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भारत में कई और क्रिकेटरों की तरह, दिनेश मोंगिया को लगभग भुला ही दिया था। अचानक ही खबर आई कि वे अपनी सियासी यानि कि राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रहे हैं- अपने राज्य पंजाब में चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। बड़े आत्मविश्वास से मोंगिया ने कहा- उनका लक्ष्य पंजाब के लोगों की सेवा करना और देश के विकास में मदद देना है।
इस खबर ने दिनेश मोंगिया की फाइल खोल दी- 2001 में वनडे इंटरनेशनल में आए, बाएं हाथ के बल्लेबाज, रिकॉर्ड- 27.95 की औसत से कुल 1,230 रन, आखिरी मैच 12 मई 2007 को बांग्लादेश के विरुद्ध, एकमात्र शतक- 2002 में जिम्बाब्वे के विरुद्ध 159* रन, सिर्फ एक टी 20 इंटरनेशनल जिसमें 38 का स्कोर। स्पष्ट है- मैच कई खेले पर रिकॉर्ड कोई ख़ास नहीं।

दिनेश मोंगिया के रिकॉर्ड में एक ख़ास बात यह है कि दक्षिण अफ्रीका में 2003 वर्ल्ड कप में भारत की टीम का हिस्सा थे- वही वर्ल्ड कप जिसमें भारत फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार गया था।कई खिलाड़ियों को करियर में कभी वर्ल्ड कप में खेलना नसीब नहीं हुआ- वे 11 मैच खेल गए हालंकि रिकॉर्ड बड़ा साधारण सा है (सिर्फ 6 में बल्लेबाजी का मौका मिला)। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पंजाब का प्रतिनिधित्व किया – 121 मैच में 21 शतक। चर्चा तो होनी चाहिए उनकी ग्राउंड में क्रिकेट की पर सच ये है कि ग्राउंड से बाहर की बातों के लिए और दो बड़े अद्भुत रिकॉर्ड के लिए उनकी ज्यादा चर्चा होती है :

  • कोई भी मान्यता प्राप्त टी 20 मैच खेलने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर हैं- 2004 में इंग्लैंड के काउंटी क्लब लेंकशायर के लिए खेलते हुए यह उपलब्धि हासिल की। टीम इंडिया में जगह बनाने के लिए मोंगिया इंग्लैंड में क्लब क्रिकेट खेले थे। इंग्लैंड में लेस्टरशायर के लिए भी खेले।
  • एकमात्र ऐसे भारतीय टी 20 इंटरनेशनल खिलाड़ी जो आईपीएल में नहीं खेले।

इसके अतिरिक्त :

  • 2007 में इंडियन क्रिकेट लीग (ICL) में खेले- टीम ‘चंडीगढ़ लायंस’ के लिए।
  • इसमें मैच फिक्सिंग घोटाले में फंसे और करियर ऐसा दागदार हुआ कि आज तक जिक्र होता है। टीम में साथी, न्यूजीलैंड से आए ओपनर लू विंसेंट ने उन पर लंदन की एक अदालत (साउथवॉर्क क्राउन कोर्ट) में,सुनवाई के दौरान, आरोप लगाया कि वे मैच फिक्स करने वालों के संपर्क में थे। मोंगिया ने विंसेंट के दावों को गलत बताया।
  • सबूत की कमी में ये आरोप कभी साबित नहीं हुए और उन्हें छोड़ दिया गया।
  • बीसीसीआई ने प्रतिबंधित करने के बाद, आईसीएल में गए सभी खिलाड़ियों को आम माफी दी पर दिनेश मोंगिया को ये नसीब नहीं हुई- वापसी पर उन्हें न तो घरेलू क्रिकेट में खेलने की इजाजत दी और न ही 2020 में रिटायर होने पर उनके हिस्से का फंड भी नहीं दिया- पेंशन भी नहीं दी। अपनी बात कहने के लिए भी नहीं बुलाया।
  • करियर को सबसे पहला झटका तो पंजाब टीम में उनके साथी खिलाड़ी युवराज सिंह ने दिया और उसके बाद जब 2002 में इंग्लैंड में नेटवेस्ट ट्रॉफी फाइनल जीत में मोहम्मद कैफ भी चमके तो मोंगिया के लिए टीम इंडिया में जगह मुश्किल हो गई।
  • इसके बावजूद कप्तान सौरव गांगुली ने उन पर गज़ब का भरोसा किया- 2003 वर्ल्ड कप टीम में एक जगह के लिए वीवीएस लक्ष्मण को नहीं, दिनेश मोंगिया को अपना वोट दिया। वजह : कप्तान की सोच थी कि वे न सिर्फ गेंदबाजी (बाएं हाथ से धीमी गेंदबाजी) में भी काम आएँगे, बेहतर फील्डर भी हैं। कप्तान का विश्वास बुरी तरह से टूटा और दिनेश मोंगिया ने जिन 6 पारी में बल्लेबाजी की- 20 की औसत से 120 रन बनाए और स्ट्राइक रेट 60 भी नहीं था।
  • 2007 वर्ल्ड कप के बाद, मोंगिया कुछ समय के लिए भारतीय टीम में वापस आए, लेकिन कुछ खास करने में असफल रहे और करियर ख़त्म।
  • टीम इंडिया जर्सी में अपना आखिरी मैच खेलने के सात साल बाद ‘कबाब में हड़्डी’ नाम की फिल्म से बॉलीवुड में शुरुआत की- फिल्म फ्लॉप और फिल्मों के रास्ते भी बंद हो गए।
  • विदेश में भी खेले- कनाडा और हॉलैंड में कुछ टूर्नामेंटों में।
  • फिर से क्रिकेट की ओर रुख किया- इस बार कोच के तौर पर। उसी मशहूर डीएवी कॉलेज में कोच बने, जहाँ कभी पढ़े थे। कॉलेज को योगराज सिंह की जगह लेने वाले कोच की जरूरत थी।
  • कॉलेज परिसर से ही अपनी एकेडमी ‘द दिनेश मोंगिया क्रिकेट स्कूल ऑफ एक्सीलेंस’ को भी चलाया।
  • व्यापार किया- अपना खुद का क्रिकेट किट ब्रैंड ‘डीएम’ चलाया।

इस सब के बाद अब राजनीति की बारी आई है। ये कहने वालों की कोई कमी नहीं कि जहां एक और क्रिकेट के बाद राजनीति में आने वालों की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया है, वहीं दिल्ली में सरकार चला रही पार्टी से जुड़ने से उन्हें बीसीसीआई से अपना समीकरण सुधारने में भी, परदे के पीछे से, मदद मिलेगी। बीजेपी को पंजाब में चुनाव के लिए सेलेब्रिटी नाम की जरूरत है- खेलों से पहला नाम मिल गया है।

  • चरनपाल सिंह सोबती

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