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इंग्लैंड के अलग-अलग ग्राउंड में प्रैक्टिस के बाद, टीम इंडिया ओवल पहुंच चुकी है। ये तो तय है कि भारत के ज्यादातर खिलाड़ियों को टी20 मोड से टेस्ट क्रिकेट में स्विच करना होगा क्योंकि पिछले कुछ महीनों से सब कुछ आईपीएल था। इंग्लैंड में क्रिकेट पंडित इस डब्ल्यूटीसी फाइनल को बल्लेबाजों का नहीं,  गेंद और पिच के बेहतर फायदा उठाने का मुकाबला मान रहे हैं।

सबसे पहले गेंद की बात। अब ये तय हो चुका है कि ड्यूक गेंद से खेलेंगे डब्ल्यूटीसी फाइनल। फाइनल में गेंद के इस्तेमाल को लेकर काफी बातें हो रही थीं और जब रिकी पोंटिंग ने कह दिया कि टेस्ट कूकाबुरा से हो सकता है, तो मामला और उलझ गया। अब आईसीसी ने, स्पष्ट कर दिया है कि ड्यूक से खेलेंगे- इंग्लैंड में टेस्ट है तो इंग्लैंड की गेंद।

आईसीसी ने इस हाई-ऑक्टेन समिट क्लैश के लिए प्लेइंग कंडीशंस भी जारी कर दी हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा रिजर्व डे को लेकर है। अगर टेस्ट में 5 वें दिन कोई स्पष्ट नतीजा नहीं मिलता तो रिजर्व डे में खेल होगा- कम से कम 330 मिनट या 83 ओवर (इनमें से जो भी बाद में पूरा हो) और साथ में आख़िरी घंटा।

इसमें भी आगे कई तरह की गणना है पर सबसे ख़ास ये कि अगर रिजर्व डे को बरसात ने धो दिया तो कौन जीतेगा? अगर डब्ल्यूटीसी फाइनल ड्रॉ, टाई या रद्द रहता है, तो दोनों टीम को आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का संयुक्त विजेता घोषित किया जाएगा।

अब पिच की बात करते हैं। आपकी जानकारी के लिए- इंग्लैंड में भी समर को दो हिस्सों में बांट कर, पिच के मिजाज का जायजा लेते हैं। जून के अंत तक समर का पहला हिस्सा और ये ठंडा होता है। भारत की टीम आम तौर पर यहां टेस्ट में समर के दूसरे हिस्से में अच्छा खेली है। समर के पहले हिस्से में आम तौर पर पिच और मौसम तेज गेंदबाजों की मदद करते हैं। गेंद स्विंग होगी और कुछ सीम मूवमेंट भी। यह खासियत टीम इंडिया के पेस अटैक के लिए अच्छी खबर है और इसीलिए मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज और बाकी सभी से बड़ी उम्मीद लगा रहे हैं।

नोट कीजिए- इनमें से कोई भी आउट-एंड-आउट स्विंग गेंदबाज नहीं है पर मौजूद फेक्टर मदद करेंगे बशर्ते वे उनका सही फायदा उठाएं। इसलिए सबसे जरूरी है कि ये अपनी गेंद की लेंथ पर कंट्रोल रखें- लेंथ गई तो जैसा कि पहले भी हो चुका है- विकेट लेने के बजाय ढेरों रन लुटा देंगे। भारतीय पेस अटैक ने कई बार अच्छा प्रदर्शन किया है तो इस बार उनसे उम्मीद क्यों न रखें हालांकि आईपीएल की थकान अभी पूरी तरह से उतरी नहीं होगी। ये बहरहाल एक ऐसा टेस्ट है जिसके लिए पूरा जोर लगाना होगा।

जब भी इंग्लैंड में टेस्ट खेलते हैं तो इंग्लिश पिचों पर खेलने के अनुभव का फेक्टर बड़ा ख़ास रहता है। मौजूदा पेस अटैक इस मामले में कमजोर है। कपिल देव और मनोज प्रभाकर जैसे गेंदबाज काउंटी चैंपियनशिप में खेलते थे। 1986 में, जब भारत ने 3 टेस्ट की सीरीज में इंग्लैंड को 2-0 से हराया तो दूसरे टेस्ट में चोटिल चेतन शर्मा की जगह, चुनी टीम के बाहर से मदन लाल को (वे सेंट्रल लेंकशायर लीग में एश्टन में खेल रहे थे) बुलाया और वे इतिहास बनाने में, बड़े मददगार साबित हुए।

जवागल श्रीनाथ, जहीर खान और ईशांत शर्मा भी इंग्लिश काउंटी चैंपियनशिप में खेले। इससे वे पिच, मौसम और अन्य फेक्टर जानते थे और उन्हें सही लेंथ और इसमें बदलाव की जरूरत का अंदाजा था। आईपीएल की वजह से बीसीसीआई को इस बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली।  
वैसे यही बात ऑस्ट्रेलिया पर भी लागू होती है। मिचेल स्टार्क और बाकी सभी इसीलिए जल्दी इंग्लैंड आए और सही लेंथ का काम शुरू हो गया। ऑस्ट्रेलिया को तो इस समर में एक पूरी एशेज सीरीज भी खेलनी है। ऐसा नहीं कि शमी, सिराज, उमेश यादव, शार्दुल ठाकुर और जयदेव उनादकट पहले इंग्लैंड में खेले नहीं, पर  किसी के पास, समर के पहले हॉफ में वहां गेंदबाजी का ख़ास अनुभव नहीं है।

अब भारत को टेस्ट में कमजोर समझने की गलती नहीं करता कोई भी। फिर भी इस रिकॉर्ड को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि ओवल में अब तक सिर्फ 2 टेस्ट जीते हैं- 1971 में अगस्त महीने के आख़िरी दिनों में और 2021 में सितम्बर के पहले हफ्ते में। 2021 के डब्ल्यूटीसी फाइनल को भी समर के पहले हॉफ में खेले थे।

तो कौन सी टीम डब्ल्यूटीसी फाइनल को जीतने वाली है और टेस्ट गदा उठाने जा रही है? 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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