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रिकॉर्ड में हमेशा यही जिक्र मिलेगा- ढाका के शेर-ए-बांग्ला नेशनल स्टेडियम में पाकिस्तान ने बांग्लादेश को तीसरे टी 20 इंटरनेशनल में 5 विकेट से हरा दिया और सीरीज 3-0 से जीत ली। ये जिक्र कहीं नहीं मिलेगा कि ये तीसरा मैच बांग्लादेश जीत सकता था और तब सीरीज का स्कोर 2-1 होता। तो क्यों नहीं हुआ ऐसा?

क्रिकेट है तो सिर्फ एक खेल पर अक्सर टीमों और खिलाड़ियों की नैतिकता का इम्तहान लेता है। कई बार, खिलाड़ियों को चुनौती मिलती है कि अपनी टीम के फायदे से भी ज्यादा स्पोर्ट्समैनशिप (खेल भावना) को महत्व दें। अपनी जीत को भी भूल जाएं- तो फिर खेल किसके लिए रहे हैं?

इस तीसरे टी 20 में यही हुआ। ये कम स्कोर वाला थ्रिलर था। पाकिस्तान के सामने जीत के लिए लक्ष्य- 125 रन। महमूदुल्लाह (बांग्लादेश के कप्तान) ने आखिरी ओवर के लिए गेंद संभाली – तब 6 गेंदों पर आठ रन चाहिए थे। पहली गेंद- डॉट, इसके बाद लगातार दो विकेट, चौथी गेंद- इफ्तिखार अहमद का छक्का, पांचवीं गेंद – इफ्तिखार आउट। आखिरी गेंद पर दो रन की जरूरत- मोहम्मद नवाज स्ट्राइक पर और स्टांस लिया। महमूदुल्लाह ने गेंद फेंकी- बिलकुल तभी नवाज स्टंप्स से हट गए, गेंद को खेले बिना छोड़ने के लिए। गेंद सीधी स्टंप्स पर जा लगी। किसी की समझ में नहीं आया कि अब क्या होगा? खिलाड़ियों और अंपायरों के बीच गुफ्तगू शुरू हो गई और उसके बाद इस डिलीवरी को डेड करार दे दिया। अगर ऐसा न होता तो बांग्लादेश मैच जीत गया था।

महमूदुल्लाह ने अंपायर से सिर्फ यही पूछा कि क्या यह फेयर बॉल थी? अंपायर के फैसले को महमूदुल्लाह ने मान लिया- रिव्यू तक नहीं माँगा। नवाज ने आखिरी सही मानी गई गेंद पर चौका लगाकर मैच जीत लिया।

सवाल ये है कि स्टांस लेने के बावजूद आखिरी समय पर नवाज स्टंप्स से क्यों हटे? नवाज़ का जवाब- ‘मैं नीचे देख रहा था और उसने गेंद फेंक दी। जब मैंने ऊपर देखा तो गेंद सामने थी- यही वजह है कि मैं वहां से हट गया।’ महमूदुल्लाह की स्पोर्ट्समैनशिप ने बांग्लादेश से मैच छीन लिया।

हैरानी की बात ये है कि न तो स्पोर्ट्समैनशिप की इस अद्भुत मिसाल को कोई ख़ास चर्चा मिली और न ही इस साल इंग्लिश समर की एक घटना को जिसमें जो रुट शामिल थे। टी 20 ब्लास्ट के यॉर्कशायर के विरुद्ध मैच में, एक रन लेने के दौरान स्टीवन क्रॉफ्ट गिर गए। उस समय, लेंकशायर को जीत के लिए 18 गेंद में 15 रन की जरूरत थी और 5 विकेट बचे थे। पिच पर गिरे क्रॉफ्ट को आसानी से रन आउट किया जा सकता था पर यॉर्कशायर के कप्तान जो रुट ने ऐसा करने से रोक दिया। ढेरों मैचों में रन लेने की कोशिश में बल्लेबाज़ गिरे, चोट लगी पर फील्डिंग टीम ने उसे रन आउट करने का अपना हक़ नहीं छोड़ा। इसीलिए यॉर्कशायर के क्रॉफ्ट को रन आउट करने की कोशिश न करने पर,अंपायरों ने गेंद को ‘डैड बॉल’ घोषित कर दिया।

क्राफ्ट पिच पर दर्द में पैर पकड़े हुए पड़े थे। तब तो वापस चले गए पर जरूरत पड़ने पर बैटिंग के लिए वापस लौटे, 26* बनाए और लेंकशायर को ओल्ड ट्रैफर्ड में 4 विकेट से जीत दिला दी- इसी की बदौलत उनकी टीम ने क्वार्टर फाइनल में जगह बना ली। अगर तब यॉर्कशायर ने क्रॉफ्ट को आउट कर दिया होता तो क्या होता- कोई नहीं जानता पर बहस शुरू हो गई और जितने जानकारों ने इसे स्पोर्ट्समैनशिप की मिसाल माना- उससे ज्यादा ने इसे गलत परंपरा माना। यॉर्कशायर का क्वार्टर फाइनल खेलना पहले ही तय हो चुका था- उन्हें हार से कोई नुकसान नहीं हुआ। अगर क्वार्टर फाइनल में खेलना दांव पर लगा होता- क्या तब भी रुट ऐसा ही करते?

मैच की कमेंट्री कर रहे इंग्लैंड के पुराने खिलाड़ियों- मार्क बूचर और रॉब की के बीच भी बहस शुरू हो गई और उसे पूरी दुनिया ने सुना। मार्क बूचर ने कहा- ‘ क्रॉफ्ट रन लेने भागे थे, आधे रास्ते में अपना इरादा बदल दिया और वापस मुड़ने में फिसल गए। उस मुकाम पर यह कतई यॉर्कशायर की जिम्मेदारी नहीं थी कि देखें कि क्रॉफ्ट को क्या हुआ, क्या पैर टूट गया है या और कुछ?’
एक और अद्भुत मिसाल। 1987 वर्ल्ड कप में लाहौर में दो बार की वर्ल्ड कप चैंपियन वेस्टइंडीज और फेवरिट पाकिस्तान के बीच मैच। इमरान खान के चार विकेट ने वेस्टइंडीज को 216 ही बनाने दिए। जवाब में एक समय पाकिस्तान 92-3 और फिर 183-5 पर। इसके बाद पाकिस्तान ने 20 रन पर चार विकेट गंवा दिए और मैच नाजुक मुकाम पर पहुँच गया।

आखिरी ओवर कर्टनी वॉल्श ने फेंका- पाकिस्तान को 14 रन चाहिए थे। पहली गेंद- अब्दुल कादिर का एक रन, दूसरी गेंद- सलीम जाफर का एक रन, कादिर ने अगली तीन गेंद पर 2, 6, 2 के स्ट्रोक लगाए और पाकिस्तान को जीत के मुकाम पर ले आए। अब आखिरी गेंद- जीत के लिए पाकिस्तान को 2 रन की जरूरत और आखिरी जोड़ी पिच पर।

वॉल्श आखिरी गेंद फेंकने अपने रन अप में दौड़े पर ये क्या स्टंप्स को पार करते ही, गेंद फेंके बिना रुक गए। नॉन-स्ट्राइकर सलीम जाफर जोश में, गेंद फेंके जाने से पहले ही क्रीज़ से आगे निकल गए थे। वॉल्श बड़े आराम से उन्हें रन आउट कर सकते थे और वेस्टइंडीज मैच जीत लेता। वाल्श ने ऐसा नहीं किया और फिर से गेंद फेंकने अपने मार्क पर लौट गए।

कादिर ने आखिरी गेंद पर जीत के लिए रन बना दिए और पाकिस्तान ने मैच एक विकेट से जीत लिया। इस हार ने वेस्टइंडीज के सेमीफाइनल में जगह बनाने की नाकामयाबी में बड़ी ख़ास भूमिका निभाई। वॉल्श की स्पोर्ट्समैनशिप की तो आज तक तारीफ होती है पर इसकी कीमत उनकी टीम ने चुकाई।

और भी कई कई मिसाल हैं ऐसी ही स्पोर्ट्समैनशिप की- कौन तय करेगा कि ऐसी स्पोर्ट्समैनशिप जरूरी है या सही क्रिकेट लॉज़ में मैच जीतना?

इस साल के टी 20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में क्या हुआ? गेंदबाज़ इंग्लैंड के आदिल राशिद, स्ट्राइकर जिमी नीशम और 18वें ओवर की पहली गेंद- उस समय न्यूजीलैंड को जीत के लिए आखिरी तीन ओवरों में 34 रन चाहिए थे। ऐसे में हर रन कीमती था। इस संकट के बावजूद, नीशम के स्ट्रोक पर नॉन स्ट्राइकर मिशेल ने सिंगल लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि वह गेंदबाज के अपने फॉलो-थ्रू में गेंद को फील्ड करने की कोशिश के बीच में आ गए। राशिद गेंद रोकने की कोशिश में मिशेल से टकरा गऐ थे। न्यूजीलैंड ने आखिर में ये सेमीफाइनल जीता पर अगर वे एक रन से चूक गए होते तो मिशेल की जिस स्पोर्ट्समैनशिप को आज कोई याद नहीं कर रहा- वह सबसे बड़ा किस्सा बन गई होती।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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