मुंबई ने 41 बार रणजी ट्रॉफी को जीता है- ये रिकॉर्ड ही रणजी ट्रॉफी में मुंबई के प्रभुत्व की कहानी है। एक देश में इससे ज्यादा फर्स्ट क्लास क्रिकेट चैंपियनशिप टाइटल सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स ने जीते हैं- 47 बार शेफील्ड शील्ड जीते। मुंबई इस रिकॉर्ड के और करीब आने के लिए तैयार है- फाइनल खेल रहे हैं और ये मुंबई के लिए 48वां रणजी ट्रॉफी फाइनल है। अब हर नजर 10 मार्च से मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में शुरू होने वाले फाइनल पर है- विदर्भ के विरुद्ध।
ये सिर्फ दूसरा मौका है जब रणजी ट्रॉफी फाइनल में एक ही स्टेट से दो टीम टाइटल के लिए- मुकाबले पर हैं। 1970/71 में बम्बई/मुंबई और महाराष्ट्र के बीच मुकाबला हुआ था और अब 2023/24 में बम्बई/मुंबई और विदर्भ के बीच मुकाबला है। पिछले मौके पर बॉम्बे ने फाइनल में महाराष्ट्र को हराया था। क्या 53 साल बाद, इतिहास खुद को दोहराएगा? फाइनल शुरू होने से पहले दोनों टीमों के कप्तान और सभी मैच ऑफिशियल को वानखेड़े स्टेडियम के 50 साल पूरे होने के अवसर पर एक मोमेंटो भेंट किया जाएगा। दर्शकों के लिए एंट्री फ्री।
मुंबई ने सेमीफाइनल में तमिलनाडु को हराया सिर्फ 3 दिन में और संयोग ये इन दोनों टीम के बीच पिछले रणजी मैचों में 1972-73 के फाइनल में, अजीत वाडेकर की टीम ने एस वेंकटराघवन की मेजबान टीम को टाइटल के लिए और 22 साल बाद, सचिन तेंदुलकर की टीम ने भी वीबी चंद्रशेखर की टीम को 3 दिन में हरा दिया था। यही इस बार अजिंक्य रहाणे की टीम ने साई किशोर की टीम के साथ किया और एक पारी और 70 रन से जीत गए।
भले ही अजिंक्य रहाणे खुद बैट के साथ इस सीजन की सबसे बड़ी निराशा रहे हैं- पर उनके अनुभव ने ज्यादातर मैचों में, स्टार क्रिकेटरों के बिना खेली टीम के लिए गजब के टॉनिक और प्रेरणा का काम किया। आंध्र के रिकी भुई सीजन में 8 मैच की 13 पारी में 902 रन के साथ, इस सीजन में, रन चार्ट में टॉप पर हैं- इसकी तुलना में रहाणे ने 7 मैच की 11 पारी में 134 रन बनाए। इसी से ये भी अंदाजा हो जाता है कि क्यों टीम इंडिया में कई नियमित खिलाड़ियों न खेलने के बावजूद, सेलेक्टर्स ने एक बार भी रहाणे के नाम की चर्चा नहीं की। मुंबई के कुछ ख़ास रिकॉर्ड :
- 1949 से 1977 के बीच के साल मुंबई का रणजी ट्रॉफी में, गोल्डन दौर कहते हैं- 23 रणजी ट्रॉफी फाइनल और सभी में जीत। इनमें 11 अलग-अलग टीम को हराया- 1 बार सेना, बड़ौदा, महाराष्ट्र , हैदराबाद, बिहार एवं दिल्ली को, 2 बार होल्कर, मद्रास/तमिलनाडु और मैसूर/कर्नाटक को, 4 बार बंगाल और 7 बार राजस्थान। ये सिलसिला दिल्ली से हार के साथ खत्म हुआ।
- अब 48वीं बार फाइनल में- सबसे ज्यादा फाइनल खेलने के रिकॉर्ड में दूसरे नंबर पर दिल्ली और बंगाल (15)
- पिछले 47 फ़ाइनल में 41 बार चैंपियन।
रणजी ट्रॉफी फाइनल के आयोजन का मौका मुंबई को मिला क्योंकि लीग राउंड में विदर्भ की तुलना में उनके पॉइंट ज्यादा थे। इसलिए अपने घरेलू ग्राउंड पर खेलने का फायदा मिलेगा और फाइनल के लिए मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने वानखेड़े स्टेडियम को चुना हालांकि वहां आईपीएल का इंतजाम चल रहा है। इस सीजन में, इससे पहले मुंबई ने जो 5 रणजी मैच मुंबई में खेले उनमें से 4 (क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल सहित) बांद्रा-कुर्ला में शरद पवार क्रिकेट एकेडमी (एसपीसीए) ग्राउंड में खेले जबकि जनवरी में उत्तर प्रदेश के विरुद्ध जो मैच वानखेड़े में खेले थे उसमें इस सीजन की अपनी, अब तक की एकमात्र हार मिली थी। खैर रणजी फाइनल के महत्व को देखते हुए बीसीसीआई की उन्हें सलाह थी कि फाइनल वानखेड़े में खेलें। इससे रणजी की तुलना में आईपीएल को वरीयता देने के आरोप से भी बच जाएंगे।
वैसे तो कई फैक्टर इस सीजन में मुंबई के फाइनल तक के सफर के लिए जिम्मेदार हैं पर सबसे ख़ास है निचले आर्डर के बल्लेबाजों का प्रदर्शन। एक पारी में नंबर 10 और 11 के शतक तथा 10वें विकेट के लिए 100 रन की पार्टनरशिप जैसे रिकॉर्ड बने। तनुश कोटियन और तुषार देशपांडे रिकॉर्ड बुक में आ गए। यहां तक कि जो शार्दुल ठाकुर, टीम इंडिया में नंबर 6-8 हैं- मुंबई के लिए नंबर 9 पर बल्लेबाजी करते हैं और तब भी सेमी फाइनल में 105 गेंद में 109 रन बनाए और दोनों पारियों में 64 रन देकर 4 विकेट भी लिए- इस तरह जीत में ख़ास भूमिका के लिए प्लेयर ऑफ द मैच थे।
इससे, दो सीज़न पहले अपना आख़िरी रणजी ट्रॉफी फाइनल खेले थे और तब मध्य प्रदेश से हार गए थे। मुंबई ने आखिरी बार 2015/16 में रणजी ट्रॉफी जीती थी और इस बार हाल के सालों के ख़राब रिकॉर्ड को सुधारने का इरादा है। घरेलू क्रिकेट में खेलने के मामले में ‘खडूस’ मुंबईकर आसानी से हार नहीं मानते। ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब कहते थे टीम इंडिया में जगह बनाने से भी ज्यादा मुश्किल है मुंबई की टीम में जगह बनाना। वैसा दौर तो नहीं रहा पर इसके लिए मुंबई को अन्य दूसरी टीम के बेहतर हुए क्रिकेट स्तर से भी चुनौती मिली। इस बार रिकॉर्ड और स्टेडियम भी साथ तो क्या इतिहास बनेगा?
- चरनपाल सिंह सोबती