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इंग्लैंड के टी20 वर्ल्ड कप जीत के बाद, उनकी बेहतर क्रिकेट की चर्चा अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि उन्हीं ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर अपने एशेज प्रतिद्वंदी से 3-0 से हारे वनडे सीरीज में और डाउन अंडर टूर निराशा में खत्म हुआ। अब सवाल ये है कि इतना बड़ा टूर्नामेंट खेलने के कुछ ही घंटों के अंदर एक अलग फॉर्मेट की सीरीज खेलने की जल्दबाजी क्या थी? कागज़ पर देखें तो मुकाबला गजब का था- एक तरफ नए टी20 वर्ल्ड चैंपियन और मुकाबला मेजबान ऑस्ट्रेलिया से पर जानकारों ने क्या, दर्शकों ने भी सीरीज को ‘जीरो’ कर दिया। एक ऐसे समय में जबकि वनडे क्रिकेट, सैंडविच बनी हुई है टेस्ट और टी20 के बीच और अपनी पहचान ढूंढ रही है- इस सीरीज ने फायदा नहीं, वनडे क्रिकेट को और बैक फुट पर कर दिया।

सीरीज शुरू होने से पहले ही मोईन अली ने अपना दायरा तोड़ कर सीरीज को ‘हॉरिबल’ कह दिया था- तब ही समझ जाना चाहिए था। बिलिंग्स ने कहा- जो तीनों फॉर्मेट खेलते हैं, उन्हें भी इसमें खेलना रास नहीं आया। ऑस्ट्रेलिया के खब्बू मिशेल स्टार्क का मानना है अब तीन फॉर्मेट का खिलाड़ी होना ‘असंभव’ है- क्रिकेट बोर्ड जहां भी एक ब्रेक देखते हैं, उसमें एक सीरीज फिट कर देते हैं।

शायद ही पहले कभी खिलाड़ी इस तरह से अपनी टीम की सीरीज के विरोध में यूं खुले आम बोले। टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में पाकिस्तान पर इंग्लैंड की जीत और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध उनकी वनडे सीरीज के पहले मैच के बीच महज चार दिन का अंतर था। इंग्लैंड के क्रिकेटर टी20 टाइटल जीत की मेहनत से थके हुए थे- बुरी तरह हारे। जेम्स विंस और सैम बिलिंग्स जैसे, वाइट बॉल सेट-अप के खिलाड़ी हैं, पर बिना तैयारी और परिस्थितियों से तालमेल बिठाने वाले कोई वार्म-अप मैच के बिना खेले और फेल हुए। ऑस्ट्रेलिया, टी20 वर्ल्ड कप के ग्रुप राउंड में ही बाहर हो गया था- इसलिए एक हफ्ते का फालतू आराम मिल गया और इसका फायदा उनकी क्रिकेट में नजर आ रहा था।

तो सवाल ये उठता है कि ये सब मालूम था तो इस सीरीज को खेले ही क्यों? सबसे बड़ी वजह थी- ब्रॉडकास्टर से कॉन्ट्रैक्ट। उसके बाद- 2020 की कोविड समर में वाइट बॉल टूर के लिए ऑस्ट्रेलिया को इंग्लैंड की तरफ से ‘शुक्रिया’। एडिलेड और सिडनी के पहले दो मैचों में तो फिर भी इतने दर्शक आ गए कि बेइज्जती नहीं हुई- विशाल एमसीजी में तो सिर्फ 10,406 की भीड़ जुटी। एक लाख दर्शक की क्षमता वाले इस स्टेडियम में इतने लोग तो नजर भी नहीं आ रहे थे- सच्चाई ये है कि इनमें से लगभग आधे ही ‘वास्तविक दर्शक’ थे। इस स्टेडियम में किसी वनडे इंटरनेशनल में सबसे कम दर्शक की मौजूदगी का रिकॉर्ड बना।

क्रिकेट देखने वालों की तरफ से इस बेरुखी की वजह- मेलबर्न में बेमौसम ठंड, क्रिकेट का ‘ओवर किल’। ऐसे में, मैच में इंग्लैंड की रनों से अपनी सबसे भारी वनडे हार पर तो किसी का ध्यान ही नहीं गया। टिकट खरीद कर क्रिकेट देखने वालों को मैच बेतुके नजर आ गए थे तो दोनों देश के क्रिकेट बोर्ड इस बात को क्यों समझ नहीं पाए?

अगले साल 50 ओवर का वर्ल्ड कप है और उसकी कामयाबी के लिए बेहतर माहौल बनाना होगा पर ऐसे मैच खेलने से बचना होगा जो सिर्फ ‘किसी को खुश करने के लिए’ खेल रहे हैं। उस पर मेलबर्न में बेमौसम ठंड का दिन और बारिश ने मैच को और खराब कर दिया। वह मंगलवार का दिन था और स्कूल/ऑफिस खुले थे और एमसीजी जाने वाले रास्ते पर सन्नाटा छाया हुआ था। यारा पार्क में, किसी शेफ़ील्ड शील्ड मैच में इससे ज्यादा भीड़ दिखाई दे जाती है। इंग्लैंड के टॉस जीतने और गेंदबाजी करने का फैसला करने के बाद, पहली गेंद देखने के लिए ग्राउंड में 5,000 से भी कम लोग और ऑस्ट्रेलिया के 355-5 रन के जवाब में मेहमान टीम 142 रन पर ऑल आउट और तब तो इससे भी कम लोग बचे थे।

इस सब के लिए कौन जिम्मेदार है? ये पूरी क्रिकेट की दुनिया के लिए चेतावनी है- ऑस्ट्रेलिया में ऐसा हो सकता है तो भारत में भी हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया में वनडे मैच जनवरी की छुट्टियों की गर्मी में खेले जाते थे- बिग बैश ने इस सिस्टम को बिगाड़ दिया। तब एडम गिलक्रिस्ट और रिकी पोंटिंग को देखने लोग उमड़ पड़ते थे। जब सिर्फ ब्रॉडकास्टर के लिए क्रिकेट खेलते हैं तो यही होता है- सर्द मेलबर्न में, क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित स्टेडियम में सन्नाटा। जो 10,406 दर्शक गिनती में आए- वे भी इस मैच को याद नहीं रखना चाहेंगे।

संयोग देखिए कि ये 3 मैच की डेटॉल वनडे सीरीज़ थी- डेटॉल ही काम आएगी इस सीरीज के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए। घरेलू लीग की भरमार ने इंटरनेशनल क्रिकेट पर मुश्किल के बादल ला दिए हैं। सवाल ये है कि इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए कितनी जगह बची है? इंडियन प्रीमियर लीग के शुरू होने के 14 सालों में और फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट के लगभग 5 या इतने साल में क्रिकेट एक लगभग पूरे साल चलने वाला व्यापार मॉडल है। इसमें इंटरनेशनल क्रिकेट फिट की जाती है तो ऐसे में बेतुके मैच क्यों खेलें?

इस तरह का शेड्यूल तो इंटरनेशनल क्रिकेट के मुकाबले, फ्रैंचाइज़ क्रिकेट को और मदद करेगा। ब्रॉडकास्टर सिर्फ अपना फायदा चाहते हैं- उन्हें तो  खाली स्टेडियम से भी परहेज नहीं।  इसका असर क्रिकेट पर आता है- खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर आता है। इस वनडे सीरीज में इंग्लैंड के किसी गेंदबाज ने 5 विकेट नहीं लिए; सिर्फ दाविद मलान ने 100 रन पूरे किए और कोई खिलाड़ी ऐसा नहीं जिसके करियर को इस सीरीज से फायदा मिलेगा।  

हम फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट के ओडीआई को खत्म करने के नतीजे देख रहे हैं और क्रिकेट को चलाने वाले इसे महसूस करने में नाकाम रहे हैं या सिर्फ सबूतों को अनदेखा कर रहे हैं। जैसे खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट और टी-20 को प्राथमिकता देते हैं, वैसे ही दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में प्रशंसक भी। ब्रॉडकास्टर तब भी खुश हैं क्योंकि एक दिन में 100 ओवरों से विज्ञापन का पैसा आता है। ये सिलसिला ज्यादा नहीं चलेगा। देश धीरे-धीरे ,अगले कुछ सालों में स्वाभाविक रूप से वनडे से दूर हो जाएंगे। फ्रेंचाइजी लीग बढ़ रही हैं- याद रखें तीन तो 2023 में ही लॉन्च हो रही हैं।

क्या क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और उसके ब्रॉड्स्कास्टर को वाकई इन मैचों की जरूरत थी? जो मैच देखने स्टेडियम आए- एक ओडीआई के लिए टिकट के लिए 10 हजार रुपये तक खर्चे और बदले में देखे इंग्लैंड के रिजर्व खिलाड़ी- ऐसा ‘धोखा’ कब तक चलेगा?
चरनपाल सिंह सोबती

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