बांग्लादेश के कप्तान शाकिब अल हसन ने टीम इंडिया के विरुद्ध मैच से ठीक पहले जो कहा वह गलत नहीं था- उनकी टीम वर्ल्ड कप जीतने तो आई ही नहीं, इसलिए अगर भारत को हरा सके तो इससे बड़ी बात और कोई नहीं होगी। ये स्टेटमेंट नीदरलैंड पर भी लागू होती है। वे भी टी20 वर्ल्ड कप में अपसेट के लिए आए, उस पर सुपर 12 के लिए क्वालीफाई किया और अपनी क्रिकेट की अलग पहचान बनाई- कम से कम ऐसी कि इस टीम पर ध्यान दिया जाए।
जिस अपसेट ने इस वर्ल्ड कप पर सबसे ज्यादा असर डाला वह था- दक्षिण अफ्रीका पर नीदरलैंड की जीत। एडिलेड ओवल में स्कॉट एडवर्ड्स की टीम बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग तीनों में उस मैच में अपने से कहीं मशहूर टीम से बेहतर साबित हुई और प्रोटियाज की सेमीफाइनल उम्मीद को ऐसा झटका दिया कि वे बाहर ही हुए। नामीबिया ने श्रीलंका, नीदरलैंड ने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे ने पाकिस्तान और आयरलैंड ने इंग्लैंड को हराया- इन मैचों ने इस टी20 वर्ल्ड कप को रोमांचक बनाया। नीदरलैंड का दक्षिण अफ्रीका को हराना इस वर्ल्ड कप की अंडरडॉग कहानी है और इस एक जीत ने न सिर्फ भारत को जिम्बाब्वे के विरुद्ध अपने आखिरी मैच से पहले क्वालीफाई करा दिया- बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों की आख़िरी 4 की उम्मीदों की एकदम बढ़ा दिया।
इतना ही नहीं, इस टी20 वर्ल्ड कप की स्टेंडिंग (सुपर 12 के ग्रुप बी में नंबर 4- बांग्लादेश और जिम्बाब्वे से भी ऊपर) की बदौलत नीदरलैंड ने अगले वर्ल्ड कप (2024) के लिए सीधे क्वालीफाई कर लिया यानि कि अगली बार क्वालीफायर खेलने की जरूरत नहीं- ये इस टूर्नामेंट से उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही।
2024 का टूर्नामेंट, वेस्टइंडीज और अमेरिका मिलकर होस्ट करेंगे और उसमें 20 टीम खेलेंगी लेकिन एक रीजनल क्वालीफाइंग राउंड भी। नीदरलैंड, आयरलैंड और स्कॉटलैंड जैसी टीम आपस में मुकाबला करती हैं और एक की उम्मीद पर पानी पड़ता है क्योंकि दो देश ही यूरोपीय रीजन से क्वालीफाई करते हैं। इस तरह नीदरलैंड ने वास्तव में आयरलैंड और स्कॉटलैंड दोनों के अगले वर्ल्ड कप में खेलने के आसार बढ़ा दिए। नीदरलैंड क्रिकेट के लिए ये उपलब्धि आत्मविश्वास बढ़ाने वाली है और वहां क्रिकेट को इसका फायदा जरूर मिलना चाहिए।
जिन सीमाओं के अंदर नीदरलैंड टीम खेलती है- अगर उन्हें बारीकी से देखें तो वे जैसा खेल गए, वह किसी चमत्कार से कम नहीं। ये वास्तव में उन शौकिया खिलाड़ियों की टीम है जो अपनी नौकरी छोड़कर सिर्फ सिर्फ क्रिकेट खेलनेके लिए इकट्ठे होते हैं। खिलाड़ी ऐसे जिनमें से ज्यादातर नीदरलैंड के नहीं, पूरे प्रोफेशनल नहीं और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे काम भी करते हैं- टीम इंडिया के क्रिकेटर जिनके बारे में सोचेंगे भी नहीं। नोट कीजिए :
- उनकी दक्षिण अफ्रीका पर जीत के दो हीरो कॉलिन एकरमैन और ब्रैंडन ग्लोवर : दोनों दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए, वहीं पढ़े और क्रिकेट सीखा। ये बात उनकी उपलब्धि को और ख़ास बना देती है।
- स्टीफ़न मायबर्ग और एन तेजा : टीम के ये दो खिलाड़ी एक कंसल्टेंसी कंपनी में काम करते हैं और ‘विदाऊट सेलेरी’ लीव पर वर्ल्ड कप में खेलने आए। टूर्नामेंट खत्म और ऑफिस ड्यूटी शुरू।
- ज्यादातर खिलाड़ी ऐसे जो अपनी ट्रेनिंग का खर्चा खुद उठाते हैं। उन्हें सिर्फ खेलने की पेमेंट मिलती है- टूर पर या जब हॉलैंड में मैच खेलें। ऐसे खिलाड़ी कैसी ट्रेनिंग ले रहे होंगे- इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
- कुछ खिलाड़ी एकेडमी में कोच/ट्रेनर हैं- विदेशों में लीग क्रिकेट खेलने के मौके ढूंढते रहते हैं।
- जो खिलाड़ी टीम में जगह के दावे के साथ ट्रेनिंग पर आए- जब चुने नहीं गए तो फौरन काम पर लौटना पड़ा।
- कई सीनियर खिलाड़ियों ने बेहतर सेलेरी पैकेज वाली नौकरी मिलते ही खेलना छोड़ दिया- जो भरोसा नौकरी देती है, क्रिकेट नहीं। यही वजह है ये एक युवा टीम है- वहां खिलाड़ी बड़ी कम उम्र में रिटायर हो जाते हैं। सीनियर के बिना, टीम अनुभव की कमी महसूस करती है। टीम में 28 साल से बड़ी उम्र के खिलाड़ी नहीं और आम तौर पर वहां 23-24 साल की उम्र तक ही खेलते हैं और उसके बाद फुल टाइम नौकरी ले लेते हैं।
- सीमार पॉल मीकरेन : इंग्लिश काउंटी टीम समरसेट का कॉन्ट्रैक्ट था उनके पास- उसके चलते कोई फुल टाइम नौकरी नहीं ली। कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म तो अब क्या करें- फ़ूड डिलीवरी में आ गए और उबेर ईट्स के लिए काम किया। जब ग्लूस्टरशायर ने दो साल के लिए साइन किया तो पार्ट टाइम सेल्समैन का काम भी कर रहे थे।
ऐसे अलग-अलग खिलाड़ियों को इकट्ठा करना, उनके अंदर एक टीम के तौर पर खेलने का जज्बा पैदा करना कोई आसान चुनौती नहीं- ऐसी टीम का ट्रेनिंग कैंप सिर्फ क्रिकेट खेलने की ट्रेनिंग नहीं होता। मैनेजर कोशिश करते हैं कि सभी साथ-साथ एक कमरे में बैठें, साथ में बीयर पिएं। और तो और, टीम मैनेजर को तो कप के बीच में ही नीदरलैंड लौटना पड़ा क्योंकि जिस कंपनी में नौकरी करते हैं उसने जरूरत पड़ने पर वापस बुला लिया। किसी ने ये चिंता नहीं की कि वे आखिरकार नीदरलैंड टीम के साथ ड्यूटी पर हैं। टीम के लिए एक नए मैनेजर को बुलाना पड़ा।
नीदरलैंड ने 2009 में इंग्लैंड को हराया था और तब भी हिस्ट्री दर्ज की थी। इस बार दक्षिण अफ्रीका की बारी थी। 5 मैच में 2 जीत (दूसरी जीत- विरुद्ध जिम्बाब्वे)- वे टूर्नामेंट की एक खास टीम थे।
- चरनपाल सिंह सोबती