बदलते समय के साथ, धीरे-धीरे देश के अलग-अलग हिस्से में, रणजी ट्रॉफी के ऑफ सीजन में, रणजी ट्रॉफी और इंटरनेशनल क्रिकेट की तैयारी के लिए खेले जाने वाले टूर्नामेंट अपनी चमक खो रहे हैं- शायद इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि ज्यादातर स्टार क्रिकेटरों के पास चेन्नई के बुची बाबू, दिल्ली के हॉट वैदर, कर्नाटक में सफ़ी दाराशाह, हैदराबाद में मोइन-उद-दौला गोल्ड कप और मुंबई के कांगा लीग जैसे टूर्नामेंट में खेलने की फुर्सत कहां है? यहां तक कि ऐसे ज्यादातर टूर्नामेंट अब न तो नियमित आयोजित हो रहे हैं और न ही ख़बरों में रहते हैं। मुझे याद है- आगरा में रेलवे टूर्नामेंट में सलीम दुर्रानी जैसे क्रिकेटर का खेलना पूरे शहर में हलचल मचा देता था और अपने आप कॉलेज में एटेंडेंस कम हो जाती थी।
ऐसे में एक नई कोशिश की खबर- बुची बाबू टूर्नामेंट फिर से खेल रहे हैं इस साल तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन की कोशिश से और जरूरत को पहचान कर मैचों को 4 दिन के फॉर्मेट में बदल दिया है। 20 और 10 ओवर क्रिकेट के इस युग में, 4 दिन वाले मैच बिलकुल अलग हैं जबकि मौजूदा सच्चाई ये है कि आईपीएल से प्रेरणा की बदौलत अब तो ज्यादातर स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन घरेलू टी20 टूर्नामेंट की मेजबानी कर रही हैं- पैसा कमाने के लिए और साथ में प्री-सीजन का उपयोग। तमिलनाडु ने भी टी20 लीग के आयोजन के बाद इसके लिए दिन निकाले।
इस तरह टीएनसीए के ऑल इंडिया बुची बाबू इन्विटेशन टूर्नामेंट की वापसी हो रही है 6 साल (2016-17 सीज़न) के बाद और एसोसिएशन ने इस बात को छिपाया नहीं कि हाल के सालों में, रणजी ट्रॉफी में, तमिलनाडु का खराब प्रदर्शन इसकी सबसे बड़ी प्रेरणा है और इसीलिए मैच 4 दिन के बना दिए। टूर्नामेंट 15 अगस्त से शुरू हुआ और 11 सितंबर तक खेलेंगे- इस बार 12 टीम और प्लेइंग कंडीशंस रणजी ट्रॉफी वाली। टीम की गिनती बढ़ाने की वजह, अन्य स्टेट यूनिट के टीम भेजने के अनुरोध की बदौलत हुई और अभी भी जो लेट हुए चूक गए। यहां तक कि झारखंड को, ड्रॉ में शामिल करने के एमएस धोनी के अनुरोध के बावजूद शामिल नहीं किया जा सका। छत्तीसगढ़ और सर्विसेज भी रह गए। नॉर्थ इंडिया में जबरदस्त मानसून के कारण क्रिकेट पर भी असर आया है- इसीलिए 12 में से 9 टीम नॉर्थ से हैं और खुद टीएनसीए की 2 टीम तथा साउथ जोन से एकमात्र अन्य टीम केरल है। बाहर से 10 टीम- रेलवे, हरियाणा, बड़ौदा, मुंबई, दिल्ली, केरल, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और बंगाल।
इवेंट के लिए 28 दिन की विंडो- अब तक के इस के लिए सबसे ज्यादा दिन और सबसे बड़ा बजट (2.5 करोड़ रुपये) भी जिसमें विजेता टीम के लिए 3 लाख और फाइनल की दूसरी टीम के लिए 2 लाख रुपये का इनाम शामिल है। 12 टीम 4 ग्रुप में हैं और हर ग्रुप से टॉप टीम सेमीफाइनल खेलेंगी। क्रिस श्रीकांत ने लॉन्च इवेंट में ठीक कहा-‘ खुशी है कि टीएनसीए बुच्ची बाबू को फिर से लाइफ दे रहे हैं। मेरे समय में ये बड़ी लीग क्रिकेट में एंट्री का पहला कदम थी- इसमें अच्छा खेलने से ही रणजी टीम में जगह मिली थी। आज माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सिर्फ आईपीएल खेलें- इसलिए 4 दिन वाले मैच तो और ख़ास हैं।’ मैच कोयंबटूर, सेलम, डिंडीगुल और तिरुनेलवेली में ग्रीन-टॉप पर हैं क्योंकि चेन्नई में वर्ल्ड कप की तैयारी चल रही है।
एक बड़ी मजेदार और ख़ास बात ये है कि देश के इस राज्य से कई मशहूर क्रिकेटर के खेलने के बावजूद, इस टूर्नामेंट को उनके नाम के साथ नहीं- बुची बाबू के नाम से पहचान मिली। कौन थे ये बुची बाबू? सच ये है कि उन्हें तो ‘फादर ऑफ़ मद्रास क्रिकेट’ भी लिखते हैं और ये टूर्नामेंट रणजी ट्रॉफी से भी पुराना है। पहली बार 1909-10 सीज़न में मोथावरपु वेंकट महीपति नायडू (यही बुची बाबू के नाम से मशहूर हुए) के 1908 में निधन के एक साल बाद इसे खेले थे। अपने पिता की याद में, ये टूर्नामेंट उनके तीन बेटों (एम बलैया नायडू, सी रामास्वामी- भारत के टेस्ट क्रिकेटर और वेंकटरामानुजुलु) की कोशिश से इसे आयोजित किया था- लगभग 50 साल तक सिर्फ लोकल टीमें ही इसमें शामिल हुई और 1960 के दशक में ये ऑल इंडिया इन्विटेशन टूर्नामेंट में बदल गया। वहां से टूर्नामेंट का प्रोफ़ाइल बढ़ता ही गया।
लगभग सभी बड़े क्रिकेटर इसमें खेले- 1971 में सुनील गावस्कर, कैरेबियन में सनसनीखेज डेब्यू के कुछ ही महीने बाद एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी की तरफ से यहां खेले थे।गावस्कर ने ‘सनी डेज़’ में इसका जिक्र भी किया है- जब वे खेलने के लिए मद्रास पहुंचे तो लगभग 8-9 हजार लोग रेलवे स्टेशन पर उनका इंतजार कर रहे थे। ग्राउंड पर हालत ये थी कि जब वह बल्लेबाजी के लिए जा रहे थे तो प्रशंसकों की भीड़ में वे कई मिनट तक फंसे रहे और आखिर में पुलिस एस्कॉर्ट ने उन्हें क्रीज तक पहुंचाया। एक कॉलेज ग्राउंड में मैच था और कोई ख़ास इंतजाम नहीं था। आलम ये कि ड्रिंक्स इंटरवल में भी भीड़ ग्राउंड पर आ जाती थी। आज कहां है ऐसी भीड़ और ऐसे खेलने वाले?
- चरनपाल सिंह सोबती