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1993 में बेंगलुरु में जिम्बाब्वे-दक्षिण अफ्रीका हीरो कप मैच में ऑलराउंडर 19 साल के हीथ स्ट्रीक ने डेब्यू किया था और उस मैच के एक अंपायर पीलू रिपोर्टर थे- दोनों की 3 सितंबर को मौत हो गई। यहां पीलू रिपोर्टर की बात कर रहे हैं। इंटरनेशनल क्रिकेट के सबसे सख्त पर लोकप्रिय अंपायर में से एक थे पीलू रिपोर्टर। उनका जहां भी जिक्र होता है पाकिस्तान में न्यूट्रल अंपायर के तौर पर ड्यूटी का जरूर जिक्र होता है- जब ऐसा हुआ तब टेस्ट मैच में मेजबान देश के अंपायर ही ड्यूटी देते थे। नियमित न्यूट्रल अंपायर का सिलसिला उसके बाद ही शुरू हुआ था। 

‘पीडी’ के नाम से लोकप्रिय, उम्र 84 साल और लंबे समय से बीमार थे। 14 टेस्ट और 22 वनडे में अंपायरिंग की- इसमें 1992 (ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में आयोजित) वर्ल्ड कप शामिल है। वहां वे एकमात्र भारतीय अंपायर थे। अपने बॉउंड्री (4) के इशारे के लिए वे बड़े लोकप्रिय थे- क्रिकेटर, दर्शक और कमेंटेटर सभी इसका मजा लेते थे। कमेंटेटर, हेनरी ब्लोफेल्ड इसे ‘मिल्कशेक’ एक्शन कहते थे। इसी लोकप्रियता में अगर उन्हें ‘भारत का डिकी बर्ड’ कहा गया तो रिचर्ड हैडली ने तो कहा- ‘यूं लगता था कि वे खूबसूरत शॉट पर अपने ऑटोग्राफ दे रहे हों।’

न्यूट्रल अंपायर के तौर पर ड्यूटी का वह किस्सा नवंबर 1986 का है- तब वह और वीके रामास्वामी पाकिस्तान गए थे वेस्टइंडीज के विरुद्ध लाहौर टेस्ट में ड्यूटी के लिए। असल में तब कप्तान इमरान खान इस छवि को बदलना चाहते थे कि अपनी पिचों पर पाकिस्तान टीम, अपने ही अंपायरों की मदद से जीतती है- इसलिए आईसीसी में ऐसी कोई परंपरा न होते हुए भी उन्होंने न्यूट्रल अंपायर ड्यूटी के लिए बुला लिए थे। 1912 के बाद ये पहला मौका था जब न्यूट्रल अंपायरों ने किसी टेस्ट में अंपायरिंग की। इसके बाद ही- 1992 में टेस्ट क्रिकेट में एक न्यूट्रल अंपायर के साथ खेलना शुरू हुआ और बहुत जल्दी दोनों ही अंपायर न्यूट्रल देश से आने लगे और हर टेस्ट के लिए अंपायर नियुक्त करने का काम आईसीसी ने ले लिया।

उनका अंपायरिंग का सिद्धांत था- ये काफी हद तक ट्रैफिक कंट्रोल करने जैसा काम है और सबसे जरूरी ये है कि न ट्रैफिक रुके और न खेल। इसीलिए किसी भी बड़ी घटना के बावजूद वे उसे विवाद बनने से बचाने की कोशिश करते थे। ये सब अनुभव से सीखा। पहले तो क्रिकेट खेलते थे- महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के लिए, जहां वे नौकरी करते थे। उसके बाद अंपायरिंग शुरू की और एक के बाद पायदान ऊपर आते गए। 1961 में बॉम्बे (अब मुंबई) क्रिकेट एसोसिएशन के अंपायर की तलाश के एक एड के जवाब इम्तिहान दिया और उसे क्लियर किया। 1965- बीसीए सीनियर पैनल में आ गए, 1966- रणजी ट्रॉफी में ड्यूटी का इम्तिहान क्लियर किया (उस साल फेल होने वालों में मशहूर अंपायर स्वरुप किशन भी थे) और 1975 में ऑल इंडिया पैनल का इम्तिहान। ये सब इस बात का सबूत है कि क्रिकेट लॉ को थ्योरी में भी वे बहुत अच्छी तरह से जानते थे। ये खूबी मुंबई के एक और अंपायर यहूदा रूबेन से सीखी थे जिन्हें वे गुरु और मेंटर कहते थे।

एक दिन में अंपायर की ड्यूटी के 50 रूपये के दौर से उन्होंने अंपायरिंग को आधुनिक युग में भी देखा और थर्ड अंपायर का आना और डीआरएस युग तक पहुंचे। अब सिर्फ नो-बॉल देखते हैं अंपायर, अच्छा पैसा भी मिलता है और बेहतर सुविधाएं भी। तब भी, वे ऐसे अंपायर गिने गए जिनकी तारीफ़ भारत टूर पर आई टीमों ने भी की। ग्राउंड में घंटों खड़े रहने वाली ड्यूटी के लिए वे मीलों चलते थे। एकाग्रता बनी रहे, इसके लिए चाय पीते थे- टी-ब्रेक में ही दो पूरे कप।

उनका एक और ख़ास रिकॉर्ड ये है कि भारत में पहले दोनों डे-नाइट वनडे में वे ड्यूटी पर थे- 1984-85 में ऑस्ट्रेलिया और 1991-92 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध। कई मैच में नाराज खिलाड़ियों को झेला- ख़ास तौर पर 1987-88 में वानखेड़े और ईडन गार्डन्स में विव रिचर्ड्स के गुस्से को। तारीफ़ ये थी कि सब एहसास कर लते थे कि पीलू गलत नहीं।  इसीलिए कई साल बाद, जब 1997 में वे अपने बेनिफिट मैच की तैयारी कर रहे थे तो उन्हें पता चला कि विव रिचर्ड्स इन दिनों मुंबई में हैं। उनके बुलाने पर विव बिना कोई फीस लिए उनके बेनिफिट मैच में खेलने वलसाड गए थे।

इसी तरह शारजाह में (1990-91) पाकिस्तान-श्रीलंका मैच का किस्सा है। पाकिस्तान ने सस्ते में आउट होने के बाद तेज गेंदबाजी से मैच जीतने की कोशिश में गड़बड़ की तो पीलू और रामास्वामी ने 26 वाइड कॉल कीं। उस दौरान, इमरान खुश नहीं थे और गुस्से में कुछ कह दिया। पीलू ने भी जवाब दिया- मैं यह सब सुनने के लिए भारत से नहीं आया हूं। मैं आपके मैनेजर से बात करूंगा और ये कह कर पीलू ग्राउंड से बाहर जाने लगे। जावेद मियांदाद ने उन्हें जाने से रोका, इमरान ने माफी मांगी और मैच जारी रहा। वे अंपायरों की मदद के लिए आई नई टेक्नोलॉजी के समर्थक थे और इस बात को कभी महत्व नहीं दिया कि अंपायर का हर एक्शन जांच के दायरे में है।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

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