वर्ल्ड कप की सुर्ख़ियों में इस खबर की कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई कि लखनऊ के सहारा ग्रुप के फाउंडर सुब्रत रॉय का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सुब्रत रॉय ने 1976 में एक चिटफंड कंपनी, सहारा फाइनेंस, के साथ अपना व्यवसायी के तौर पर सफर शुरू किया था और वहां से वे देश के सबसे बड़े व्यापारी ग्रुप में से एक बने। खुद सुब्रत रॉय को सहारा श्री का नाम मिला। उनके व्यापार और उससे जुड़े विवाद की कई स्टोरी हैं- वे जेल भी गए। उस स्टोरी की यहां कोई चर्चा नहीं- जिक्र तो ये करना है कि पैसा आया तो उन्होंने भारत में खेलों के लिए क्या किया? एक समय वे देश के सबसे बड़े स्पोर्ट्स स्पांसर थे।
आज खिलाड़ी जिस पैसे की बदौलत बेहतर ट्रेनिंग हासिल कर मैडल जीत रहे हैं- इसका सिलसिला सुब्रत रॉय ने ही शुरू किया था। तब आम तौर पर स्पांसर, क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों पर खर्च नहीं करते थे- उन्होंने किया। क्रिकेट पर सबसे ज्यादा खर्च किया। कई क्रिकेटरों की व्यक्तिगत तौर पर मदद की- युवराज सिंह ने तो माना भी कि कैंसर के इलाज में उनकी तरफ से पूरी मदद मिली थी। लखनऊ के सालाना ‘शीश महल टूर्नामेंट’ (भारत के एक प्रमुख और सबसे पुराने समर क्रिकेट टूर्नामेंट में से एक) को उन्होंने ही लाइफ लाइन दी- उनका सहारा हटा तो टूर्नामेंट भी नहीं बचा।
सहारा इंडिया 2001 से 2013 तक भारतीय क्रिकेट टीम के स्पांसर थे और इसी दौर में टीम इंडिया ने चैंपियंस ट्रॉफी (2002), वर्ल्ड टी20 ट्रॉफी (2007), एशिया कप (2010), वर्ल्ड कप (2011) और चैंपियंस ट्रॉफी (2013) जैसे बड़े आयोजन जीते। संयोग देखिए- उसके बाद और किसी स्पांसर के लोगो वाली जर्सी पहनकर कोई सीनियर आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीते। एक मजेदार बात ये है कि 2003 का वर्ल्ड कप फाइनल खेले- तब भी वे ही स्पांसर थे पर खिलाड़ियों की जर्सी पर सहारा का नाम नहीं था। ऐसा क्यों हुआ- ये एक अलग स्टोरी है।
वे तो 2008 में एक आईपीएल टीम खरीदने के भी दावेदार थे। ये आज तक एक रहस्य है कि बीसीसीआई ने जिस दलील पर उनके बिड के लिफ़ाफ़े को खोला भी नहीं- वह आखिरकार थी क्या? ऑफिशियल तौर पर वजह रिकॉर्ड की- टेक्निकल रीज़न। सब जानते हैं वे एक टीम बना लेते तो जिन्हें बीसीसीआई का टीम देने का इरादा था- उनमें से किसी एक का पत्ता कटता। आखिरकार कई साल बाद पुणे शहर की आईपीएल टीम उन्होंने बनाई पर ये प्रयोग उनके लिए महंगा सौदा और विवादास्पद ज्यादा साबित हुआ था। इस टीम की वजह से बीसीसीआई के साथ उनके संबंध काफी बिगड़े।
इसका असर उनके टीम स्पांसर होने पर भी आया और 2012 में तो टकराव इस हद तक पहुंच गया था कि कॉन्ट्रैक्ट के बीच में ही, उन्होंने कह दिया कि न तो उनकी टीम आईपीएल खेलेगी और न ही उनका ग्रुप आगे से टीम इंडिया को स्पांसर करेगा। ये बीसीसीआई के लिए बहुत बड़ा झटका था क्योंकि वे ऐसे टकराव के लिए तैयार नहीं थे। खैर जल्दी ही सुलह हुई और क्रिकेटरों की शर्ट पर सहारा का लोगो अपनी जगह पर रहा। बीसीसीआई ने उनकी कई शर्तों को माना पर इस एपिसोड से माहौल खराब हो चुका था। नतीजा ये रहा- आईपीएल टीम पर टकराव/विवाद फिर शुरू हो गया और आखिरकार बीसीसीआई ने इस टीम के साथ कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया। टीम इंडिया के स्पांसर तौर पर कॉन्ट्रैक्ट 31 दिसंबर, 2013 तक चलने के बाद उन्होंने इसे रिन्यू नहीं किया। तब वे बीसीसीआई को हर इंटरनेशनल मैच के 3.34 करोड़ रुपये दे रहे थे और उस समय ये बहुत बड़ी रकम थी। बीसीसीआई के पास आज जो पैसा है- उसका आधार इसी कॉन्ट्रैक्ट से बना है।
इन दिनों हर चर्चा में वर्ल्ड कप का जिक्र है तो एक घटना आपको जरूर बताना चाहूंगा जिसमें सहारा का नाम है। सौरव गांगुली की टीम 2003 वर्ल्ड कप टीम फाइनल हारी। तब टीम स्पांसर सहारा थे और उस हार के बाद, दबी आवाज में ये बात उठी कि टीम ने वर्ल्ड कप के लिए रवाना होने से पहले, एक साथ मंदिर जाने के उनके सुझाव को न माना- इसलिए किस्मत भी टीम के साथ न थी।
खिलाड़ियों का अपनी आस्था के अनुसार किसी धार्मिक स्थल में जाना कोई नई या सनसनीखेज बात नहीं पर स्पांसर सहारा की तरफ से अनुरोध आया कि पूरी टीम मुंबई के मंदिर सिद्धिविनायक के दर्शन करे। जो प्रोग्राम बीसीसीआई ने बनाया था उसमें टीम के मंदिर जाने का कहीं जिक्र नहीं था। तब सहारा सिर्फ स्पांसर नहीं थे, खुद सहारा श्री बड़ी हस्ती थे और उनकी बात को आसानी से टाल नहीं सकते थे। मसला मंदिर जाने/न जाने का नहीं था- मसला था कि क्या पूरी टीम को ऑफिशियल विजिट बनाकर मंदिर ले जाएं? सहारा की रूचि टीम के मंदिर जाने से शानदार फोटो में थी।
टीम ऑफिशियल मुश्किल में पड़ गए कि क्या करें? बीसीसीआई से संपर्क करें तो कोई जवाब नहीं। असल में क्रिकेट टीम एक धर्मनिरपेक्ष भारत का प्रतिनिधित्व करती है- तो क्या पूरी टीम को एक साथ मंदिर जाने के लिए कहना सही रहेगा? तय हुआ खिलाड़ियों से पूछें।
सीनियर सचिन तेंदुलकर का जवाब- ‘मैं अपनी पूजा कर चुका हूं।’ एक-दो और क्रिकेटरों ने भी ऐसा ही जवाब दिया। बस हो गया फैसला- टीम ऑफिशियल तौर पर मंदिर नहीं जाएगी।
- चरनपाल सिंह सोबती