fbpx

एलिसा हीली की टीम ऑस्ट्रेलिया ने मुंबई में टेस्ट खेला- फरवरी 1984 के बाद भारत में पहला। जो टीम आई उसकी सबसे उम्र में सबसे बड़ी क्रिकेटर हीली का जन्म उस पिछले टेस्ट के 6 साल बाद हुआ था। महिला क्रिकेट किस तरह बदल रही है इसका अंदाजा इसी से लग जाएगा कि पिछले 12 महीनों में हीली तीन बार मुंबई आ चुकी हैं- इनमें डब्ल्यूपीएल शामिल है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में ये एक नए युग की शुरुआत है- मेग लैनिंग के बाद का युग।

इस आधुनिक दौर में ख़ास तौर पर वाइट बॉल क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया का प्रभुत्व सामने है- रैड बॉल क्रिकेट भले ही एक चुनौती है। ऑस्ट्रेलिया ने भारत आने से पहले के अपने आखिरी टेस्ट में इंग्लैंड को उन्हीं की जमीन पर हराया था- स्टैंड-इन कप्तान के तौर पर हीली का पहला टेस्ट था वह पर भारत में, ऑस्ट्रेलिया के लिए दोपहर की गर्मी और उमस में खेलना आसान नहीं रहा और साथ में अलग मिजाज वाली एसजी गेंद से खेलना जिसका उनकी ज्यादातर क्रिकेटरों को, पहले खेलने का कोई अनुभव नहीं था।

ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेटर कूकाबुरा गेंद से खेलने की आदी हैं और ये उनके लिए खेलने/सीखने का बड़ा अच्छा मौका रहा। उन्हें ये एसजी गेंद- कूकाबुरा और ड्यूक गेंद के बीच ‘खिचड़ी’ लगी है उन्हें। इस गेंद ने इंग्लैंड को शुरु से परेशान किया और ऑस्ट्रेलिया ने भी टेस्ट की दिक्कत के बाद वनडे एवं टी20 में बिना दिक्कत इससे खेला और भारत को वनडे में 3-0 और टी20 में 2-1 से हराया। दूसरी ओर, 34 साल की हरमनप्रीत ने टेस्ट कप्तानी में नई होने के बावजूद सीजन के दोनों टेस्ट जीते लेकिन ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध दोनों वाइट बॉल सीरीज में टीम परेशानी में पड़ गई। भारत की एक ऐसी टीम कहलाने की हसरत अधूरी रह गई जिसने हाल के सालों में सभी फॉर्मेट में ऑस्ट्रेलिया को चुनौती दी है। दर्शकों की रुचि की सच्चाई को भी चुनौती मिली- डीवाई पाटिल स्टेडियम में जब एंट्री फ्री थी तो हजारों दर्शक स्टेडियम में थे जबकि वानखेड़े में टेस्ट के दौरान, सिर्फ 100 और 200 रुपये की टिकट के बावजूद किसी भी दिन स्टेडियम में भीड़ नहीं थी।

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के दो यादगार टेस्ट के बाद, हरमनप्रीत ने भारत में फिर से टेस्ट वापस लाने के लिए बीसीसीआई को धन्यवाद दिया और कहा कि उन्हें और ज्यादा टेस्ट खेलने में खुशी होगी। सच्चाई ये है कि आईसीसी ने अप्रैल 2025 तक के लिए जो प्रोग्राम तय किया है उसमें तब तक भारतीय महिलाओं को कोई और टेस्ट नहीं खेलना। यह कोई हैरानी की बात नहीं कि हरमनप्रीत चाहती हैं कि भारत ज्यादा टेस्ट खेले, क्योंकि इस फॉर्मेट में भारत ने पिछले दो साल में बड़ा अच्छा प्रदर्शन किया है। भारत में टेस्ट में हार के बावजूद हीदर नाइट और एलिसा हीली ने भी ज्यादा टेस्ट की वकालत की है। न सिर्फ ज्यादा टेस्ट- हर सीरीज में भी एक से ज्यादा टेस्ट खेलने की वकालत हो रही है। ऑस्ट्रेलिया को इस साल दो और टेस्ट खेलने हैं- अपने देश में दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के विरुद्ध। ये दोनों सीरीज संभवतः मल्टी फॉर्मेट-मल्टी पॉइंट सिस्टम वाली होंगी। बीसीसीआई के लिए प्राथमिकता वाइट बॉल क्रिकेट है और हैरानी की बात ये कि इस फॉर्मेट को ही ज्यादा खेलने के बावजूद भारत का रिकॉर्ड खराब होता जा रहा है।

ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 11 टेस्ट में पहली जीत के बाद जो तारीफ़ का माहौल बना था वह उसके बाद वनडे और टी20 सीरीज हारने से एकदम हवा हो गया। सपोर्ट स्टाफ, गेंदबाजी कोच और बल्लेबाजी कोच सब हैं और बीसीसीआई की तरफ से सुविधाओं में भी कोई कमी नहीं पर वह नतीजा सामने नहीं आ रहा जो भारत को एक टॉप टीम साबित करे। तो क्या सिर्फ टेस्ट ही खेलें? मौजूदा दौर में ऐसी सोच से काम नहीं चलने वाला।

टेस्ट अवसरों की कमी की परवाह किए बिना, भारत को अपने वाइट बॉल क्रिकेट रिकॉर्ड को सुधारना होगा। ऑस्ट्रेलिया जैसी टॉप टीम से दोनों वाइट बॉल सीरीज हारना उतना बुरा नहीं है जितना बार-बार उन्हीं गलतियों/कमियों को दोहराना। इसकी एक बहुत अच्छी मिसाल- दीप्ति शर्मा में स्ट्राइक रेट तेज न करने की कमजोरी के बावजूद उन्हें ऊपर के ऑर्डर में भेजना टीम के लिए बड़ा महंगा रहा।

टीम के लिए स्मृति और हरमन का रन बनाना बड़ा जरूरी है- इन दोनों टॉप बल्लेबाज के प्रदर्शन में वह स्थिरता नहीं नजर आ रही जो इन्हें एक टॉप बल्लेबाज साबित करे। इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है की कि जो हरमन दूसरे देशों में टी20 लीग में गेंदबाजी करती हैं- भारत के लिए गेंदबाजी में कंजूसी क्यों करती हैं? ऐसे भी संकेत हैं कि बीसीसीआई के सब्र का बांध टूट रहा है और टीम की क्रिकेट को विविधता देने के लिए कप्तान बदले तो कोई हैरानी नहीं होगी।

  • चरनपाल सिंह सोबती

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *