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तय प्रोग्राम के हिसाब से मौजूदा एशेज सीरीज का पांचवां टेस्ट पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पर्थ के ऑप्टस स्टेडियम में खेला जाना था। वहां खेलने का मतलब था दोनों टीम के खिलाड़ी फिर से 14 दिन का क्वारंटीन करें- जो संभव नहीं था। इसलिए टेस्ट वहां से हटा। अब सवाल ये था की ये टेस्ट किसे मिले? सिडनी और मेलबर्न पहले से सीरीज में एक- एक टेस्ट की मेजबानी कर रहे हैं पर वे ही इस टेस्ट को भी हासिल करने करने के सबसे जोरदार दावेदार थे।  तो ऑस्ट्रेलिया ने दावेदार कैसे तय किया? एक बड़ा अनोखा तरीका अपनाया। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने सभी क्रिकेट एसोसिएशन को बराबर दावेदार मानते हुए, उन से कहा टेस्ट की मेजबानी पाने के लिए अपना अपना दावा पेश करो और साथ में बताओ कि टेस्ट से सबसे ज्यादा मुनाफा कौन देगा? विक्टोरिया मेलबर्न के लिए और तस्मानिया होबार्ट के लिए सबसे जोरदार दावेदार थे। कमर्शियल, लॉजिस्टिक और ऑपरेशनल मुद्दे तो ध्यान में रखे ही गए- साथ में ये भी कि जबकि मेलबर्न को तो पहले से एक टेस्ट मिला हुआ है और होबार्ट ने सीजन का जो एकमात्र टेस्ट आयोजित करना था (अफगानिस्तान के विरुद्ध) वह भी अब उनसे छिन चुका है। प्रधान मंत्री, स्कॉट मॉरिसन ने भी होबार्ट का समर्थन किया। 
एससीजी, मेलबर्न का मुकाबला करना नहीं था। उन्होंने पिंक बॉल टेस्ट का टेस्ट का प्रस्ताव रखा तो होबार्ट ने भी ये जाने बिना कि क्या दिक्कतें आएंगी, पिंक बॉल टेस्ट की बात कह दी।  मेलबर्न ने 22 मिलियन डॉलर के मुनाफे की बात कही तो होबार्ट ने उसकी भी बराबरी कर दी (हालांकि अपने मूल आवेदन में होबार्ट ने सिर्फ 5 मिलियन डॉलर के मुनाफे की बात कही थी)- सभी जानते हैं कि वे घाटे का सौदा कर रहे थे। इस तरह टेस्ट होबार्ट को मिल गया :
  अब सीरीज का पांचवां टेस्ट ब्लंडस्टोन एरेना ,होबार्ट में- अगले साल 14 जनवरी से।   अब ये डे- नाइट टेस्ट यानि कि सीरीज में दो डे- नाइट टेस्ट।    होबार्ट, तस्मानिया में पहली बार एशेज टेस्ट खेला जाएगा।    2016 से होबार्ट में कोई टेस्ट नहीं खेला गया है- तब दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को हराया था।  

तय प्रोग्राम के हिसाब से सिडनी में चौथा टेस्ट है। सिडनी का दावा इस बात पर टिका था कि अगर उन्हें ये टेस्ट दिया जाता है तो हर किसी को गजब की सहूलियत मिलेगी- किसी को भी इधर – उधर भागने की जरूरत नहीं। वे भी डे- नाइट टेस्ट के लिए तैयार थे। ब्रॉडकास्टर फॉक्स स्पोर्ट्स और चैनल 7 ने भी इसी वजह से सिडनी का समर्थन किया। एक टेस्ट की मेजबानी की कीमत लगभग $ 3 मिलियन डॉलर है और रिकॉर्ड ये बताता है कि जब 2015 में वेस्टइंडीज और 2016 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध टेस्ट खेले गए होबार्ट में तो औसतन 5000 दर्शक ही एक दिन में क्रिकेट देखने आए जबकि ब्लंडस्टोन एरेना की क्षमता लगभग 15,000 है। साफ़ है कि वे घाटे का सौदा कर गए पर उन्हें उम्मीद है कि एशेज और डे नाइट टेस्ट ऐसे दो फैक्टर हैं जो इतना ज्यादा घाटा नहीं होने देंगे।  इस तरह क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने टेस्ट का आयोजन बेचा, अपने लिए कमाई की गारंटी ली और मेजबानी दे दी। बड़ा अनोखा सिस्टम है ये। फ़ॉक्सटेल और सेवन की पसंद एमसीजी/ एससीजी थे पर वे खुश हैं क्योंकि उन्हें सीरीज में दो डे- नाइट टेस्ट मिल रहे हैं। सीए के साथ उनका कॉन्ट्रेक्ट 1.18 बिलियन डॉलर का है। टेस्ट मिलने से तस्मानिया क्रिकेट की नाराजगी भी कुछ कम हुई है। वे अपने क्रिकेटर टिम पेन के साथ हुए सलूक से बहुत नाराज है- ख़ास तौर पर ऐसे में कि जिस जिस मामले को क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने खुद 2018 में ख़त्म कर दिया था- अब उसी को उठाकर सजा दे दी।    सीजन में टेस्ट बांटने का ये सिस्टम पढ़कर आपको बड़ा अजीब लग रहा होगा पर सच ये है कि ऑस्ट्रेलिया ऐसा करने वाला पहला देश नहीं- इंग्लैंड में तो हर सीजन में टेस्ट मिलते ही इन्हीं सब मुद्दों पर हैं। क्या आपने ध्यान दिया कि ऐसा क्यों है कि सीजन के सबसे बेहतर दिनों के टेस्ट, हर सीजन में कुल तीन टेस्ट भी लंदन के स्टेडियम (लॉर्ड्स और ओवल) ले जाते हैं- वे बड़े शहर में हैं, भीड़ जुटाना ज्यादा मुश्किल नहीं होता, ज्यादा पैसा आता है, ईसीबी को ज्यादा पैसा देते हैं और सीजन के ‘बड़े’ टेस्ट हथिया लेते हैं। जैसे जैसे टेस्ट को लंदन से दूर ले जाते हैं-  टेस्ट गलत दिनों में खेले जाते हैं और घाटा बढ़ता जाता है। लंदन की स्थिति ये है कि न सिर्फ टेस्ट क्रिकेट देखने वाले हैं, महंगे टिकट भी खरीदते हैं। डरहम को किसी बड़ी टीम का नहीं, श्रीलंका के विरुद्ध टेस्ट मिला। उसके लिए भी ईसीबी को 950,000 पाउंड का भुगतान किया। नतीजा- टिकट की कीमतों में बढ़ोतरी और स्टेडियम आधा भी नहीं भरा। यही हालत चेस्टर-ले-स्ट्रीट की हुई। कार्डिफ़ भी इसी कतार में है।  
क्या भारत में भी ऐसा सिस्टम हो सकता है? अगर ऐसा हुआ तो टेस्ट का आयोजन मुंबई (एक सीजन में दो भी), चेन्नई ,बैंगलोर, कोलकाता या दिल्ली ही हथिया लेंगे- रांची, जयपुर, इंदौर या धर्मशाला इनका मुकाबला कहां कर पाएंगे? 2019 में टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने भी तो यही कहा था- भारत में टेस्ट सिर्फ 5 ग्राउंड में खेले जाने चाहिए, जो ऐतिहासिक यानि कि क्रिकेट सेंटर के तौर पर ख़ास पहचान वाले हों।  

इन बड़े सेंटर में इतनी सामर्थ्य है कि सरकारी और प्राइवेट एजेंसी के साथ मिलकर टेस्ट के लिए बेहतर इंतज़ाम जुटा लें- ये छोटे सेंटर के लिए दिक्कत बन जाता है। दूसरी तरफ भारत में एक और सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता। जहां एक ओर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में अभी भी बड़े सेंटर ये मानते हैं कि टेस्ट क्रिकेट ही असली क्रिकेट है और नजर आ रहे घाटे के बावजूद टेस्ट का आयोजन मांगते है (जैसा कि होबार्ट ने एशेज टेस्ट के लिए किया), भारत में हर क्रिकेट सेंटर वन डे/ टी 20 इंटरनेशनल माँगता है- एक दिन का ताम- झाम, भीड़ की गारंटी और पैसा तो आएगा ही। भारत के छोटे सेंटर तो टेस्ट न मिलने से ज्यादा खुश हो जाएंगे। ये कोई नहीं सोचता कि मुंबई या दिल्ली को क्रिकेट सेंटर टेस्ट क्रिकेट ने बनाया- न कि टी 20 या वन डे क्रिकेट ने ! क्रिकेट या पैसा, भारत में इस सोच पर अलग नजरिया है। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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