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रांची टेस्ट जीतने के साथ ही अब यो तो तय हो चुका है कि मौजूदा भारत-इंग्लैंड़ टेस्ट सीरीज में भारत विजेता है। अब सवाल ये है कि जब धर्मशाला में सीरीज खत्म होगी तो सीरीज विजेता के तौर पर रोहित शर्मा को कौन सी ट्रॉफी मिलेगी? अगर बीसीसीआई की इस सीरीज से जुड़ी रिलीज पर नजर डालें तो जवाब है- सीरीज का नाम आईडीएफसी फर्स्ट ट्रॉफी है। ये जवाब गलत नहीं क्योंकि पिछले साल ही तो बीसीसीआई ने आईडीएफसी फर्स्ट बैंक को अपने सभी इंटरनेशनल मैच (महिला और पुरुष दोनों), घरेलू क्रिकेट जैसे ईरानी ट्रॉफी, दलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी के साथ-साथ सभी जूनियर क्रिकेट (अंडर 19 और अंडर 23) के लिए टाइटल स्पांसर घोषित किया था। 

तो उस ट्रॉफी का क्या हुआ जिसके लिए भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज खेलने का फैसला खुद बीसीसीआई ने इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड के साथ मिलकर लिया? जैसे भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट क्रिकेट में हमेशा बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी का जिक्र होता है, वैसा जिक्र भारत-इंग्लैंड टेस्ट क्रिकेट में, ट्रॉफी होने के बावजूद क्यों नहीं होता? चूंकि खुद बीसीसीआई की इन नाम में रूचि नहीं- इसलिए इंग्लैंड की तरफ से ऐसा किए जाने की उम्मीद करना ही बेकार है।

ऑफिशियल तौर पर भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज, भारत में, क्रिकेट के सबसे चर्चित एडमिनिस्ट्रेटर में से एक के नाम पर एंथनी एस डी मेलो ट्रॉफी के लिए खेलते हैं और इंग्लैंड में पटौदी ट्रॉफी (भारत के भूतपूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी के नाम पर- उनके पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी इंग्लैंड के लिए टेस्ट खेले) के लिए। इस समय चूंकि सीरीज भारत में हुई तो चर्चा चांदी से बनी एंथनी डी मेलो ट्रॉफी को मिलनी चाहिए पर इसका कहीं जिक्र ही नहीं है। स्पांसर ने टाइटल अधिकार के लिए बीसीसीआई को पैसा दिया है- इसलिए सीरीज के हर जिक्र में उनका ही नाम है।

ऐसा नहीं है कि ऐसी गफलत पहली बार नोट की जा रही है। इंग्लैंड की तरफ से भी एंथोनी डी मेलो ट्रॉफी का जिक्र तो दूर, वहां सीरीज हो तो वे भी पटौदी ट्रॉफी का जिक्र नहीं करते और हर चर्चा में सीरीज को स्पांसर के नाम से जोड़ा जाता है। अगर वास्तव में ऐसा ही करना है तो पुराने लोगों की याद में, सिर्फ ओपचारिकता के लिए सीरीज को किसी ख़ास ट्रॉफी का नाम देने की जरूरत ही क्या है? स्पांसर समय के साथ बदलते रहेंगे और उसी हिसाब से सीरीज अलग-अलग ट्रॉफी के लिए खेलते रहेंगे।

भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज, इंटरनेशनल क्रिकेट के सबसे पुराने मुकाबलों में से एक है। भारत ने अपना पहला टेस्ट 1932 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेला और अब तक सबसे ज्यादा टेस्ट इंग्लैंड के विरुद्ध खेले हैं। इतना पुराना और ऐतिहासिक आपसी मुकाबला पर उस ट्रॉफी के लिए जिसके साथ सिर्फ पैसा देने वाले स्पांसर का नाम जुड़ा है। टेस्ट क्रिकेट सीरीज को कोई पक्का और तय नाम न मिलने से, सीरीज को वह चर्चा और महत्व मिलता ही नहीं मिलता, जो मिलना चाहिए। 

इंग्लैंड में सीरीज हो तो हालत और भी ख़राब रहती है। सीरीज विजेता को पटौदी ट्रॉफी मिलेगी- ये 2007 में तय हुआ था। विश्वास कीजिए- ये सिर्फ कोरा फैसला रहा और इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड की किसी रिपोर्ट में जिक्र नहीं होता पटौदी ट्रॉफी सीरीज का। बीसीसीआई की तरफ से कभी इस पर एतराज नहीं किया गया क्योंकि वे खुद भी ऐसा ही करते हैं।

सच ये है कि उस समय तो इंग्लिश बोर्ड का सुझाव था कि आगे से सभी इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज इसी पटौदी ट्रॉफी के लिए खेलें पर तब बीसीसीआई ने इंकार कर दिया और कहा वे भारत में मिलने वाली ट्रॉफी का नाम नहीं बदलेंगे। ट्रॉफी देने वाले पटौदी परिवार ने भी बीसीसीआई को लिखा कि इंग्लैंड का, पटौदी ट्रॉफी का सुझाव मान लो पर बीसीसीआई ने इस दलील पर इंकार कर दिया कि एंथोनी डी मेलो के भारतीय क्रिकेट में योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।
तब भी भारत में हाल के सालों में, भारत-इंग्लैंड सीरीज के किसी विजेता कप्तान को एंथनी डी मेलो ट्रॉफी नहीं मिली। 2021 में, भारत में इंग्लैंड के विरुद्ध टेस्ट सीरीज जीतने के बाद विराट कोहली को पेटीएम ट्रॉफी मिली थी और इस बार के विजेता को आईडीएफसी फर्स्ट ट्रॉफी।

भारत में सीरीज विजेता के लिए एंथनी डी मेलो ट्रॉफी देने का सिलसिला 1951 से शुरू हुआ। कौन थे ये एंथनी डी मेलो? बीसीसीआई के संस्थापकों में से एक थे वे और कई साल बोर्ड के सेक्रेटरी भी रहे। हालांकि भारतीय क्रिकेट के बहुत से सनसनीखेज विवाद के साथ उनका नाम जुड़ा है पर इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बीसीसीआई के गठन में ख़ास भूमिका निभाने के बाद, भारत में क्रिकेट का एक सही ढांचा तैयार करने में उन्होंने बड़ी मेहनत की।

रिकॉर्ड में ये दर्ज है कि डी मेलो और ग्रांट गोवन की कोशिश से बीसीसीआई का गठन हुआ दिसंबर 1928 में। इसके बाद, 1929 में डी मेलो और गोवन लंदन गए आईसीसी (तब नाम इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस था) की सालाना मीटिंग में हिस्सा लेने और उनकी कोशिशों तथा भारत में हो रही क्रिकेट प्रगति को देखते हुए- भारत को आईसीसी में शामिल किया गया।

डी मेलो 1928 में बीसीसीआई के पहले सेक्रेटरी बने- इस पद पर 10 साल रहे और उसके बाद 1946-47 से 1950-51 तक इसके प्रेसीडेंट। तो इस तरह से बीसीसीआई के पहले लगभग 25 साल तक वे बीसीसीआई के साथ थे और हालांकि इस दौरान अपनी पसंद के नाम पर कई गलत फैसलों के लिए चर्चा में रहे पर साथ-साथ वे भारत में क्रिकेट को बढ़ाने में भी लगे रहे। मुंबई में खेले जाने वाले पेंटागुलर टूर्नामेंट से रणजी ट्रॉफी तक सफर तय करने में उन्होंने बड़ी मेहनत की थी। भारत को बेहतरीन क्रिकेट टेलेंट मिलने का सिलसिला इसी रणजी ट्रॉफी से शुरू हुआ था और आज तक चला आ रहा है। इस बदलाव का सबसे बड़ा असर ये था कि भारत में सांप्रदायिक आधार पर टीम बनाना और क्रिकेट खेलना रुका और रणजी ट्रॉफी को नेशनल चैंपियनशिप के तौर पर पहचान मिली।

इंग्लैंड के स्पिनर मोंटी पनेसर ने ट्रॉफी की इस चर्चा में एक नया पेज जोड़ दिया है। उनका सुझाव है कि दोनों टीम की सीरीज एक नई ट्रॉफी के लिए खेलो- ‘तेंदुलकर-कुक ट्रॉफी’ के लिए। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर 200 टेस्ट मैच खेलने वाले एकमात्र क्रिकेटर हैं – 15,921 रन और 51 सेंचुरी और एलिस्टेयर कुक ने 161 टेस्ट में 12,472 रन बनाए, जो टेस्ट क्रिकेट में इंग्लैंड की ओर से सबसे ज्यादा हैं।   

  • चरनपाल सिंह सोबती

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