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दिल्ली की क्रिकेट एसोसिएशन यानि कि डीडीसीए के बारे में ‘तारीफ़’ के शब्दों में कभी कमी नहीं रही। जो दिल्ली के लिए क्रिकेट खेले हैं मसलन बिशन बेदी, कीर्ति आज़ाद, मोहिंदर अमरनाथ, मदन लाल या वेंकट सुंदरम जैसे और भी कई जो इसके काम के तरीके में सुधार की बातें करते करते थक गए पर कोई फायदा नहीं हुआ। जैसे यहां क्रिकेट को चलाने वाले चुने जाते हैं- उसकी भारत में तो क्या पूरी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलेगी।

ज्यादा पीछे नहीं जाते। इस साल के चुनाव की ही बात करते हैं जो हाल ही में हुए। देखिए कौन कौन काबिज़ है एसोसिएशन में बड़े पद पर :

प्रेसीडेंट : बीजेपी के बड़े नेता दिवंगत अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली ;
सेक्रेटरी : सिद्धार्थ साहिब सिंह जो दिल्ली के पुराने सीएम स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं ;
ट्रेजरर : पवन गुलाटी- जो बीजेपी के सांसद गौतम गंभीर के मामा हैं और
वाइस प्रेसीडेंट : शशि खन्ना- डीडीसीए के भूतपूर्व प्रेसीडेंट सीके खन्ना की पत्नी।

अब सिलसिलेवार देखते हैं :

  • रोहन जेटली एडवोकेट हैं और सीनियर एडवोकेट विकास सिंह (भूतपूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के चीफ) को वोटिंग में 1658 – 662 से हराया। विकास सिंह दूसरी बार प्रेसीडेंट के चुनाव में हारे – इससे पहले जर्नलिस्ट रजत शर्मा से हार गए थे।
  • स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा के सबसे छोटे बेटे सिद्धार्थ वैसे तो फर्स्ट क्लास क्रिकेटर हैं पर ये सोचना गलत होगा कि उनकी क्रिकेट समझ की डीडीसीए के सदस्यों ने कद्र की। इस एसोसिएशन में किसे चिंता है कि आप क्रिकेट जानते हैं या नहीं? सिद्धार्थ वर्मा भी एडवोकेट- मुकाबले में भ्रष्टाचार के दागी विनोद तिहारा (जो जीएसटी चोरी के आरोप में दो महीने मेरठ जेल में रहे) को हराया – स्कोर 704 -1322 वोट। सिद्धार्थ दिल्ली और रेलवे के लिए खेले। उनका एक और परिचय- बीजेपी के सांसद प्रवेश वर्मा के छोटे भाई हैं। तीसरे उम्मीदवार राकेश बंसल- बीसीसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष स्नेह बंसल के छोटे भाई (248 वोट)।
  • गौतम गंभीर के मामा पवन गुलाटी एडवोकेट- वे दिवंगत अरुण जेटली के करीबी सहयोगी रहे हैं।

किसी से छिपा नहीं है कि एसोसिएशन पर लंबे समय से भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और इसकी खिंचाई भी होती रही है पर हालात ज्यों के त्यों हैं। स्वर्गीय अरुण जेटली के नाम पर अब ऐतिहासिक फिरोजशाह कोटला स्टेडियम है और उनके बेटे रोहन जेटली ने ही उनके बाद प्रेसीडेंट की कुर्सी संभाली थी। मजे की बात ये है कि इस बार डीडीसीए ने बीजीपी को भी दो गुट में बाँट दिया। एक गुट का नेतृत्व सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा कर रहे थे तो दिल्ली बीजेपी चीफ आदेश कुमार गुप्ता ने रोहन जेटली पैनल का समर्थन करने के लिए कह दिया। राजनीति ऐसी कि विकास सिंह ने दावा किया कि उन्हें उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के साथ-साथ आप के राघव चड्ढा का भी समर्थन हासिल है।

बार बार डीडीसीए में बदलाव लाने में नाकामयाब रहे कीर्ति आजाद (1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम के सदस्य) ने विकास सिंह का समर्थन किया- इस दलील पर कि ‘सिर्फ केवल एक नया व्यक्ति’ ही डीडीसीए को साफ कर सकता है। उन्होंने रोहन जेटली और सिद्धार्थ साहिब सिंह के ग्रुप को “चोर-चोर मौसेरे भाई” कहा और आरोप लगाया कि उनके तहत, डीडीसीए उसी भ्रष्ट तरीके से चलता रहेगा।

तो ये किसका मुकाबला था ? ये क्रिकेट के लिए तो नहीं था क्योंकि किसी ने दिल्ली क्रिकेट को बेहतर बनाने के कोई ख़ास दावे नहीं किए? तो क्या ये राजनीति के माहिरों के बीच आपसी मुकाबला था? क्या ये दिल्ली की एडवोकेट बिरादरी के बीच आपसी मुकाबला था ? आपको
ये जानकर हैरानी होगी कि डीडीसीए के अपने सूत्रों के मुताबिक, उनके 4,300 सदस्यों में से करीब 400 वकील हैं। जेटली के नेतृत्व वाले पैनल से डायरेक्टर के लिए चुनाव लड़ने वाले एडवोकेट श्याम शर्मा ने जेटली और सिंह के बीच चुनाव पर कहा कि कई वकील चुनाव प्रचार में लगे थे- कुल 12 पद के लिए चुनाव हुए और विकास सिंह के कैंप से इनमें से 6 के उम्मीदवार एडवोकेट थे और जेटली कैंप से चार एडवोकेट।

सिद्धार्थ और रोहन जेटली थे तो अलग अलग कैंप में पर सिद्धार्थ (जिन्हें दिल्ली के सबसे मशहूर क्रिकेटरों में से एक वीरेंद्र सहवाग का भी समर्थन मिला) ने कहा कि वह चाहते थे कि रोहन जेटली प्रेसीडेंट बनें क्योंकि उनके अपने पिता का अरुण जेटली के साथ बहुत अच्छा रिश्ता था और उनकी बदौलत ही वे डीडीसीए सदस्य बने थे। तो ये भी तो ‘एक परिवार ‘ ही हुआ।

कुछ बड़े मजेदार फैक्ट इन दिनों सामने आए :

  • लगभग 300-400 सदस्य का निधन हो चुका है पर मेंबर रोल अपडेट नहीं किए गए हैं।
  • पिछले 10 सालों से कोई नया सदस्य नहीं बना है।
  • कीर्ति आजाद ने 2018 में डीडीसीए सदस्यता के लिए आवेदन किया था- अभी तक उन्हें सदस्य नहीं बनाया है। मौजूदा क्रिकेटरों की तो बात ही छोड़ दीजिए।
  • चार साल पहले तक डीडीसीए के चुनाव प्रॉक्सी वोटिंग के जरिए होते थे। 2018 के बाद इसे बंद कर दिया- कई मामलों में एक व्यक्ति के नाम पर कई वोट आ रहे थे।

ये कैसा मुकाबला था इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जो विकास सिंह सुप्रीम कोर्ट बार के चुनाव में जीत गए- यहां हार गए। क्रिकेट में राजनीति है या राजनीति में क्रिकेट? लोढा कमेटी चाहे जो सख्ती करती रहे- यहां रास्ते बहुत हैं।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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