टी20 वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले, इंटरनेशनल क्रिकेट में एक ऐसी घटना हुई- जिसकी सही तरह से चर्चा नहीं हुई। पर्थ के ऑप्टस स्टेडियम में टी20 इंटरनेशनल था ये इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच। मैच में 400 से ज्यादा रन बने- स्पष्ट है कि मजेदार मैच था पर इतिहास में ये याद रहेगा एक बड़े विवाद के लिए। इंग्लैंड ने 8 रन से जीत हासिल की- सैम कुरेन ने आख़िरी ओवर में 16 रन का बचाव किया।
ऑस्ट्रेलिया के लिए 209 रन का लक्ष्य था। 17 वां ओवर- तब आखिरी 22 गेंद पर 39 रन चाहिए थे। मैथ्यू वेड ने मार्क वुड की एक शॉर्ट गेंद को टॉप-एज किया- गेंद उनके हेलमेट पर लगी और हवा में उछल गई। वेड को पता नहीं चला कि गेंद कहां गई पर वे सिंगल लेना चाहते थे और क्रीज से बाहर निकल गए। तभी नीचे आती गेंद दिखाई दे गई- एक तरफ वुड कैच के लिए आगे बढ़े तो दूसरी तरफ वेड क्रीज में वापस लौटने लगे। उसी मुकाम पर, वेड ने, अपने बाएं हाथ को बाहर निकाल कर गेंदबाज को कैच पूरा करने से रोक दिया।
वेड बच गए पर ये साफ़ ‘ऑब्स्ट्रक्शन ऑफ़ द फील्ड’ का मामला था और वेड इस लॉ में आउट थे। तब भी, इंग्लैंड के कप्तान जोस बटलर ने अपील नहीं की और वेड बच गए। जोस बटलर ने ये नहीं कहा कि उनकी नजर में वेड आउट नहीं थे और न ही उन्होंने ‘स्पोर्ट्समैनशिप’ का मैडल लेने की कोशिश की। वे बोले- ‘हमें यहां ऑस्ट्रेलिया में अभी कई दिन और रहना है- मैं टूर के शुरू में कोई विवाद नहीं चाहता था।’ स्पष्ट है वे ‘बवाल’ और ऑस्ट्रेलिया मीडिया के निशाने से बचना चाहते थे।
ऑस्ट्रेलिया के हरफनमौला खिलाड़ी मार्कस स्टोइनिस ने वेड की हरकत का क्या गजब बचाव किया- ‘जब गेंद सिर पर हिट करती है और आप इधर-उधर भाग रहे हैं तो बहुत कुछ हो जाता है। आप नहीं जानते कि गेंद कहां है?’ इसमें फील्डिंग टीम का क्या कसूर?
अब इस सारे तमाशे को लॉ के नजरिए से देखिए। वेड साफ़ आउट थे पर चूं कि बटलर ने अपील नहीं की- अंपायर ने मैथ्यू वेड को आउट नहीं दिया। कैसा मजाक है ये- साफ़ आउट पर अंपायर ने आउट नहीं दिया। क्या ऐसे मामले में अंपायर के पास, बिना अपील, आउट का अधिकार नहीं होना चाहिए?
18वीं शताब्दी से क्रिकेट की जिस एक पहचान में कोई बदलाव नहीं आया है वह ये कि ये एक ‘कॉन्टैक्ट-लैस’ खेल है यानि कि खिलाड़ी एक दूसरे से चिपकते-टकराते नहीं। ऑस्ट्रेलिया के मैथ्यू वेड ने पर्थ में जानबूझकर इंग्लैंड के मार्क वुड को कैच लपकने से, अपने बाजू को फैलाकर रोका- यानि कि कॉन्टैक्ट था। बड़ा साफ़ मामला था ये ‘ऑब्स्ट्रक्शन’ का।
क्रिकेट के लॉ में जो भी बदलाव अब तक होते आए हैं- उनमें से ज्यादातर किसी न किसी घटना से प्रेरित रहे। कुछ ऐसा हुआ जिससे लॉ में बदलाव जरूरी हो गया तो नया लॉ बना।ऑब्स्ट्रक्शन पर मौजूद लॉ कहता है कि यदि गेंदबाजी करने वाली टीम अपील करे- तभी अंपायर ‘बल्लेबाज’ को आउट दे सकता है। इस लॉ को बदलना होगा ताकि अंपायर, बिना अपील, जो हुआ उस पर अपना फैसला दें- जैसा कि इस मामले में होना चाहिए था। वे वेड को आउट देते- अपील हुई या नहीं हुई।
ऐसे तो हर कोई वही करना शुरू कर देगा जो वेड ने किया? अगर बच्चे क्रिकेट मैच में क्रीज पर लौटने वाले बल्लेबाज को रोकने के लिए अपना हाथ बाहर निकाल दें तो कैसी क्रिकेट सीखेंगे वे? क्रिकेट, एक महत्वपूर्ण लाइन को पार कर एक कॉन्टैक्ट खेल बन जाएगा। आप इस लॉ का इतिहास पढ़ें तो हैरान रह जाएंगे। 18 वीं शताब्दी में, एक समय ऐसा ही हुआ करता था। इंग्लैंड के कुछ हिस्सों में (1787 में पहले लॉ कोड से पहले) जब क्रिकेट को ‘स्थानीय नियम’ लागू कर, खेलते थे तो बल्लेबाज को अधिकार था कि कैच के लिए कोशिश कर रहे फील्डर को रास्ते से हटा दे। ये गलत था और 1787 में ही पहले लॉ कोड में इसे रोक दिया।
ऑस्ट्रेलिया में खेल भावना को किस तरह से देखते हैं इसका अंदाजा आपको मार्कस स्टोइनिस की इस बारे में स्टेटमेंट पढ़कर हो गया होगा। इतना ही नहीं- आम तौर पर अखबारों में जानकारों और क्रिकेट के बारे में पढ़ने वालों ने वेड की हरकत का बचाव किया। ऐसे ही धक्का-मुक्की करनी है तब तो ये खेल ‘रग्बी’ बन जाएगा। इसलिए इंग्लैंड के कप्तान की अपील की कोई जरूरत नहीं थी और अंपायरों को इस बारे में फैसला लेने का अधिकार होना चाहिए। ये सिर्फ एक केस नहीं है- गलत परंपरा की शुरुआत है। पर्थ में, उस मैच में जो हुआ वह क्रिकेट की पूरी दुनिया के लिए एक खराब मिसाल कायम करता है।
कहीं न कहीं कमी है तभी तो टेस्ट क्रिकेट में ऑब्स्ट्रक्शन से आउट की सिर्फ एक ही मिसाल है- बल्लेबाज और कोई नहीं, सर लियोनार्ड हटन थे और आउट होने के बाद भी उन्हें इस बात का दुःख था कि ऐसा किया। उस किस्से को देखें तो सच ये है कि हटन ने न तो किसी को हिट किया और न ही अपने शरीर की मदद से किसी को ‘रोका’ था।
- चरनपाल सिंह सोबती