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अलविदा वार्नर और एल्गर। दोनों ने लगभग एक साथ टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा। कई समानता रहीं दोनों के बीच तो कई तरह से अलग भी थे :

  • एक अपने समय से आगे तो दूसरा अपनी तरह का आखिरी क्रिकेटर।
  • दोनों ओपनर और दोनों अपने करियर में मुश्किल झेलने वाले, आसानी से समझौता न करने वाले क्रिकेटर।
  • दोनों कामयाब और क्रिकेट के कुछ सबसे बेहतर बल्लेबाज में से एक- तब भी दोनों की प्लेइंग स्टाइल बिलकुल अलग। क्रिकेट में दोनों को सम्मान मिला।
  • नाकामयाबी के डर के बिना खेलने वाला करियर, पक्का इरादा।  
  • हालांकि सिर्फ एक साल का अंतर जन्म में पर दोनों अलग-अलग तरह के खिलाड़ी जो नजरिए में भी अलग थे। 
  • एल्गर कभी टी20 इंटरनेशनल नहीं खेले और सिर्फ 8 वनडे खेले। वार्नर ने पहले टी20 में डेब्यू किया- यहां तक कि फर्स्ट क्लास क्रिकेट भी इसके बाद खेले। वार्नर एक ऐसे टॉप खिलाड़ी रहे जो टी20 से आसानी से टेस्ट क्रिकेट में आ गए।
  • दोनों खब्बू- कठोर, सख्त, समझौता न करने वाले, टीम ड्रेसिंग रूम के प्रति लॉयल और इसके बाहर के लोगों पर कोई विश्वास नहीं।

सेंचुरियन में बॉक्सिंग डे टेस्ट में, दक्षिण अफ्रीका के 36 साल के ओपनर बल्लेबाज, डीन एल्गर ने इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने की घोषणा की। क्या एक ने दूसरे को रिटायर होने के लिए प्रेरित किया? नहीं, ऐसा नहीं है। एल्गर ने कहा कि उन्हें लगा कि उनके पास अब ‘खोने के लिए कुछ भी नहीं है’ और इसी टेस्ट में 14वां टेस्ट शतक बनाकर बता दिया कि अभी भी कैसी क्रिकेट खेल सकते हैं? भारत के बेहतरीन अटैक पर जो क्रिकेट खेली उसकी सभी ने तारीफ़ की। एल्गर ने साल की सबसे बेहतरीन इनिंग्स में से एक खेली।

न्यूलैंड्स की धमाके वाली पिच पर किसी बड़े स्कोर के साथ एल्गर को रिटायर होने का मौका नहीं मिला। एक दिन में दो बार आउट पर सम्मान में कोई कमी नहीं- कई भारतीय खिलाड़ियों ने गले लगाया और एल्गर मुस्कुराते हुए आख़िरी बार टेस्ट में बैटिंग के बाद पवेलियन लौटे। संयोग से केप टाउन के न्यूलैंड्स क्रिकेट ग्राउंड में अपने आख़िरी टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के कप्तान थे- अनफिट टेम्बा बावुमा की जगह। वास्तव में इससे पिछले टेस्ट में भी पहले सैशन में ही बावुमा के हैमस्ट्रिंग के कारण बाहर जाने के बाद एल्गर ही कप्तान थे। उसके बाद अपने फेयरवेल टेस्ट में कप्तान- टीम में उनसे ज्यादा कोई भी उस सम्मान का हकदार नहीं था।

2012 में टेस्ट डेब्यू। भले ही बैटिंग में असफल रहे लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने पर्थ में वह टेस्ट 309 रन से जीत लिया- तब ओपनर नहीं थे और नंबर 6 पर बैटिंग की। वहीं सेंचुरियन में 100 गेंद पर 64 रन का स्ट्राइक रेट और 185 का स्कोर जो उनके बेहतरीन टेस्ट करियर का आखिरी यादगार योगदान था। ओपनर बने 2014 में तब जब पोर्ट एलिजाबेथ में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध ग्रीम स्मिथ के टेस्ट पार्टनर बने और 83 रन बनाए। तब टीम की बल्लेबाजी में हाशिम अमला, फाफ डु प्लेसिस, एबी डिविलियर्स और क्विंटन डी कॉक जैसे नाम भी थे- तब भी अपनी जगह बना ली और मौजूदा पीढ़ी के सबसे बेहतरीन टेस्ट ओपनर में से एक गिने गए।

टेस्ट क्रिकेट में ओपनिंग आसान नहीं- खासकर दक्षिण अफ्रीका में, जहां तेज गेंदबाज, बाउंस और मदद देने वाले विकेट इसे और भी चुनौती वाला बना देते हैं। एल्गर के 185- अपने घरेलू ग्राउंड पर उनका पहला टेस्ट 100 थे और ये तीन दिन में दक्षिण अफ्रीका की पारी से जीत में सबसे बड़ा फैक्टर रहे। ऐसे खुलकर खेले- सभी ने महसूस किया कि इससे पहले के 84 टेस्ट में शायद ही कभी ऐसे खेले हों। दक्षिण अफ्रीका के कोच कॉनराड ने कहा- शायद इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने का फैसला ही ऐसे खेलने की वजह था।

एल्गर इस 100 के बाद जैसे उछले, हवा में मुक्का- उसमें डेविड वार्नर की झलक थी, जो उसके बाद अपना आख़िरी टेस्ट खेले। खब्बू ओपनर। सब जानते हैं कि एल्गर पर रिटायर होना थोपा गया- उन्हें बता दिया था कि वह अब दक्षिण अफ्रीका की लांगटर्म स्कीम में नहीं हैं। वार्नर ने काफी पहले कह दिया था कि सिडनी टेस्ट के बाद रिटायर होना चाहेंगे और सेलेक्टर्स ने उनका साथ दिया- इस टेस्ट तक खेलने का मौका दिया हालांकि उनके साथ खेले मिचेल जॉनसन ने भी कहा कि वे इस तरह के ‘अधिकार’ के हकदार नहीं।

जॉनसन ने एक और विवाद जोड़ दिया वार्नर के करियर में- विवाद से वे कभी दूर नहीं रहे। 2013 में इंग्लैंड में जो रूट के साथ विवाद के कारण सस्पेंड हुए, 2018 में दक्षिण अफ्रीका में क्विंटन डी कॉक के साथ एक और ऑफ-फील्ड विवाद पर तब तो आईसीसी ने भी लताड़ लगाई और इनके साथ ‘सैंडपेपरगेट’ और फिर से क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने सस्पेंड किया। जब वे अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखेंगे तो उनके पास मसाले की कमी नहीं होगी। उनके कप्तान और कोच दोनों ने उन्हें ऑस्ट्रेलिया का सबसे महान ऑल-फॉर्मेट बल्लेबाज बताया- तो इस सोच पर कोई बहस नहीं हुई।

यह एल्गर का दुर्भाग्य रहा है कि उनके करियर के दौरान क्रिकेट बिल्कुल बदल गया। 2012 में उनके डेब्यू के समय दक्षिण अफ्रीका टेस्ट क्रिकेट में टॉप पर था और उनके रिटायर होने के वक्त दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट क्रिकेट बैकफुट पर है- न्यूजीलैंड टूर के लिए चुनी टीम से बेहतर सबूत और क्या होगा?

वार्नर समय के हिसाब से सही खेले- प्रोफेशनल के तौर पर सबसे ज्यादा फीस लेने वालों में से एक, सबसे बेहतर पहचान वाले टी20 खिलाड़ियों में से एक, आधुनिक टेस्ट क्रिकेट में आक्रामक ओपनर- सिर्फ वीरेंद्र सहवाग को उनसे बेहतर गिनते हैं शुरू से ही गेंदबाजों पर हावी होने में। पाकिस्तान के विरुद्ध सिडनी में फिफ्टी इससे की पहचान था। नई गेंद पर 70+ स्ट्राइक रेट, 44+ औसत जो मामूली उपलब्धि नहीं और बिलकुल निडर थे जो सबसे बेहतर गेंदबाजों को भी आराम से खेले।  एक बड़ा मजेदार सवाल ये है कि तब भी, ऑस्ट्रेलिया में भी उन्हें ‘ग्रेट’ क्यों नहीं कहते? इसकी वजह है- ऑस्ट्रेलिया में औसत 50+ पर विदेश में 30+, इंग्लैंड, श्रीलंका, भारत या वेस्टइंडीज में कभी हावी नहीं हुए, जहां ऑस्ट्रेलिया में 20 स्कोर 100 के वहीं दक्षिण अफ्रीका और यूएई के अतिरिक्त और कहीं टेस्ट 100 नहीं बनाया।

डेविड वार्नर के इंटरनेशनल क्रिकेट में 49 शतक (टेस्ट में 26, वनडे में 22, टी20ई में 1)- किसी भी ओपनर के सबसे ज्यादा :  49 – वार्नर (451 पारी), 45 – तेंदुलकर (342), 42 – गेल (506), 41 – जयसूर्या (563), 40 – रोहित (333) और 40 – हेडन (340)। 

एल्गर और वार्नर दोनों के लिए, तब भी क्रिकेट में जगह है। दोनों दिलचस्प खिलाड़ी रहे हैं। दोनों हालांकि टेस्ट क्रिकेट से बाहर पर अभी हमेशा के लिए क्रिकेट से गायब नहीं होंगे- वार्नर टी20 में लौटेंगे और एल्गर फर्स्ट क्लास क्रिकेट में। देख लीजिए- एक भविष्य के ओपनर के लिए एक टेम्पलेट तो दूसरा अपनी तरह का आखिरी ओपनर बल्लेबाज। कमेंट्री के अतिरिक्त, वार्नर ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश लीग और यूएई में इंटरनेशनल लीग टी20 सहित दुनिया भर की अन्य आकर्षक लीग में खेलते रहेंगे।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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