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सबसे बड़ी उम्र के फर्स्ट क्लास क्रिकेटर रूसी कूपर का देहांत हो गया- 100+ की उम्र में। पिछले साल, 22 दिसंबर को अपना 100वां जन्म दिन मनाया था तो इस मौके पर उनके बारे में लिखा था (पढ़ें- https://allaboutcric.com/news/hindi/rustom-sorabji-coopers-most-special-100/)। 100 साल जीने वाले, भारतीय फर्स्ट क्लास क्रिकेटर की लिस्ट में रुस्तम सोराबजी कूपर से पहले प्रो. डीबी देवधर, रघुनाथ चांदोरकर एवं वसंत रायजी का नाम है (लिस्ट सिर्फ उन खिलाड़ियों से बनी है जिनकी जन्म और मृत्यु का डेटा उपलब्ध है)।

दाएं हाथ के बल्लेबाज जो पारसी, बॉम्बे और मिडलसेक्स के लिए खेले और काउंटी क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय थे। रणजी, दलीप या पटौदी, उनसे इस मामले में अलग थे। 1945 में होल्कर के विरुद्ध रणजी फाइनल में उनका शतक भी बड़ा मशहूर है। 16 जून, 2020 को इंग्लिश काउंटी क्लब मिडिलसेक्स के लिए खेलने वाले सबसे बड़ी उम्र के जीवित फर्स्ट क्लास क्रिकेटर भी बन गए थे- तब  97 साल 183 दिन की उम्र थी और जेम्स गिलमैन का रिकॉर्ड तोड़ा (देहांत- 97 साल 182 दिन)।

रुस्तम मई 1949 में फेनर में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के विरुद्ध मिडिलसेक्स के लिए पहला फर्स्ट क्लास मैच खेले। आख़िरी फर्स्ट क्लास रिकॉर्ड में 52.39 औसत और इसमें मिडलसेक्स के लिए, 8 मैच में औसत 19.63 था और 54 टॉप स्कोर। मिडिलसेक्स के साथ-साथ हॉर्नसे के लिए क्लब क्रिकेट (मिडिलसेक्स सेकेंड इलेवन के लिए भी) खेले और ज्यादा मशहूर हुए। तब डेनिस कॉम्पटन, जेजे वार और बिल एड्रिच जैसे खिलाड़ी थे मिडिलसेक्स की टीम में।

उन्हें इंग्लैंड में क्रिकेट खेलने इंग्लैंड के मशहूर बल्लेबाज डेनिस कॉम्पटन ले गए थे। वे जब दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान भारत में थे और रणजी ट्रॉफी भी खेले तो रुस्तम को खेलते देखा तो मिडिलसेक्स को उनके बारे में बताया था। इतना अच्छा खेले तो टेस्ट क्यों नहीं- इसका कहीं कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता। 1952 की इंग्लैंड में सीरीज में तो खेलना चाहिए था। शायद, उनका भारत में न होना इसकी सबसे बड़ी वजह था- क्रिकेट के साथ पढ़ाई की इंग्लैंड में, बैरिस्टर बने, एक इंग्लिश महिला से शादी की और तब भारत लौटे। लौटने के बाद यहां किसी भी भूमिका में क्रिकेट से जुड़ने की कोई कोशिश नहीं की- इसीलिए उनका जिक्र कम हो गया। उनका ध्यान कोर्ट में ज्यादा था। इसके बाद तो कोर्ट से भी उनका नाम गायब हो गया। उन्हें ढूंढने की भी एक स्टोरी है।

रुस्तम, इंग्लैंड में जब हॉर्नसे क्लब के लिए खेले तो तीन सीजन में 1000+ रन बनाए। इसी क्लब के रिकॉर्ड कीपर और इतिहासकार जॉनी ब्रूस ने 2008 में उनसे बॉम्बे में संपर्क की कोशिश की तो पता चला कि वे तो सालों से गायब हैं और किसी को नहीं मालूम कि कहां गए?

अचानक ही एक अखबार में छपी एक खबर में उनके नाम का जिक्र था और लिखा था- 1984-85 में सिंगापुर के रोटरी क्लब के अध्यक्ष का नाम रुस्तम कूपर था। क्या ये वही रुस्तम थे? ब्रूस ने सिंगापुर के रोटरी क्लब से संपर्क किया तो जवाब मिला- ये वे रूसी कूपर नहीं जिनकी हॉर्नसे को तलाश है। तब भी क्लब ने ब्रूस को उनका फोन नंबर भेज दिया ताकि और जो पूछना है- उन्हीं से पूछ लो। फोन किया तो क्रिकेट के तार जुड़े और पता चला कि ये वही रुसी कूपर हैं। उसके बाद रुस्तम लगातार चर्चा में रहे और कोविड के दौरान पुणे में अपनी बेटी के घर पर थे।

एक और रिकॉर्ड- निधन तक रुस्तम, अकेले ऐसे जीवित भारतीय थे जो देश की आजादी से पहले के टूर्नामेंट पेंटेंगुलर में खेले- पारसी (1941-42 से 1944-45) के लिए। अकेले ऐसे जीवित भारतीय थे जो पेंटेंगुलर और रणजी ट्रॉफी दोनों में खेले।  

  • चरनपाल सिंह सोबती

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