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विराट कोहली की टीम इंडिया आईपीएल या सफ़ेद गेंद वाली क्रिकेट की किसी सीरीज/टूर्नामेंट के बाद कुछ ही दिन में टेस्ट खेलें तो जानकार कहते हैं – एकदम सफ़ेद गेंद वाली क्रिकेट से टेस्ट खेलने के मिजाज में आना आसान नहीं। जरा सोचिए महिला टीम इंडिया के बारे में – वे तो सालों के बाद टेस्ट खेलने जा रहे हैं। तो अब सीधी सी बात ये है कि भारत की महिला टीम 16 जून से ब्रिस्टल, इंग्लैंड में टेस्ट खेल रही है इंग्लैंड के विरुद्ध और ये नवंबर 2014 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध खेलने के बाद भारत की टीम के लिए पहला टेस्ट है। इतना ही नहीं, इस साल तो दो टेस्ट खेलेंगे – दूसरा ऑस्ट्रेलिया टूर में पर्थ में डे नाईट टेस्ट। और भी देखिए :

  • भारत की महिला टीम ने पिछले 14 साल में सिर्फ दो टेस्ट खेले हैं – वार्मस्ले में इंग्लैंड के विरुद्ध और मैसूर में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध – दोनों 2014 में।
  • भारत ने ये दोनों टेस्ट जीते थे।
  • मौजूदा सालों में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के अलावा कोई भी टीम टेस्ट नहीं खेलती है। न्यूजीलैंड ने 2004 के बाद से एक भी टेस्ट नहीं खेला है।
  • भारत ने आखिरी बार 2006 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट खेला था।
  • भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच गुलाबी गेंद का टेस्ट महिला क्रिकेट के इतिहास में ऐसा सिर्फ दूसरा टेस्ट होगा।अब तक खेला गया एकमात्र डे नाईट महिला टेस्ट नवंबर 2017 में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच था। मैच ड्रॉ रहा।
  • भारत ने अब तक 36 टेस्ट खेले हैं। इनमें से 5 जीते और 6 हारे जबकि 25 का नतीजा ड्रॉ रहा।
  • भारत ने अपने पिछले तीन टेस्ट जीते हैं।
  • महिला टेस्ट के लिए जो टीम इंग्लैंड में है उनका अनुभव :
    10 टेस्ट – मिताली राज (कप्तान), झूलन गोस्वामी।
    2 टेस्ट – स्मृति मंधाना, हरमनप्रीत कौर (उप-कप्तान), पुनम राउत, शिखा पांडे।
    1 टेस्ट – एकता बिष्ट, पूनम यादव।
    कोई टेस्ट नहीं – प्रिया पुनिया, दीप्ति शर्मा, जेमिमा रोड्रिग्स, शफाली वर्मा, स्नेह राणा, तानिया भाटिया (विकेटकीपर), इंद्राणी रॉय (विकेटकीपर), पूजा वस्त्राकर, अरुंधति रेड्डी, पूनम यादव, राधा यादव।

क्या मिताली राज की टीम टेस्ट खेलने के लिए तैयार है ? इस सवाल से ज्यादा महत्वपूर्ण ये सवाल है कि क्या टीम लाल गेंद की क्रिकेट की जरूरतों के बारे में जानती है? BCCI ने तो एकदम एक साल में दो टेस्ट खेलने की जिम्मेदारी डाल दी और उनमें से भी एक डे -नाईट टेस्ट गुलाबी गेंद से। क्या BCCI की टेस्ट क्रिकेट के बारे में एकदम सोच बदली है ? इस प्रोग्राम को देखकर ऐसा लगता है कि अब आगे भी टेस्ट नियमित खेले जा सकते हैं। इसका मतलब ये भी है कि जब अगली बार इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें, जो अभी भी टेस्ट खेलती हैं, भारत टूर पर आएंगी तो एक टेस्ट मैच देखने की उम्मीद कर सकते हैं। अगस्त 2015 के बाद से आखिरी 6 टेस्ट मैच इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए हैं।

टीम के लिए टेस्ट क्रिकेट के मिजाज में आना चुनौती होगा, क्योंकि उन्हें तो 20 ओवर और 50 ओवर वाली क्रिकेट खेलने की आदत है। यहां तक कि BCCI टीम के लिए इंग्लैंड जाने से पहले किसी 3-4 दिन वाले प्रैक्टिस मैच का भी इंतज़ाम नहीं कर पाई।भारतीय खिलाड़ी आखिरी बार 2017-18 सीज़न में मल्टी- डे टूर्नामेंट खेली थीं – तब जोनल टीमों के बीच तीन दिन वाले मैच आयोजित हुए थे। 2018-19 सीज़न से वह टूर्नामेंट घरेलू प्रोग्राम से गायब हो गया।

पिच पर टिककर खेलने की आदत जरूरी है। लगातार खेलने के लिए सही फिटनेस जरूरी है। 90 ओवर तक ग्राउंड में रहने के बाद क्या अगले दिन पूरी तरह फिट होकर खेलना आसान होगा? इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया भी इसलिए टेस्ट खेल पा रहे हैं क्योंकि वे नियमित एशेज सीरीज खेलते हैं। न्यूजीलैंड का तो साफ़ मानना है कि सफेद गेंद वाली क्रिकेट ही महिला क्रिकेट का भविष्य है। कॉमर्स की कसौटी पर भी महिला टेस्ट का आयोजन हर किसी को फायदे का सौदा नज़र नहीं आता।

ऑस्ट्रेलिया में पिंक बॉल टेस्ट के साथ तो कई नई शुरूआत होंगी। पुरुष टीम के लिए कई साल पिंक बॉल टेस्ट खेलने से इंकार करने वाले BCCI ने महिला टीम के लिए ऐसे टेस्ट पर एकदम हामी भर दी। बात यहीं ख़त्म नहीं होती- ये टेस्ट 30 सितंबर से पर्थ की पिच पर खेलना है जहां खेलना तो वैसे भी कोई आसान नहीं होता। इसलिए मुश्किल चुनौती सामने है पर इसका मतलब ये कतई नहीं कि अच्छा नहीं खेल सकते। इंग्लैंड हो या ऑस्ट्रेलिया – टेस्ट में मनोबल ऊंचा रखकर खेलना है। 2014 में इंग्लैंड में भी तो यही किया था टीम इंडिया ने। तब प्लेइंग इलेवन में आठ खिलाड़ियों ने डेब्यू किया था और फिर भी एक टॉप टीम को हरा दिया था।

  • चरनपाल सिंह सोबती
One thought on “कहीं महिला टीम इंडिया की क्रिकेटर टेस्ट खेलना भूल तो नहीं गईं ?”
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