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क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 की चर्चा का एक आयाम ये भी है कि वर्ल्ड कप पर उनकी भी नजर है जो इसके रोमांच और असर को ग्राउंड से बाहर भी देख रहे हैं। वर्ल्ड कप की बदौलत भारतीय इकॉनमी पर क्या असर आने वाला है? आप ये जानकार हैरान रह जाएंगे कि अनुमान है कि ये वर्ल्ड कप 22,000 करोड़ रुपये लाएगा इकॉनमी में। 12 साल बाद आईसीसी वर्ल्ड कप, भारत में खेल रहे हैं और इस बार अकेले मेजबान- इसलिए वर्ल्ड कप 2023 की सफलता और इसके साथ जुड़ी हर बात का असर सीधे भारत पर आएगा और अभी से भारतीय इकॉनमी को एक बड़े फायदे की चर्चा शुरू हो गई है।

भारत में क्रिकेट की सबसे बड़ी खूबी ये कि इसके किसी भी आयोजन पर सरकार के हिस्से में कोई खर्चा नहीं आता- वर्ल्ड कप पूरी तरह से बीसीसीआई और आईसीसी का है और सब खर्चा-मुनाफा इनका। यहां तक कि मैच के पुलिस इंतजाम का खर्चा भी मेजबान राज्य क्रिकेट एसोसिएशन देती हैं। क्रिकेट ने, एशियाई खेलों में भारत के एकाउंट में दो गोल्ड का योगदान दिया पर टीम की तैयारी का कोई खर्चा न स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने दिया और न ही किसी खेल स्कीम से कोई ग्रांट मिली। यही बात इस वर्ल्ड कप पर लागू है पर ये सीधे देश की इकॉनमी में हिस्सा देने वाला है।

वर्ल्ड कप 5 अक्टूबर से 19 नवंबर तक है और इस दौरान, मैच देखने, अलग-अलग शहर में देश-विदेश से बड़ी गिनती में क्रिकेट प्रेमियों के आने की उम्मीद है। अहमदाबाद में पाकिस्तान के विरुद्ध मैच से क्या हुआ- सब जानते हैं। 10 शहर में मैच- सीधे ट्रेवल और होटल (तथा इनसे जुड़े व्यापार) फायदे में। संयोग ये कि भले ही अभी भी मौसम गर्म है पर ये वर्ल्ड कप सितंबर से शुरू हो चुके तीन महीने के त्योहारी सीजन में खेल रहे हैं और इन दिनों में तो वैसे भी रिटेल बाजार में हलचल तेज हो जाती है। इस बार वर्ल्ड कप इसे और बढ़ा रहा है।

ब्रॉडकास्ट की बात करें तो टेलीविजन और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म सहित टूर्नामेंट के लिए कुल भारतीय दर्शकों की गिनती 2019 वर्ल्ड कप के 552 मिलियन से कहीं ज्यादा रहेगी। टीवी अधिकार और स्पांसरशिप से 105-120 बिलियन रुपये के लेन-देन का अनुमान है। भले ही स्ट्रीमिंग ‘मुफ्त’ है- डेटा तो नहीं। वर्ल्ड कप के दौरान एड पर जो प्रति सेकंड 3,600 डॉलर खर्च किए जा रहे हैं- उन्हें कैसे नजरअंदाज कर दें? टूर्नामेंट टिकट पर टेक्स, होटल, रेस्तरां और खाने-पीने के सामान पर जीएसटी में बढ़ोतरी- इस सब से सीधे भारत सरकार के खजाने को फायदा। टूरिज्म की बात करें तो- देश -विदेश से क्रिकेट प्रेमी आ रहे हैं। अभी तो बीसीसीआई ने शेड्यूल बनाने और मैचों की टिकट बेचने में देरी की- तब भी बड़ी गिनती में दर्शक आ रहे हैं। त्योहार का मौसम तो है ही।

इस कमाई में एक बुराई भी दिखाई दे रही है- महंगाई बढ़ना। एयरलाइन टिकट और होटल किराये एकदम बढ़े हैं। जिन राज्य में मैच हैं वहां सर्विस टेक्स बढा है और इसका असर त्योहारी सीजन के व्यापार पर आएगा। इसीलिए अक्टूबर-नवंबर में महंगाई के 0.15%-0.25% के बीच बढ़ने का अनुमान है।
कुल मिलकर देखें तो वर्ल्ड कप से देश की इकॉनमी को जितना फायदा होने वाला है उसकी तुलना में महंगाई का ये अनुमान कुछ भी नहीं। मैच के टिकट की कीमत 1000 रुपये से 50000 रुपये तक हैं। फ्लाइट, होटल बुकिंग और इस बहाने मैच देखने वाली पार्टी (जिसमें भोजन और शराब मौजूद रहेंगे) चल रही हैं और दिवाली आते-आते ये और बढ़ जाएंगी। क्रिकेट के दीवाने तो वैसे भी पैसे खर्चने के लिए मशहूर हैं। अहमदाबाद में पाकिस्तान के विरुद्ध मैच को ही देख लीजिए- शहर में होटल रूम की एक रात की कीमत कई गुना बढ़ गई, अतरिक्त फ्लाइट शेड्यूल की गईं- यहां तक कि रात बिताने के लिए शहर के नर्सिंग होम के कमरे भी बुक हो गए।  

इसलिए इकॉनमी में वर्ल्ड कप से जुड़े खर्च से, अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 180-200 बिलियन रुपये हिसाब में जोड़ सकते हैं। भारत ने जब 2011 में वर्ल्ड कप की मेजबानी की थी तब 1.2 मिलियन लोगों ने मैचों में हिस्सा लिया था। इस बार ये रिकॉर्ड टूटेगा। जो विदेश से आ रहे हैं वे सिर्फ मैच नहीं देखेंगे- और दूसरे मनपसंद शहर में भी जाएंगे। भारत आने वाला क्रिकेट प्रेमी क्या ताजमहल या दिल्ली देखे बिना लौट जाएगा? छोटे शहरों के होटल कई दिनों के लिए बुक हो रहे हैं।

वर्ल्ड कप भारत की इकॉनमी का हिस्सा रहा है। 1987 में जब पहली बार वर्ल्ड कप भारत में खेले थे तब से बहुत आगे निकल आए हैं। तब सिर्फ 4 करोड़ रुपये में रिलायंस इंडस्ट्रीज स्पांसर बन गई थी- स्टेडियम के अंदर के विज्ञापन अधिकार समेत कुल 6.60 करोड़ रुपये दिए थे उन्होंने बीसीसीआई को। तब थी तो ये भी बहुत बड़ी रकम पर तब बीसीसीआई को भी ऐसे बड़े आयोजन की कीमत नहीं मालूम थी। दूरदर्शन पर मैच आए थे और दूरदर्शन ने एक भी रुपया दिए बिना ब्रॉडकास्ट अधिकार हासिल कर लिए थे। वे तो मैच प्रोड्यूस करने का खर्चा भी मांग रहे थे पर बाद में ये खर्चा खुद उठाया।

तब भी वह वर्ल्ड कप देश में क्रिकेट आयोजन में क्रांति लाया और उसी से 2023 में 12 साल में पहली बार वर्ल्ड कप की मेजबानी करते हुए- अब तक का सबसे समृद्ध और चकाचौंध वाला वर्ल्ड कप देख रहे हैं। अब बीसीसीआई के पास आईपीएल का अनुभव है जानते हैं कि वर्ल्ड कप से कैसे पैसा कमाया जा सकता है? हां, बीसीसीआई की कमाई की बात करें तो उन्हें झटका लगेगा- भारत सरकार ने आईसीसी को विभिन्न अधिकार (जिसमें ज्यादा ब्रॉडकास्ट अधिकार से) से मिलने वाले पैसे पर टेक्स में कोई भी रियायत मंजूर नहीं की और ये टेक्स सीधे बीसीसीआई के हिस्से में आ जाएगा। खैर टेक्स बीसीसीआई भरे या आईसीसी- टेक्स की रकम से भारत सरकार का खजाना तो बढ़ेगा ही। वैसे इस टूर्नामेंट से देश की जीडीपी में आ रहे 2.6 अरब डॉलर समुद्र में एक बूंद के बराबर है, क्योंकि भारत की मौजूदा जीडीपी (3,385 बिलियन डॉलर) है। तब भी किसी खेल आयोजन ने इससे पहले ऐसा नहीं किया।

अभी तो इस सारे अनुमान में क्रिकेट स्टेडियम बनाने या उनके रिनोवेशन पर कई करोड़ का खर्च जोड़ा ही नहीं। कई जानकार इसे गलत मानते हैं। देश अपनी सॉफ्ट पावर दिखाने के लिए वर्ल्ड कप की मेजबानी करते हैं। उनके लिए, यह पैसा कमाने से ज़्यादा गर्व और प्रचार है- खेल आयोजन के लिए बुनियादी ढांचे में लगा पैसा दुनिया को बताता है कि यह देश इन्वेस्टमेंट या व्यवसाय के लिए एक अच्छी जगह है। अन्यथा क्यों क्रिकेट वर्ल्ड कप के विज्ञापनों पर प्रति सेकंड 3,600 डॉलर खर्च किए जाते?

पूरी क्रिकेट की दुनिया की नजर भारत में वर्ल्ड कप पर है। इसका सफल और मुनाफे वाला आयोजन, वनडे क्रिकेट के लिए भी लाइफ लाइन बनेगा। 

  • चरनपाल सिंह सोबती

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