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इसे एक संयोग ही कहेंगे इंग्लैंड में टीम इंडिया के लिए सिर्फ मिडिल आर्डर की बैटिंग ही मुश्किल नहीं बनी हुई है- बैटिंग में इनसे अगले नंबर पर आने वाले रिषभ पंत ने भी परेशान करने में कोई कमी नहीं रखी है। सीरीज के पहले 3 टेस्ट में 5 पारी में 17.40 औसत से 87 रन। ये रिकॉर्ड उस विकेटकीपर- बल्लेबाज़ का है जिसे टीम ‘शुद्ध बल्लेबाज़’ ज्यादा गिनती है और जिसे खिलाने के लिए बेहतर विकेटकीपिंग करने वाले रिधिमन सहा का टेस्ट करियर लगभग ‘ख़त्म’ कर दिया। इंग्लैंड के विकेटकीपर जोस बटलर ने 5 पारी में 72 रन बनाए पर उन्हें जो रुट की बैटिंग ने छिपा लिया- पंत के लिए भारत का मिडिल आर्डर ऐसा नहीं कर पाया। रिषभ पंत उन टूरिंग स्टार्स में शामिल हैं, जो इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज में रन के लिए जूझ रहे हैं।

पंत ने इंग्लैंड में तीन टेस्ट में बैट के साथ जो किया- उसके लिए क्रिकेट विशेषज्ञों और प्रशंसकों दोनों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। कैसे 5 पारी में सिर्फ 87 रन को सही ठहरा दें? इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया और उसके बाद भारत में कुछ मैच जिताने वाले प्रदर्शन के बाद इंग्लैंड में सीरीज़ में खेले- इसीलिए टीम उनके रन न बनाने की बड़ी कीमत चुका रही है। भारतीय क्रिकेटर और कमेंटेटर दिनेश कार्तिक का मानना है कि पंत को मत छेड़ो- समय दो। सीरीज के आखिरी दो टेस्ट में उन्हें अपना नज़रिया और तकनीक बदलने की कोई जरूरत नहीं।

संयोग देखिए कि ये चर्चा उस समय हो रही है जब सीरीज का अगला यानि कि चौथा टेस्ट ओवल में है- वही ओवल जहां पंत ने 2018 में अपनी पहली टेस्ट सेंचुरी बनाई थी। भारत 464 रन के कड़े लक्ष्य के लिए खेल रहा था और पंत ने 146 गेंद में 114 रन बनाए। एक समय तो ऐसा लगा था कि भारत ये लक्ष्य हासिल कर लेगा। अब उन्हें ओवल की उसी पारी से प्रेरणा लेने की जरूरत है- अपने लिए, टीम इंडिया के लिए। अभी भी मेजबान टीम पंत को खतरा मानती है- ये है उनकी बैटिंग स्टाइल का असर। हेडिंग्ले टेस्ट में पंत से नाज़ुक मौके पर बड़े स्कोर की बड़ी उम्मीद लगाई थी जो गलत साबित हुई- सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि स्विंग ले रही गेंद पर उनके बैटिंग के टेम्परामेंट पर सवालिया निशान लग गया है।

तब भी रिषभ के लिए फायदे की बात ये है कि इस युवा खिलाड़ी को कप्तान का पूरा समर्थन मिला हुआ है- हेडिंग्ले टेस्ट के विराट कोहली ने कहा कि टीम मैनेजमेंट उन्हें वह पूरा ‘स्पेस’ देगा जो इंग्लैंड के विरुद्ध बाकी के टेस्ट में चाहिए।नॉटिंघम में 25, लॉर्ड्स में 37 और 22 तथा लीड्स में 2और 1 रन बनाए- इन स्कोर के बाद भी अगर किसी खिलाड़ी को कप्तान का समर्थन मिले तो और क्या चाहिए? पंत सिर्फ ओवल को याद रखें- वहीं से भारतीय टीम की स्कीम में उनकी जगह पक्की हुई थी। टीम सिर्फ 6 विशेषज्ञ बल्लेबाज के साथ खेल रही है और नंबर 6 बल्लेबाज के लिए ये स्कोर कतई सही नहीं। पंत को साबित करना है कि इंग्लैंड की सीमिंग परिस्थितियों में भी रन बना सकते हैं।

इस तरह जो नज़र आ रहा है उसमें पॉलिसी तो यही है कि पंत ही टीम इंडिया का भविष्य हैं । ऐसे में सिर्फ उनका ही नहीं, सहा का करियर भी दांव पर है। पता ही नहीं लगा कि कब, टेस्ट क्रिकेट का विशेषज्ञ और बेहतर विकेटकीपर होने के बावजूद सहा मात खा गए ग्लैमर के साथ बैटिंग करने वाले पंत से- इसमें कुछ भूमिका उनकी गलत समय पर ‘ख़राब फिटनेस’ की भी रही। अगर टीम मैनेजमेंट यह पॉलिसी बना ही चुकी है कि अब पंत ही टीम का भविष्य है तो सहा को दूसरे विकेटकीपर के तौर पर इंग्लैंड ले जाने की भी क्या जरूरत थी? ये ऐसा टूर नहीं है कि पंत को इंटरनेशनल मैचों के लिए फिट रखने के लिए बीच के मैचों में सहा को विकेटकीपर बना दें। 38 टेस्ट में सहा का रिकॉर्ड 1251 रन है 3 सेंचुरी के साथ और साथ में 92 कैच एवं 11 स्टंप। इस सीरीज में जब जब टीम बैटिंग में संकट में थी तो ये मानने वालों की कमी नहीं थी कि सहा बेहतर विकल्प हैं इन हालात में। ऐसा विकेटकीपर टीम के साथ सिर्फ टूरिस्ट बन कर घूम रहा है। अंडरस्टडी विकेटकीपर के तौर पर उनकी जगह किसी युवा विकेटकीपर को मौका देते तो ये आगे के लिए ज्यादा फायदेमंद होता। अगर अब टीम में सहा के लिए जगह नहीं तो संभवतः उन्हें अपने टेस्ट करियर के बारे में सोच लेना चाहिए।

पंत की अपनी स्टाइल है- बस इंतज़ार कीजिए कि वे कब क्लिक करें? मुश्किल ये है कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया (जहां रन बनाए) के हालात एक जैसे नहीं।ऑस्ट्रेलिया में गेंद ज्यादा सीम या स्विंग नहीं करती- इंग्लैंड में इससे विकेट जा रहे हैं। ओली रॉबिन्सन ने उन्हें 5 में से 4 आउटिंग में आउट किया है। पंत ने 24 टेस्ट, 18 वनडे और 33 टी20 इंटरनेशनल खेले हैं- इतने अनुभव के बाद उन्हें अपने विकेट की कीमत का अहसास तो हो ही गया होगा। सिर्फ टेम्परामेंट पर कंट्रोल चाहिए- हर बार जोश में रन नहीं बनेंगे। अंधाधुंध स्ट्रोक-प्ले हर पारी में काम नहीं आएगा। ब्रिस्बेन में 33 गेंद में 11 रन, फिर 72 में 34 और कुल 138 गेंद में 89 रन- एक खास दौर वह था जब 20 बिना स्कोर वाली गेंद को ब्लॉक कर दिया था। सिडनी में जहां 118 गेंद में 97 रन बनाए- एक समय 34 में सिर्फ पांच रन बना सके थे। संयम और अटैक- दोनों को याद रखना है। एक ओवल से दूसरे ओवल तक…।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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