान के लिए खेलने के अपने जुनून पर लौटने का समय आ गया है।’ बिस्माह 108 वन डे और इतने ही टी 20 इंटरनेशनल खेल चुकी हैं।

मां बनना खेलने से नहीं रोकता- भारत के खेलों में मौजूदा दो बहुत अच्छी मिसाल सानिया मिर्जा (टेनिस) और मेरी कॉम (बॉक्सिंग) हैं। आम तौर पर एशिया के देशों में ये सोच रही कि मां बनने का मतलब है- क्रिकेट करियर ख़त्म।

पाकिस्तान से बेहतरीन क्रिकेटर नैन आबिदी की मिसाल तो नई ही है। गर्भावस्था ने उन्हें पाकिस्तान टीम से रिटायर होने पर मजबूर कर दिया- 87 वन डे और 68 टी 20 इंटरनेशनल खेले।
बेटे अब्बास को जन्म दिया। फिट होने के बाद तड़प हुई कि फिर से क्रिकेट खेलो। प्रेक्टिस शुरू कर दी पर जब एहसास हो गया कि अब पाकिस्तान के लिए मौका नहीं मिलने वाला तो उनकी नजर यूएसए के लिए खेलने पर है- अब वे अपने पति के साथ वहीं रहती हैं।

गर्भावस्था का मतलब किसी एथलीट के करियर का अंत नहीं। यह कभी नहीं होना चाहिए लेकिन अक्सर होता है। अब, समय और सोच दोनों बदल रहे हैं। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि टॉप क्रिकेटर लेन हटन ने महिला क्रिकेट के बारे में एक बार कहा था- ‘इनका खेलना उतना ही बेतुका है जितना एक आदमी का बुनाई की कोशिश करना।’ अब सोच बदल गई है। न सिर्फ महिला क्रिकेट बराबरी कर रही है, कई बोर्ड ने अब प्रेगनेंसी पॉलिसी बना दी है- इसे न सिर्फ खिलाड़ियों को मां बनने के बाद वापसी के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन किया है, मां बनने को एक अलग नजर से देखा है। इसका सबसे बड़ा सबूत पीसीबी की स्टेटमेंट है- ‘अगर बोर्ड की मैटरनिटी पॉलिसी के तहत मारूफ को टीम में लेते हैं तो उन्हें न सिर्फ अपने बच्चे को, अपनी पसंद के एक मददगार को भी टूर पर साथ ले जाने /रखने की इजाजत होगी।’

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में मां बनने के बाद क्रिकेटर के इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने की मिसाल मौजूद हैं। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया की पॉलिसी तो इस मामले में सबसे बेमिसाल है। न सिर्फ मेटरनिटी छुट्टी मिलेगी- उस दौर की पूरी कॉन्ट्रेक्ट फीस भी मिलेगी।

अगर भारत की बात करें तो क्या कोई क्रिकेटर मां बनने के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट खेली है? ये केबीसी पर लाखों /करोड़ों के इनाम वाला सवाल बन सकता है। जो मिसाल इस संदर्भ में जानकारी में हैं, उन्हें देखिए :

नेहा तनवर : आखिरी बार जुलाई 2011 में खेलीं- तब तक 5 वन डे और 2 टी 20 इंटरनेशनल। 2014 में अपनी गर्भावस्था की खबर के बाद क्रिकेट से रिटायर। अक्टूबर 2014 में बेटे श्लोक का जन्म और 6 महीने बाद ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। कम से कम 20 किलोग्राम वजन कम करना पड़ा। परिवार ने पूरा साथ दिया। 2017 में- इंडिया ए के लिए बांग्लादेश के विरुद्ध वन डे की सीरीज में खेली। नेहा, वापसी में इंडिया ए, दिल्ली, नार्थ जोन और चैलेंजर ट्रॉफी में खेलीं।

बबिता मांडलिक : 3 वन डे और 2 टी 20 खेले 2003 तक। मां बनी और खेलना रुका पर वापसी की- ‘जब बच्चे को जन्म दिया तब मैं 72 किलो की थी पर फिटनेस पर ध्यान दिया ताकि क्रिकेट खेलूं।’ बबिता मध्य प्रदेश की कप्तान रहीं। उन्हें भी ससुराल वालों ने शादी के बाद खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।

बहरहाल इन दोनों ने माना कि पेशेवर जीवन की मुश्किलों के साथ व्यक्तिगत जीवन को संतुलित करना हमेशा बड़ा मुश्किल होता है।

श्वेता नायडू कदम : इन दिनों की एक मिसाल हैं विदर्भ की विकेटकीपर श्वेता नायडू कदम। वे मेरी कॉम, किम क्लिजस्टर्स, सेरेना विलियम्स और सानिया मिर्जा के नक्शे कदम पर चल रही हैं। मां बनने के बाद, सीनियर महिला वन डे टूर्नामेंट के लिए विदर्भ टीम में चयन- इस तरह वापसी करने वाली इस रीज़न की पहली क्रिकेटर। श्वेता – 2007 में 18 साल की उम्र में पहला फर्स्ट क्लास मैच, आखिरी बार 2016 में लिस्ट ‘ए’ मैच खेलीं, 2016 में अमित कदम से शादी- 2018 में एक बेटा रुद्रांश। 2019 में अपनी फिटनेस पर काम करना शुरू। 2021 में विदर्भ टीम में वापस।

मोनिका सुमरा : भारत की सलामी बल्लेबाज (3 टेस्ट, 14 वन डे और 1 टी 20 इंटरनेशनल- 2006 तक) और विदर्भ की पूर्व कप्तान जो मां बनने के बाद खेलीं पर सिर्फ कुछ डिपार्टमेंटल मैचों में।

इन दिनों आम तौर पर महिला क्रिकेटर् अपने करियर की वजह से शादी में देरी करती हैं। श्वेता जैसी खिलाड़ी,न केवल युवा क्रिकेटरों को बल्कि 28-32 की उम्र में खेल छोड़ने वालों को भी प्रेरित कर सकती हैं। ऐसा नहीं कि सिर्फ यही आख़िरी लिस्ट है- बस ऐसी स्टोरी हमेशा प्रेरणादायक होती हैं।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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