ऑस्ट्रेलिया-पाकिस्तान टेस्ट सीरीज जितनी ग्राउंड पर चर्चा में है- उससे ज्यादा ग्राउंड के बाहर और इसमें भी एक बड़ा हिस्सा उस्मान ख्वाजा के नाम है। सबसे नई खबर- आईसीसी ने सीरीज के पहले टेस्ट के दौरान, प्रोटेस्ट जाहिर करने के गलत तरीके के इस्तेमाल का ख्वाजा पर आरोप लगाया। उनका आर्मबैंड प्रोटेस्ट भी आईसीसी को पसंद नहीं आया। पर्थ में ऑस्ट्रेलिया की 360 रन की जीत के दौरान उस्मान ने बाजू पर काली पट्टी पहनी थी- आईसीसी ने टेस्ट की पूर्व संध्या पर उनके शू प्रोटेस्ट पर प्रतिबंध लगाया तो उन्होंने आर्मबैंड का सहारा लिया अपने गाजा में नागरिकों के समर्थन के संदेश के सपोर्ट में। उनके जूतों पर ‘स्वतंत्रता एक मानव अधिकार है (Freedom is a human right)’ और ‘सभी का जीवन बराबर है (All lives are equal)’ जैसे मेसेज लिखे थे।
आईसीसी ने उन्हें चेतावनी देते हुए बता दिया था कि अगर मैच के दौरान ये जूते पहने तो प्रतिबंध के लिए तैयार रहें- आईसीसी के नियम राजनीति, धर्म या नस्ल से संबंधित व्यक्तिगत संदेशों के प्रदर्शन की इजाजत नहीं देते। इस पर ख्वाजा ने जूते पर मेसेज पर तो टेप लगा ली लेकिन बाजू पर काली पट्टी बांध ली। गाइडलाइन ये है कि आर्मबैंड पहनने के लिए पहले अपने घरेलू क्रिकेट बोर्ड और फिर आईसीसी से इजाजत लो अन्यथा आईसीसी नियम तोड़ने का आरोप।
ऐसी पहली गलती की सज़ा- फटकार। हां, अगर ख्वाजा ने एमसीजी में बॉक्सिंग डे टेस्ट के दौरान या आगे, बिना इजाजत काली पट्टी पहनना जारी रखा तो क्रिकेट एक नए तमाशे के माहौल के लिए तैयार रहे। ख्वाजा अभी भी कहते हैं कि आईसीसी गलत है और उन्हें अपना संदेश देने से रोक रहे हैं। ख्वाजा की दलील उन मिसाल पर है जहां आईसीसी की गाइडलाइन को खुले-आम तोड़ा गया और कुछ खिलाड़ियों को ऐसे व्यक्तिगत संदेश दिखाने की मंजूरी दी जो राजनीति, धर्म या नस्ल जैसे मसले से जुड़े थे।
आखिरकार ये कौन तय करेगा कि कौन सा मैसेज दिखा सकते हैं और कौन सा नहीं? आईसीसी के ‘क्लोदिंग एंड इक्विपमेंट रेग्युलेशंस’ में लिखा है- यह तय करने में कि मेसेज दिखाने योग्य है या नहीं, आईसीसी और उसके सदस्य बोर्ड की पॉलिसी ये है कि क्रिकेट दुनिया भर के लोगों को एक कम्यूनिटी की तरह एक साथ लाए न कि टुकड़े करने, राजनीतिक मुद्दों, बयानबाजी को उछालने का एजेंडा बने। इसलिए हर केस, किसी और से अलग है- समय और माहौल भी इसमें ख़ास है।
ख्वाजा के मामले में बहस का मुद्दा ये है कि वे कहते हैं कि वे अपना व्यक्तिगत शोक जाहिर कर रहे हैं और इसके लिए बाजू पर काली पट्टी बांधने का तो चलन है। ऐसा करने वाले वे पहले नहीं- पर उन्हें ही क्यों रोक रहे है? इस संदर्भ में एक बहुत अच्छी मिसाल- 2003 में, हेनरी ओलोंगा और एंडी फ्लावर दोनों ने वर्ल्ड कप के दौरान काली पट्टी बांधी ज़िम्बाब्वे में सरकार के एक्शन के विरोध में। तब भी इस आर्मबैंड पर आईसीसी गाइडलाइन तोड़ने का आरोप लगा लेकिन चीफ मैल्कम स्पीड ने साफ़ कहा कि जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए आईसीसी इस पर कोई एक्शन नहीं लेगा।
ख्वाजा ने भी सोशल मीडिया में यही अपील की अपने शू मेसेज के संदर्भ में और लिखा था- ‘हर कोई खुद से ये सवाल पूछे कि क्या आजादी हर किसी के लिए नहीं है? क्या सभी का जीवन बराबर नहीं है? वे कहते रहे कि जूतों पर लिखा मेसेज राजनीतिक नहीं है। आईसीसी ने बहरहाल उन्हें रोक दिया इसे राजनीतिक मेसेज मानकर।
ऑस्ट्रेलिया के लिए क्रिकेट खेलने वाले पहले मुस्लिम ख्वाजा ने इस बहस को जो चर्चा दी है- वैसा शायद इससे पहले कभी नहीं हुआ और इसकी वजह है ख्वाजा का चुप न होना- ‘ये एक मानवीय अपील है। मैं उनके विचार और फैसले का सम्मान करूंगा लेकिन इससे लड़ूंगा और मंजूरी हासिल करने की कोशिश करूंगा।’
1968 में मैक्सिको सिटी में 200 मीटर दौड़ के बाद ओलंपिक पोडियम पर टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस के ब्लैक पावर सैल्यूट से अगर चर्चा शुरू करें तो खेलों ने मोहम्मद अली के अपना ओलंपिक गोल्ड ओहायो नदी में फेंकने और बाद में वियतनाम में लड़ने के लिए आर्मी में भर्ती होने से इनकार जैसे बड़े मुद्दों को देखा और क्रिकेट में भी मिसाल कम नहीं। खुद आईसीसी के 2021 टी20 वर्ल्ड कप में ढेरों क्रिकेटर ने ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ के लिए घुटने टेक दिए। भारतीय क्रिकेटर भी तो आर्मी की कैप पहनकर खेले।
सिस्टम ये चला आ रहा है कि मानवीय और सामाजिक मुद्दों के लिए काली पट्टी बांधना एक आम बात है- अंपायरों/मैच रेफरी को इस इरादे के बारे में बताने की कोई जरूरत नहीं। इस साल, मिशेल मार्श ने वर्ल्ड कप के दौरान अपने दादा की मौत पर एक काली पट्टी पहनी, ऑस्ट्रेलियाई टीम ने पैट कमिंस की मां मारिया को श्रद्धांजलि देने के लिए इस साल के शुरू में टेस्ट सीरीज के दौरान भारत में काली पट्टी बांधी। 2014 में, इंग्लैंड के मोईन अली ने एक रिस्टबैंड पहना जिस पर लिखा था ‘गाजा बचाओ’ और ‘फ्री फिलिस्तीन’ और इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड की इजाजत से ऐसा किया- भले ही बाद में आईसीसी ने कहा कि ये गाइडलाइन में नहीं था पर कोई एक्शन नहीं लिया।
- चरनपाल सिंह सोबती